दर्द में डूबी नज्म

  • डॉ. कुसुम जोशी

नन्ही-सी हेमसुन्दरी  के समझ में नही आ रहा था कि घर में ये गहमागहमी, इतना झमेला, भारी कामदार रंगबिरंगी साड़ियों की सरसराहट, श्रृगांर.  घर में भीड़ भीड़, because उलूक ध्वनि, अभी तो उसे पढ़ना था. जब भी बाबा, दादा, काका मिलते बड़ी-बड़ी बातें होती, बाल विवाह का विरोध. स्त्री शिक्षा की अनिवार्यता पर बातें होती, विधवा विवाह, सति प्रथा व धर्म की अव्यवहारिक परम्परा का विरोध.

पर मेरी उम्र भी नही देखी, मुझे तो अभी पढ़ना था. so और मुखर्जी बाबू का बेटा जदुनंदन मुखर्जी भी तो अभी ज्यादा बड़ा नही, अभी तो पढ़ रहा है? कितने प्रश्न थे हेम के मन में.

हेमसुन्दरी के पिता ने प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

 (क्या हेमसुन्दरी के पिता ने प्रेम but विवाह किसी पारसी थियेटर में काम करने वाली सुन्दरी से किया था? जो उनका परिवार उनकी बेटी का विवाह आनन फानन में कर देना चाहता था.)

विरोध दर्ज करवाया था उसने मां के सामने, परिवार की सब बड़ी बड़ी बातें सिर्फ बातें भर थी because और हेमसुन्दरी टैगोर हेमसुन्दरी मुखर्जी बन कर ससुराल आ गई.

“न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन,
बड़े करीब से उठ कर चला गया कोई” (नाज) 

पिता ने प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

कुछ ही दिन बीते सिर्फ बाईस साल का because जदुनन्दन बीमारी से चल बसा,मासूम हेमसुन्दरी के जीवन का हर रंग ले गया अपने साथ. हर तरफ वीरानी थी और साथ में लांछन “अभागी, कुलच्छनी, पतिहन्ता, और घर से बाहर कर दी गई. फिर ठिकाना बना मां पिता का घर, जहां वह अपने को सिर्फ बेकार,दुखिया, बोझ समझने लगी थी.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

कुछ समय के शोक दुख से उबरने के बाद हेमसुन्दरी अब ठान चुकी थी कि जल्दी से जल्दी अपने पांव में खड़े होने की, तभी लोगों की नजरें उसके लिये बदल जायेगी, so और उसने परिवार के कुछ हल्के विरोध के बाद भी नर्स बनने का प्रशिक्षण लिया, नर्सिग यही वह काम था जो उसे जल्दी आत्मनिर्भर बना सकता था. जल्दी ही युवावस्था में कदम के साथ साथ आत्मनिर्भरता भी हेम के जीवन में आ गई, so और मेरठ के एक अस्पताल में नर्स बन कर आत्मनिर्भर भी थी और मरीजों की सेवा के साथ जीवन जीने का उद्देश्य भी मिल गया था, खूबसूरत, उदास बड़ी बड़ी सूनी आँखों वाली बंगालन हेमसुन्दरी का सौन्दर्य और खानदान शहर में चर्चा पाने लगा था.

तुम्हारा नाम है या
आसमान नजरों में
सिमट गया मेरी गुम-गश्ता
ज़िन्दगी की तरह, (नाज़ ) 

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

हेम सब कुछ भुला देना चाहती थी अतीत,वर्तमान, पर भविष्य तो प्रतीक्षा कर रहा था, हेम की चर्चा उर्दू रिसाले के  सहाफी (पत्रकार )प्यारेलाल शाकिर के कानों तक पहुंची जो शायरी because पसन्द थे, आधुनिकता और प्रगतिशीलता के चलते ईसाई धर्म में दीक्षित हुये थे, बंगाली मशहूर खानदान की विधवा बेटी घर से इतनी दूर हस्पताल में अदद नर्स की नौकरी, लगा अखब़ार के लिये एक बड़ा अफसाना मिल  सकता है.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

हेमसुन्दरी से मिलने निकल गये,because पहली ही मुलाकात में हेम के सौन्दर्य की सादगी में गिरफ्तार हो गये.

“आगाज तो होता हैअंजाम नही होता,
जब मेरी कहानी में वो नाम नही होता”. (नाज) 

 और  नाम को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करने के लिये  प्यारेलाल शाकिर तब तक अस्पताल के चक्कर काटते रहे जब तक हेमसुन्दरी ने  विवाह की सहमति नही दी, because ईसाई धर्म में दीक्षित होकर वह हेमसुन्दरी प्यारेलाल शाकिर हो गई.

“बैठे हैं रास्ते में  दिल का खन्डहर सजा के,
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुजरे”,(नाज) 

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

हेम सुन्दरी की उदास दुनिया बहार आने से खिलखिला उठी थी, पर टैगोर परिवार के दिल से बहुत दूर निकल गई थी हेम , वही हुयी जिस का डर था , नही चाहा था परिवार ने वह because अनजान शहर में जाकर छोटी सी नौकरी करे.

वक्त के साथ  दो बेटियों चार बेटों की मां हेम सुन्दरी के जीवन में मध्यम वर्गीय संघर्ष हावी होने लगे, हर बच्चे को अपने पांव में खड़ा करना और सही ढ़ग से उनका पालन करना किसी चुनौती से कम नही था, दूसरे नम्बर की बेटी खूबसूरत नर्तकी होने के साथ साथ बेहद महत्वाकांक्षी भी थी नाम था  ‘प्रभावती’, मां पिता की तरह because शायरी की शौकीन, और एक पारसी थियेटर से जुड़ कर बतौर डांसर  देश भर में प्रसिद्ध होने के सपने देखने लगी, थियेटर की दुनिया में  उसकी मुलाकात हुई एक ‘शायर अली बख्श’ से, जो संगीतकार, हारमोनिया के उस्ताद, और साथ में दिलफेंक भी थे.  फिल्मों का युग आरम्भ हो चुका था, थियेटर का युग दम तोड़ने लगा, समय के साथ ये अवसान स्वाभाविक था.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

जब बेटे की पैदाइश की because चाहत में तीसरी बेटी हुई तो डाक्टर को देने के लिये पैसे भी नही थे. पिता ने बच्ची को उठाया और यतीमखाने के गेट में रख दिया. कुछ घन्टों बाद अनायास इंसानियत जागी… तो उल्टे पांव यतीम खाने पहुंचे और चीटियों के काटने से रोये जा रही बेटी को उठाया और घर वापस ले आये.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

प्रभावती  के आंखों में सपने पल रहे थे मुम्बई जा के फिल्म में बतौर नर्तकी बनने का, अलीबख्श ने प्रभावती के सपनों को पंख दे दिये, प्रभावती  अलीबख्श से निकाह कर इकबाल because बानों बन कर मुम्बई चली गई, और यहीं से शुरु हुआ गरीबी का एक नया दौर, दोनों फिल्मों में छोटे मोटे रोल के लिये संघर्ष करते, ऐसे में एक के बाद एक तीन बेटियों के मां बाप बन गये, साथ में अलीबख्श का दिलफेंक अंदाज बरकरार था.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

जब बेटे की पैदाइश की चाहत में because तीसरी बेटी हुई तो डाक्टर को देने के लिये पैसे भी नही थे. पिता ने बच्ची को उठाया और यतीमखाने के गेट में रख दिया. कुछ घन्टों बाद अनायास इंसानियत जागी… तो उल्टे पांव यतीम खाने पहुंचे और चीटियों के काटने से रोये जा रही बेटी को उठाया और घर वापस ले आये.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

इस परिवार की एक और औरत का दर्द में डूब जाना तय था,  उसकी तो दुनिया में आने की शुरुआत ही परित्याग के साथ हुई थी. हेमसुन्दरी , प्रभावती उर्फ इकबाल बानू,फिर because अनचाही बच्ची महज़बीं (नाज, मीना कुमारी) उसका जीवन भी दर्द के अथाह समन्दर में डूबा था. वो मासूम बचपन (सात साल की उम्र) से ही अपनी और दो बहनों के साथ पैसे कमाने की मशीन बना दी गई, मानो पिता ने कूड़े की तरह फेंक दी गई बच्ची को इसी शर्त में बचाया हो.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

वह खुद लाजवाब शायरा थी, because उसके पास गम से भरा दिल था. दुनिया, परिवार से हजारों शिकायत, अकेलेपन के टीस से भरे लम्हें थे और उन्हें व्यक्त करने के लिये दर्द में डूबे लफ्जों की बेशुमार दौलत थी.  मुहब्बत में वो भी ठगी गई अपने परिवार की और औरतों की तरह, दूसरी तीसरी बीबी बनना जिनका मुकद्दर हो गया था.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

मीनाकुमारी कमाल अमरोही से because गहरी मुहब्बत कर बैठी. मुहब्बत की तासीर इतनी गहरी थी कि परिवार से छुपा के कमाल की तीसरी बीबी बनना उसने मंजूर किया.

कोशिश की थी उसने मुकद्दर को कबूल करने की-

टुकड़े टुकड़े दिन बीता
धज्जी धज्जी रात मिली,
जिसका जितना आंचल था
उतनी ही सौगात मिली. (नाज) 

प्यार की चाहत, उसके साथ एक मुकाम की चाहत ,वो भी मर्दानी दुनियां में, मुकाम मिला पर मुहब्बत फिसलती चली गई,because हालांकि उसने अपनी और से अपनी मुहब्बत को टूट के चाहा इस हद तक की अदाकारा तन्हा सी अपने गम और लफ्जों के साथ नशे के समन्दर में डूबते चली गई.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां कहां तन्हा, 

बुझ गई आस छुप गया तारा 
थरथराता रहा धुआं तन्हा, 

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते है
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा,

हमसर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहां तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेगें यह जहां तन्हा. ( नाज) 

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

वो उदास औरत, खुद में ही because दर्द में डूबी नज्मों की तरह थी,  दुखों की रानी (ट्रेजेडी क्वीन) अपने चाहने वालों के दिल में आज भी राज करती है, पर तमाशाई तो दिल का दर्द  नही देख पाते,वो सिर्फ तमाशाई होते हैं, नही देख पाये उसकी आत्मा को जिसे पैदा होते ही उदासी ने घेर लिया था.

बकौल मीनाकुमारी- because “हमारा ये बाजार है ऐसी औरतों का जहां रुहें मर जाती हैं, जिस्म जिन्दा रहते हैं”. मीनाकुमारी उर्फ नाज का हर शेर अपने साथ अपने खानदान की औरतों का भी दर्द बंया करता है.

उदासियों ने मिरी आत्मा को घेरा है.
रूपहली चांदनी है और घुप्प अंधेरा है.

बकौल मीनाकुमारी- “हमारा ये बाजार because है ऐसी औरतों का जहां रुहें मर जाती हैं, जिस्म जिन्दा रहते हैं”. मीनाकुमारी उर्फ नाज का हर शेर अपने साथ अपने खानदान की औरतों का भी दर्द बंया करता है.

प्रेम विवाह किसी पारसी थियेटर

 (लेखिका साहित्यकार हैं एवं छ: लघुकथा संकलन और एक लघुकथा संग्रह (उसके हिस्से का चांद)
प्रकाशित. अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सक्रिय लेखन.)

  (बहुत सी कहानियां है बिखरी हैं आस पास मीनाकुमारी के नानी के वक्त से, पर सच्चाई की तलाश बहुत मुश्किल है,जिसको जो भी पता हो पड़ताल जारी है. हेमसुन्दरी, प्यारेलाल शाकिर, प्रभावती (इकबाल बाने), अलीबख्श सभी की.)

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