गांव की सुख-शांति व समृद्धि के लिए की जाती है थात पूजन

कमल सिराईं के करड़ा गांव में पाँच दिवसीय थात पूजन सम्पन. 

परम्पराओं का अनूठा मेला देखने को मिलता है थात पूजा में.

हर पांच वर्षों में गांव की सुख-शांति व समृद्धि के लिए की जाती है थात पूजन

  • नीरज उत्तराखंडी, पुरोला 

विकासखंड के कमल सिराईं के करड़ा गांव में चल रहे पांच दिवसीय थात(जाग) माता की विशेष पूजा अर्चना कर समापन किया गया. थात माता की यह विशेष पूजा अर्चना हर because पांच वर्षों में गांव की सुख-शांति व समृद्धि के लिए 5 से 9 दिनों तक की जाती है.  थात पूजन के इस विशेष पूजन में जहां संस्कृति की अनुपम झलक देखने को मिलती है वही आदिकाल से चलती आ रही परम्पराओं का नजारा देखने को मिलता है.

भटकोटी

हिमाचल के मनेवटी गांव सेbecause पांडुलिपि के विद्वान पण्डित पांडेय जाति के ब्राह्मण इस अनूठी पूजा को कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. हस्त लिखित पांडुलिपि के ग्रंथों से ही पण्डित जिन्हें पण्डवाण कहा जाता है 5 से 9 दिनों तक थात के मध्य भाग में प्राचीन काल से बनी हवन कुंड में हवन के साथ साथ विशेष पूजन करते हैं.

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हिमाचल के मनेवटी गांव से पांडुलिपि के विद्वान पण्डित पांडेय जाति के ब्राह्मण इस अनूठी पूजा को कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. हस्त लिखित पांडुलिपि के ग्रंथों से because ही पण्डित जिन्हें पण्डवाण कहा जाता है 5 से 9 दिनों तक थात के मध्य भाग में प्राचीन काल से बनी हवन कुंड में हवन के साथ साथ विशेष पूजन करते हैं.

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अंतिम दिवस पर अपने अपने खेतों से हर ग्रामीण मिट्टी एकत्रित कर विशेष पूजा में लाते हैं पूजा के उपरांत उस मिट्टी को पुनः उन्ही खेतों में डाल दिया जाता है जो अन्न धन की समृद्धि का संकेत देता है. वही अपने घरों में रखे गए लाइसेंसी अस्त्र व कृषि से सम्बंधित पारम्परिक कृषि यंत्रों व औजारों को भी इस विशेष पूजा में because पूजन के लिए शामिल किया जाता है. वंही अंतिम दिवस पर बकरा,खाडू, मुर्गा,सुअर के साथ साथ श्रीफल,कद्दू आदि कई फलों की गांव के बाहर बंधन करते हुए वलि की परंपरा अभी भी कायम है.

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यह पण्डवाणी लिपि हमारी पारम्परिक व पैतृक धरोहर है जिसको आज हमारी नई पीढ़ी भी संजोए रखने का काम कर रही है हमारे पास पण्डवाणी लिपि में जो साँचा because (ग्रन्थ) है, यह हस्तलिखित है जो सदियों से ही चलता आ रहा है. हिमालयी क्षेत्रों में पांडवों के वनवास काल के समय से ही यह लिपि मिली है जिसकी भाषा संस्कृत से भिन्न हैं.

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गांव के पूर्व प्रधान व स्याणा जगमोहन रावत,धीरपाल रावत,विनोद रतूड़ी आदि ने बताया कि यह पूजा हर पांच वर्षों में होती है जिसके लिए पूर्वजों के समय से ही हिमांचल के मनेवटी गांव से पण्डवाण लाये जाते हैं. वही थात पूजा के लिए आये पण्डित बबिता पांडेय,विनीत पांडेय व विवेक पांडेय ने बताया कि यह पण्डवाणी लिपि because हमारी पारम्परिक व पैतृक धरोहर है जिसको आज हमारी नई पीढ़ी भी संजोए रखने का काम कर रही है हमारे पास पण्डवाणी लिपि में जो साँचा (ग्रन्थ) है यह हस्तलिखित है जो सदियों से ही चलता आ रहा है कहा जाता है कि हिमालयी क्षेत्रों में पांडवों के वनवास काल के समय से ही यह लिपि मिली है जिसकी भाषा संस्कृत से भिन्न हैं.

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समापन दिवस पर ग्राम प्रधान because अंकित रावत,नेपाल सिंह रावत,मनोज रतूड़ी,जवाहर सिंह भंडारी,बुद्धि सिंह भंडारी, गंगाराम,रणदास,प्रताब रावत आदि ग्रामीण उपस्थित रहे.

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