
पुस्तक समीक्षा : आत्मा का अर्धांश
नीलम पांडेय नील, देहरादून, उत्तराखंड
आत्मा का अर्धांश के रचनाकार पेशे से वानिकी वैज्ञानिक
शिशिर सोमवंशी का बचपन का काफी समय उत्तराखंड की पहाड़ियों में बीता है. जिसका प्रभाव उनकी कविताओं में प्रकृति और प्रेम के निश्छल सौंदर्य बोध से प्रतीत होता है.ज्योतिष
वे मुख्यतः प्रेम, प्रकृति, और मानवीय संबंधों की जटिलता
पर लिखते रहे हैं. जैसे-जैसे मैंने शिशिर जी को पढ़ना शुरू किया तो एक ऐसे व्यक्तिव को समझना शुरू किया जो कविताओं की रहस्यमय दुनिया से इस तरह जुड़े हुए हैं जहां उनको पढ़ते हुए लगता है कि कवि ने कविताएं नहीं लिखी है बल्कि आत्मा लिख दी है और आत्मा का संबंध तो युगों से होता है.ज्योतिष
नया कुछ नहीं
सभी मर रहे हैं धीरे – धीरे,
किन्तु मैं बहुत तीव्रता से मरने लगा हूं……….
ज्योतिष
शिशिर की कुछ कविताएं गहन विमर्श को प्रोत्साहित करती हैं
हालांकि अधिकतर कविताएं प्रेम पर है किन्तु उस प्रेम में नवीनता है, सहज भाव है, साथ ही अभिव्यक्ति की नवीनता है. शिशिर की रचनाओं में प्रेम की विवेचना को गहन आत्म भाव के साथ अध्याध्मिक रूप से देखा जा सकता है . जिसमे उन्होंने प्रेम के व्यापक स्वरूप के साथ उसे प्रकृति की जड़, जगत की परिधि से जोड़ते हुए एक सहजता की स्थिति पर लाकर अमर करने का प्रयास किया है.ज्योतिष
मैंने इस पुस्तक की हर एक कविता को लगभग दो बार पढ़ा. रचनाकार की गहन तम भाव शैली उनकी रचनाओं में एक छापे की तरह दिखती है जो किसी परछाई की तरह जाकर पाठक तक पहुंच सकती है. शिशिर जी का काव्य-संकलन जब हाथ आया तो सबसे पहले जिस चीज नेध्यान खींचा, वह था इस किताब का कवर. स्त्री पुरुष की मौन आकृतियां एक दूसरे में समाहित चित्र के साथ
आकर्षक कवर. किताब की डिजाइन भी अलग थी. विचारों और भावों के अनुरूप प्रयुक्त की गई काव्य शैली अत्यंत प्रभावपूर्ण है. शिशिर जी की शैली मानवीय संवेदनाओं में प्रेम के निष्पक्ष रूप को प्रकट करने के साथ बिम्ब विधान की अभूतपूर्व क्षमता लिए हुए है.ज्योतिष
प्रताप सोमवंशी द्वारा अच्छी भूमिका लिखी गई है तथा
संपादकीय में डॉ यास्मीन सुल्ताना नकवी के प्रेम अमृत गंगाजली के रूप में विस्तृत व्याख्या पूरी कविता का सार है तथा शिशिर जी की कविताओं को सरल तरह से समझने हेतु पर्याप्त है. भात पक गया या नहीं यह देखने के लिए चावल का एक दाना परखा जाता है उसी तरह से किसी रचनाकार की कविताओं को परखने के लिए केवल एक या दो रचनाएं महत्वपूर्ण होती है. काव्य की सरल भाषा के साथ कवि ने उक्त कविता संग्रह की कविताओं को आठ खंडो में बांटा है.ज्योतिष
1. अभिसार : इस खंड
में पच्चीस कविताएं हैं . जिनमें अभिसार की छटपटाहट है, तड़प है पर प्रकृति के हर मानकों में एक अजीब सा कौतूहल है. पूरे दिन सूरज गर्मी से समागम होते शरीर में भी सूरज को देखने की उमंग सुबह और शाम को ही अधिक महसूस होती है . इसलिए तो शिशिर जी कहते हैं .ज्योतिष
मात्र दो अवसरों पर सूरज
देखे जाने के
योग्य है,
सुबह अपना सब कुछ समेट कर
लुटाने निकलते हुए और शाम को सर्वस्व लुटा कर डूबते हुए.
ज्योतिष
2. संताप: दूसरे खंड में छब्बीस कविताएं हैं, कविताओं में जब कहीं संताप आ
जाता है तो कविताएं मानव मन की सभी उलझी हुई ग्रंथियों को एक एक कर खोलने लगती हैं, विरह, ताप, संवेदना, वेदना, शिकायत सब कुछअभिव्यक्तियों में दिखने लगता है.
मैंने कुछ क्षणो पूर्व
पूर्व रश्मियों के रक्त को धीमे धीमे रिसते
हुए देखा है, हां सांझ ने मुझे सदा आहत किया है.
ज्योतिष
3. आस्था : इस खंड में 14 कविताएं हैं,
यहां पर यूं लगा कि जैसे प्रेम समर्पण करने लगा हो,
झुकने की अपनी अंतरिम सीमा पर निवेदन चाहता हो .दुष्यंत की स्नेह मुद्रिका हूं
समय की शकुंतला स
गुम हुई, मछली के उदर में पड़ी
प्रतीक्षारत
पुनर्मिलन को.
ज्योतिष
प्रेम अगर आस्था बन जाए तो अहम के सभी द्वार हमेशा के
लिए बन्द हो जाते हैं .ज्योतिष
4. संवाद: चौथे खंड में चौदह कविताएं हैं. सभी कविताएं प्रेम,प्रकृति के
समक्ष एक मौन संवाद पर आधारित है. छोटी बड़ी कुछ रचनाएं बेहद सुंदर बनी है . शिशिर जी अपनी कविताओं में अधिकतर संवाद करते हैं . एक अबोले, अनजाने प्रेम से होने वाला उनका संवाद पाठक को अपना सा संवाद लग सकता है.प्रेम
पता है तुम्हे
मेरे स्वप्न
क्यों विलक्षण हैं ?
उन्हें मेरे अतिरिक्त कोई नहीं देखता,
तुम भी नहीं.
5. आग्रह: रुक जाओ/ नीद/ दोष/ चाह जैसी लगभग 9 कविताएं इस खंड में हैं . हर कविता में कवि बहुत सजग,सहज नजर आते हैं .
जिस रात मेरे पास तुम्हारा स्वप्न नहीं होता देखने के लिए
उस रात मुझे नींद नहीं आती.
6. उसका स्वर: इस खंड में 7 कविताएं हैं . प्रत्येक कविता पढ़ते हुए लगता है हमारे पास जब खुद के समीप होने वक़्त होता है . एक उद्गार, आभार,और कह देने की, व्यक्त करने की अपार संभावना भी हमारे साथ रचना के रूप में निकल जाती है .
जिनकी स्याही यूं तो किसी को दिखती नहीं
पर सूखती भी नहीं मेरे वजूद से .
7. सामीप्य: इस खंड में, कुछ नहीं करना / वृष्टि/ अधर जैसी १० कविताएं कवि के प्रेम में संवेदनशील होने का प्रमाण है तथा जिसकी वजह से अनुभूति गहरी एवं पैनी होती है |अपने मन की बात कहने के लिए कवि कहीं-कहीं प्रतीकों, उदाहरणों का इस्तेमाल करते हैं.
जीवन की धूप
सर पर है
तुम्हारा हाथ पकड़ कर जोर से भाग जाना है
8. मधु वृष्टि : इस खंड में ६ कविताएं हैं . यूं लगता है जैसे प्रेम पूर्ण होकर संध्या गमन कर अपने आवसान में विलीन होने को तत्पर है.
ठन्डे सीलन भरे कमरे में
फर्श पर हमारे उतारे हुए तन पड़े हैं
शय्या पर आत्माएं आलिंगनबद्ध सो रही हैं
छोटी बड़ी करीब 112 कविताओं के इस संग्रह में कविताओं की सार्थकता उनके सीधे-सच्चे सरल संवाद में है. न ये कृत्रिम लगती हैं और न सजावटी.
कभी बेहद गंभीर हैं, परिपक्व है तो कभी बेहद मासूम सी सरल हो जाती हैं जैसे प्रेम कभी कच्चा कभी पक्का सा.
कविता प्रेमियों के लिए यह पुस्तक बेहतरीन पुस्तक हैं .