क्रूरता की पराकाष्टा, चीन की कूटनीतिक चाल

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  • प्रेम पंचोली

दुनियाभर के अधिकांश देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे है। अपने अपने स्तर से लोग इस महामारी का मुकाबला कर रहे है। हालात ऐसी है कि विश्व पटल पर जनाधारित कार्यों निगरानी रखने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्रवाई भी मौजूदा समय में निष्क्रिय दिखाई दे रही है। ऐसा लोग सोसल मीडिया पर संवाद कायम कर रहे है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया के लोगों की सेवा के लिए एक निगरानी करने वाली विश्वसनीय संस्था है। यदि ऐसी संस्थाएं लोगों का विश्वास खो रही है तो मानवता खतरे में जा रही है। जिस पर आज ही सोचा जाना लाजमी है।

वुहान शहर में आप जैसे प्रवेश करेंगे आपको 200 मी. लम्बी सुरंग से गुजरना पड़ता, ताकि आप पूर्ण रूप से सैनिटाईज होकर जाये। ये ऐसे सवाल हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। अर्थात चीन को मालूम था कि वे इस मानवजनित कोरोना वायरस से निपट लेंगे।

सन्देह क्यों है? इसलिए कि वुहान शहर से चीन की राजधानी बीजिंग और शंघाई की दूरी कोई 800 किमी के आसपास ही बताई जाती है। और दूसरे देशों की दूरी हजारो किमी है। यानी 1000 किमी से कम दूरी वाली जगह पर कोरोना वायरस ने कोई संकट पैदा नहीं किया है और हजारो मील दूर के देशो में कोरोना ने महामारी पैदा कर दी। इसके अलावा वुहान शहर में पहला कोराना ग्रसित व्यक्ति मिला, यहीं से बीमारी लोगों की जान पर उतर आई। यही नहीं इस बीमारी के प्रकोप से पूर्व ही चीन ने 12000 बेड वाला अस्पताल भी बनवा लिया था। वुहान शहर में आप जैसे प्रवेश करेंगे आपको 200 मी. लम्बी सुरंग से गुजरना पड़ता, ताकि आप पूर्ण रूप से सैनिटाईज होकर जाये। ये ऐसे सवाल हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। अर्थात चीन को मालूम था कि वे इस मानवजनित कोरोना वायरस से निपट लेंगे। यह भी उन्हें ही मालूम था बनस्पत अन्य देशाों के।

इसके अलावा अक्टूबर 2019 में जब चीन में इस कोरोना वायरस ने पनाह ली तो उस वक्त से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की संवेदनशीलता नहीं दिखाई दी। बजाय कई बार संगठन ऐसे बयान दे चुका है कि यह कोई वैश्विक समस्या नहीं है। जबकि कोरोना के प्रारंभिक सैंपल को चीन ने नष्ट कर दिया था, जिसकी सूचना विश्व स्वास्थ्य संगठन को पूर्व से थी।

उल्लेखनीय यह है कि कोरोना मानव से मानव में फैलता है, जिसे चीन के चिकित्सको द्वारा पुष्ट भी किया गया था। दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन के कम्युनिटी निदेशक को यह वायरस एक अफवाह जैसी लग रही थी। क्योंकि वे उन्ही दिनों यानी जनवरी 2020 में बीजिंग (चीन की राजधानी) में प्रवास पर थे। फिर भी इस वायरस के खतरे से वाकिफ नहीं हुए। और तो और 11 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ट्वीट करके लोगों को अगाह करता है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए कोई गाइडलाइन जारी करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह वायरस मानव से मानव में नहीं फैलता है। मौजूदा समय में साबित हो गया कि कोरोना मानव से मानव में फैलता है। जिस कारण दुनियां में लाखों लोगो ने अपनी जान गंवाई है।

बताया जा रहा है कि चीन के वुहान शहर से पांच लाख लोग उन्हीं दिनों बिना मेडिकल जांच के दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पंहुच गये। इटली में 6 फरवरी 2020 तक कोरोना वायरस का मामूली केस था। इधर चीनी हम चीनी हैं, वायरस नहीं, हमें गले लगाइए वगैरह। ऐसा कहकर वे दुनिया के महशूर पर्यटन स्थल सिटी ऑफ लव यानी इटली पंहुच गये।

भारत के अलावा इटली, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका तक के देश कोरोना से निपटने में त्वरित सफलता नहीं पा रहे हैं। चीन की कूटनीति का हस्र है कि भारत और अन्य देश इंटरनेशनल कम्युनिटी में उसके अछूतपन को दूर करे। मगर समझने के लिए यही काफी है कि जिस तरह का चरित्र विश्व समुदाय के सामने चीन का इस वक्त आया है वह किसी से छुपा नहीं है। इसके अलावा और चीजों को भी आज विश्वस्तर पर समझने की आवश्यकता जताई जा रही है।

चीन ने पहले खुद को बीमार बताया, कुछ समय बाद अपनी मुद्रास्फिति को गिरने का संकट बताया। हरकते इतनी बेईमानी साबित हो रही है कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपने शेयर कम करने की चीन ने प्रबल कोशिश की है। वर्तमान में चीन ने अब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार पर फिर से कब्जा जमाने की रणनीति बना डाली।

विश्व स्तर पर बहस इस ओर होनी चाहिए कि क्या लोगों में वैमनस्य है। यदि है तो एक देश के लोग दूसरे देशो में कैसे प्रवास कर सकते है। चीन में या चीन अधिकृत तिब्बत में दुनियां के सर्वाधिक पर्यटक आते-जाते है। इसके इतर चीन के व्यापारिक रिश्तो को विश्व समुदाय हाथो हाथ लेता है। कह सकते हैं कि विश्वस्तर पर चीन के लिए कोई लक्ष्मण रेखा तय नहीं है। तो फिर चीन की राजनीति में इतनी क्रूरता क्यों है। इस ओर बहस आगे बढनी चाहिए। आज पूरा विश्व तकनीकी विकास के कारण बहुत ही नजदिक आ चुका है। ऐसे वक्त में क्रूर कूटनीति का चलन कितना मानवीय होगा?

मानवाधिकारों का हनन ना हो इस बावत विश्व स्तर पर अलग अलग संगठन भी कार्य कर रहे है। किन्तु जो संकट इस वक्त दुनिया के लोगों के सामने आया, उसमें विश्व स्तरीय संगठनो की भूमिका सन्देह के घेरे में है। 2019 के अन्त में और 2020 के आरम्भ में इंसानो पर जो संकट कोरोना जैसी महामारी के रूप में आई उसे सम्पूर्ण विश्व समुदाय कभी भूल नहीं सकता।

जानकारों का कहना है कि चीन की कूटनीति का पर्दाफाश हो चुका है कि वे अपने व्यापार के बलबूते विश्व समुदाय के संसाधनो पर कब्जा करना चाहता था। पर उनकी करतूतो का भाण्डा पहले ही फूट गया है। चीन ने पहले खुद को बीमार बताया, कुछ समय बाद अपनी मुद्रास्फिति को गिरने का संकट बताया। हरकते इतनी बेईमानी साबित हो रही है कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपने शेयर कम करने की चीन ने प्रबल कोशिश की है। वर्तमान में चीन ने अब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार पर फिर से कब्जा जमाने की रणनीति बना डाली। इसके प्रमाण यह है कि जापान, फ्रांस, इटली और दूसरे देशों की व्यापारिक कम्पनियों के साथ अपने शेयर होल्डर के रिश्ते खत्म करके, ऐसी कम्पनियों को खरीदना आरम्भ कर दिया है। क्योंकि चीन ने अपने देश में कोरोना वायरस के कारगर उपाय ढूंढ निकाले है या पूर्व से उनके पास इसके इन्तजाम थे, पर अन्य देश कोरोना की इस महामारी में जकड़ गये है। इस महामारी के कारण अन्य देशो की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है। दूसरी ओर चीन में मध्यम और कमजोर लोगों की संख्या वर्तमान में बहुत कम हो गई है।

कुलमिलाकर चीन में पैदा हुआ कोरोना वायरस ने विश्व स्तर पर एक तरफ मंदी का असर दिखाया और दूसरी तरफ विश्व समुदाय को इक्कीसवीं सदी में फिर से सोचने के लिए विवश कर दिया है कि जब सम्पूर्ण विश्व एक बाजार का रूप ले रहा है और ऐसे में इस तरह की कूटनीतिक चाल कितनी मानवतावादी है, इस पर विचार करना होगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं. वे सी.सुब्रमण्यम राष्ट्रीय मीडिया अवॉर्ड—2016 द्वारा सम्मानित हैं)

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