जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

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हमारी संस्कृति हमारी विरासत

उत्तराखंड का रवांई क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय के लिए सदैव विख्यात रहा है. लोकपर्व, त्योहार, उत्सव, मेले—थोले यहां की संस्कृति सम्पदा के अभिन्‍न अंग रहे हैं. कठिन दैनिकचर्या के बावजूद ये लोग इन्हीं अवसरों पर अपने आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, मेल-मिलाप हेतु वक्त चुराकर न केवल शारीरिक, मानसिक थकान मिटाकर तन-मन में नयी स्फूर्ति का संचार करते हैं, बल्कि जीवन के लिए उपयोगी सामग्री का संग्रह भी करते हैं. सुदूर हिमालयी क्षेत्र में होने वाले मेले, शहरी मेलों से पूरी तरह अलग लोक के विविध रंगों से रंगे नजर आते थे किन्तु वर्तमान में वैश्वीकरण की आबो-हवा के चलते लोक संस्कृति के संवाहक रूपी मेले से वर्तमान पीढ़ी का मोहभंग होता जा रहा है, जिसके चलते इनके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं. वर्षों पूर्व अपार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होने वाले कई मेले जहां अपने अस्तित्व के लिए जूझ दिख रहे हैं, तो कई विलुप्त प्राय: होकर जुबानी इतिहास बन मात्र स्मृतियों में शेष रह गये हैं. जो कि एक गम्भीर चिंतन का विषय है.
हम हिमालयी राज्यों की वर्षों पुरानी संस्कृति और सभ्यता को बचाए, बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं. आप से आग्रह है कि आप भी हमारे इस प्रयास में भागीदार बनें. अपने क्षेत्र की सांस्कृति, लोक और परंपरा को हमारे साथ साझा करें.

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