दीपावली के ये दीपक भारत के आदर्शों, मूल्यों और दर्शन के जीवंत ऊर्जापुंज : प्रधानमंत्री  

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की भव्य दीपोत्सव समारोह की शुरुआत 

  • हिमांतर ब्यूरो

प्रधानमंत्री ने सभा को संबोधित करते हुए भगवान राम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि आज अयोध्या जी दीपों से दिव्य हैं और भावनाओं से भव्य हैं. प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की, आज अयोध्या नगरी भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के स्वर्णिम अध्याय का प्रतिबिंब है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वे पहले यहां राज्यभिषेक के लिए आए थे तो उनके अंदर भावनाओं की लहरें दौड़ रही थीं. प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रशंसावश आश्चर्य व्यक्त किया कि जब भगवान श्री राम 14  वर्ष के वनवास के बाद लौटे होंगे तो अयोध्या को किस प्रकार सजाया गया होगा. उन्होंने टिप्पणी की, ‘आज इस अमृत काल में भगवान राम के आशीर्वाद से हम अयोध्या की दिव्यता और अमरता के साक्षी बन रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि हम उन परंपराओं और संस्कृतियों के वाहक हैं जिनमें त्योहार और उत्सव लोगों के जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हर सत्य की जीत और हर झूठ की हार के बारे में मानवता के संदेश को जिंदा रखने के मामले में भारत का कोई मुकाबला नहीं है.’ उन्होंने कहा, ‘दीपावली के ये दीपक भारत के आदर्शों, मूल्यों और दर्शन के जीवंत ऊर्जापुंज हैं. ज्योतियों की ये जगमग और प्रकाश का ये प्रभाव भारत के मूल मंत्र – ’सत्यमेव जयते’ की उद्घोषणा है.’

उपनिषदों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः.’ जिसका अर्थ है कि जीत सत्य की होती है, असत्य की नहीं. प्रधानमंत्री ने हमारे ऋषियों के वचनों को भी उद्धृत किया, ‘रामो राजमणिः सदा विजयते’ जिसका अर्थ है कि जीत हमेशा राम के अच्छे आचरण के लिए होती है न कि रावण के दुराचार के लिए. भौतिक दीपक में चेतन ऊर्जा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने ऋषियों को उद्धृत करते हुए कहा, ‘दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः’ अर्थात दीपक का प्रकाश ब्रह्मा का रूप है. श्री मोदी ने अपने इस विश्वास को दोहराया कि ये आध्यात्मिक प्रकाश भारत को प्रगति और उत्थान के मार्ग पर लेकर जाएगा.

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर सभी को ये याद दिलाया कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में क्या कहा था और उद्धृत किया, ‘गत प्रकास्य प्रकासक रामू’, जिसका अर्थ है कि भगवान राम पूरी दुनिया को प्रकाश के दाता हैं और सकल विश्व के लिए एक प्रकाशस्तंभ की तरह हैं. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह दया और करुणा का, मानवता और मर्यादा का, समभाव और ममभाव का प्रकाश है. ये सबके साथ का, सबको साथ लेकर चलने का संदेश है.’

प्रधानमंत्री ने दीयों के बारे में अपनी कविता ’दीया’ की कुछ पंक्तियों का पाठ किया जिसे उन्होंने कई साल पहले गुजराती में लिखा था. उन्होंने कविता का अर्थ समझाया जो कुछ यूं है कि दीपक आशा और ऊष्मा, अग्नि और आराम देता है. भले ही हर कोई उगते सूरज की पूजा करता है, परन्तु ये दीया ही है जो सबसे अंधेरी रातों में हमारा साथ देता है. उन्होंने आगे कहा कि लोगों के मन में समर्पण की भावना लाते हुए अंधकार को दूर करने के लिए दीपक स्वयं जलता है.

प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि जब हम स्वार्थ से ऊपर उठते हैं तो सर्व-समावेशन का संकल्प स्वतः ही इसमे समा जाता है. उन्होंने कहा, ‘जब हमारे विचार साकार हो जाते हैं, तो हम कहते हैं कि ये उपलब्धि मेरे लिए नहीं है, बल्कि ये मानव जाति के कल्याण के लिए है. दीप से दीपावली तक यही भारत का दर्शन है, यही भारत का विचार है और भारत की सनातन संस्कृति है.’

प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि भले ही भारत ने मध्यकाल और आधुनिककाल तक कितने ही अंधकार भरे युगों का सामना किया, लेकिन देशवासियों ने कभी भी दीप जलाना बंद नहीं किया और विश्वास निर्मित करना कभी नहीं छोड़ा. उन्होंने याद किया कि कोरोना की मुश्किलों के दौरान हर भारतीय एक समान भावना के साथ दीया लेकर खड़ा हुआ और दुनिया इस महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई की गवाह है. प्रधानमंत्री ने अंत में कहा, ‘भारत अतीत में हर अंधेरे से बाहर आया है और उसने प्रगति के पथ पर अपनी शक्ति का प्रकाश फैलाया है.’

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