यमुना—टौंस घाटी की अपनी एक जल संस्कृति है. यहां लोग स्रोतों से निकलने वाले पानी को देवताओं की देन मानते है. इन नदी—घाटियों में जल स्रोतों के कई कुंड स्थापित हैं. विभिन्न गांवों में उपस्थित इन पानी के कुंडों की अपनी—अपनी कहानी है. इस घाटी के लोग इन कुंडों से निकलने वाले जल को बहुत ही पवित्रत मानते हैं और उनकी बखूबी देखरेख करते हैं. जल संस्कृति में आज हम ऐसे ही कुंडों से आपको रू—ब—रू करवा रहे हैं. यमुना घाटी के ऐसे ही कुछ जल कुंडों बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रेम पंचोली—
जल संस्कृति भाग—3
कफनौल कहने व सुनने से लगता है कि यहां काफी नौले होंगे और इस गांव में निश्चित तौर पर बहुत सारे जल स्रोत भी है जो कुण्ड नुमा तथा ‘नौले’ के आकार के थे. पिछले दस वर्षों अन्तराल में इस गांव में सम्पूर्ण जल स्रोत सूख गए. अब मात्र एक ही कुण्ड शेष है जिसे देवता का पानी कहते है. लोग इस पानी की पूजा प्रत्येक माह की सक्रांती में करते हैं तथा यह पानी गांव की पेयजल आपूर्ति भी करता है. पहले इस कुण्ड के बाहर एक लकड़ी का मन्दिर बना था अब पत्थर व सीमेन्ट से मन्दिर बनाया गया है. यह कुण्ड भी नकासीदार पत्थरों से बनाया गया है.
बताया जाता कि गांव के सामने पर बौखटिब्बा पर्वत से एक गाय रोज आकर उक्त स्थान पर एक बेकल नामक प्रजाति के झाड़ी नुमा पेड़ पर दूध छोड़ कर जाती थी. गांव के पास एक बाड़िया नाम का राजा रहता था. उसने अपने कर्मचारियों को गाय को जिन्दा अथवा मुर्दा पकड़ने के आदेश दिये. राजा के कर्मचारियों ने उक्त गाय को मार कर राजा के सुपूर्द किया. तब गाय ने राजा को श्राप दिया था कि तेरे कुल का सर्वनाश इस गति से होगा कि पीछे से आनी वाली पीढ़ी राजा के नाम तक की खोज ना कर पाए. निश्चित रूप से राजा के कुल का सम्पूर्ण नाश हो गया. आज भी जहां राजा रहता था वहां का नाम बाड़क नामक तोक से जाना जाता है. परन्तु गाय जिस जगह पर दूध छोड़ती थी वहां बेकल नामक वह झाड़ी प्रजाति ने एक पेड़ का रूप ले लिया और लोगों ने उसी प्राजाति की लकड़ी से वहां मन्दिर बनवा डाला. मन्दिर बनाते समय उक्त स्थान पर एक कुण्ड भी प्रकट हुआ. तथा दो मूर्तिया भी प्राप्त हुई यह मूर्तिया आज भी बौखनाग देवता के रूप में गांव-गाव में पूजी जाती है. आज यह स्थान देवतुल्य माना जाता है.
खडक्या सेम
खडक्या का अर्थ हम अचरज से कर सकते है और सेम का मतलब जल भण्डारण से. अर्थात अचरज पानी का भण्डार. खडक्या सेम में जो पानी का धारा है वह कालीनाग देवता का हैं या कालीनाग देवता के नाम से कह सकते हैं. लोग उक्त धारे के पास नंगे पाव जाते है. ताकि इस जलस्रोत की पवित्रता बनी रहे. इस धारे में अनु0 जा0 के लोगों के लिए प्रवेश वर्जित है. स्थानीय लोग कहते है कि जब इस धारे में गन्दगी बढ जाती है तो यह सूख जाता है. यहां सांप निकलते हैं. परन्तु स्थानीय लोग इसकी सफाई व पूजा को नियमित करते हैं. ऐसा करने से लोगो में जल संरक्षण की धारणा जागृत होती है. ऐसा लोगो का मानना है. इस धारे की खास बात है कि इसका पानी गर्मीयों में ठण्डा व सर्दियों में गरम रहता है. स्थानीय लोगो का कहना है कि पहले ऐसे शिल्पकार लोग थे जो पत्थरों पर सुन्दर आकृतियां बनाते थे अब वे नही रहे. सो अब सीमेन्ट के बजाय कुछ और साधन दिखाई ही नही देते हैं. उनका जबाब था कि धारे बनाने का कार्य तो मिस्त्रियों का था परन्तु धारे की पूजा के पश्चात वे वहां नही जा सकते थे. यह भी एक परम्परा है.
तटेश्वर महादेव का पन्यारा
तटेश्वर महादेव का पन्यारा डख्याट गांव में है. तटेश्वर इसलिए कि यह यमुना नदी के तट पर बसा गांव है. हालांकि वर्तमान में यमुना नदी से इस गांव की दूरी सात किमी बढ़ गई है. जनश्रुति है कि गांव में पहले पानी की समस्या बनी रहती थी. एक बार एक साधु इस गांव में आया और पानी पीने की इच्छा जाहीर की गांव की एक महिला ने उन्हे आसन दिया और कहा कि यमुना नदी से पानी भरकर ले आती हूं. वह यमुना नदी की ओर चल दी. जब तक वह वापस आई तो पहाड़ पर साधु ने अपना चीमटा गाड़ रखा था. साधु ने महिला का यमुना से लाया हुआ पानी ग्रहण किया और कहा कि आज के बाद यमुना नदी में पानी के लिए नही जाना पड़ेगा साधु ने अपना चीमटा वापस निकाला तो पहाड़ से दो धारायें फूट पड़ी और साधु विलुप्त हो गया. इसलिए लोग उस साधु को शिव का रूप मानते हैं और इस धारे का नाम उन्होने तटेश्वर महादेव का पन्यारा रख दिया. वर्तमान में इस धारे के बाहर भी सीमेन्ट से सौन्दर्यकरण किया गया. अब एक धारा सूख गया. एक में अबिरल पानी आ रहा है. इस पानी को लोग बड़ा पवित्र मानते है. इस गांव के लोग प्रत्येक वर्ष यहां पूजा अर्चना करते है.
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(लेखक सी.सुब्रमण्यम राष्ट्रीय मीडिया अवॉर्ड—2016 द्वारा सम्मानित हैं)