टैपिओका: गरीबों का भोजन!

हिमालयन अरोमा भाग-3

  • मंजू काला

यदि किसी पहाड़ी से यह पूछा जाय की उनकी माँ, काकी, बडी,  उपवास के दिन कौन से फल को खाकर पूरा दिन निराहारः रहतीं थीं तो सबका  यही उत्तर होगा की “तेडू़”,  यानी के टैपिओका (Tapioca).  हमारे पहाड़ में शिवरात्रि के अवसर पर तैडू़- और पके हुए कद्दू को  उबालकर  खाने की परंपरा रही है.

गढ़वाल हिमालय में शिवरात्री के दिन शाकाहारी आहार और प्रसाद के तौर पर इसे विशेष रूप से ग्रहण किया जाता है.  अच्छा वर पाने के लिए पहाड़ी बनिताएं तरूड़ का फल भोले बाबा को अर्पण करती  हैं.  तरूड़ (तल्ड) एक तरह का कंद है, जिससे पहाड़ में सूखी तरकारी बनाई जाती है,  रसे वाला साग  बनता है, स्वाले बनाये जाते हैं,  रैत बनाया जाता है,  पकौड़े  बनाये जाते हैं, स्नैक्स के तौर पर भी  इसका आनंद पहाड़ी लोक के द्वारा उठाया जाता है.

जंगलों में घसियारी महिलाओं के द्वारा इस फल को बोनस के रूप में घास के साथ बसेरों में लाया जाता है.  तरूड़, तौड़ या तैड़ू बारहमासी बेल वाला पौधा है. इसका जड़रुपी तना एक बड़े भूमिगत कंद के रूप जमीन के अंदर मोटाई और लम्बाई में लगातार बढ़ता रहता है, जो विभिन्न आकार लिए हुए हो सकता हैं.  साथ इसकी बेल भी जमीन के ऊपर फैलती रहती है और आस पास की वनस्पति को आच्छादित कर लेती है. इसकी बेल पर फल भी लगते है जो मुख्यत: इसके बीज के रूप में प्रयोग किये जाते हैं.

टैपिओका  से बने साबूदाना को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शरणार्थियों का मुख्य भोजन माना जाता था जो आसानीसे उपलब्ध होता था और सस्ता भी था.

तरूड़ का पौधा बेल के रूप में हिमालयी क्षेत्रो में कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिमी चीन तक विभिन्न स्थानों में समुद्र तल से 500 से 3000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों में बंजर जमीन पर या जंगलों में जंगली बेल के रूप में उगता पाया जाता है.  पहाड़ों में कहीं-कहीं घरों में भी लोग इसे पहाड़ी खेतों के मेंड़ के ढलान पर या बड़े घड़े के अंदर भी उगाते हैं. कुमाऊँ में घर पर उगाये गए तरूड़ को घर-तरूड़ और जंगल से प्राप्त तरूड़ को बण-तरूड़ कहते हैं. पर इसकी व्यवसायिक क्षमता देखते हुए भारत के कुछ मैदानी राज्यों जैसे पंजाब, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश में इसकी व्यवसायिक खेती की जाती है. केरल और टेपियूका एक दूसरे के पूरक हैं,  वे  इसे  कसाव कहते हैं और इससे बने वयंजन को- कप्पा. कप्पा यानि कि तैडू को मैश कर कर  बनाया गया व्यंजन. इसके पीछे  स्नेह से  पगी एक  प्यारी सी  प्रेम कथा भी  है.

वयोवृद्ध पत्रकार वीके माधवनकुट्टी ने अपनी पुस्तक ‘द विलेज बिफोर टाइम’ में उत्तरी केरल में अपने गांव में टैपिओका के आगमन के बारे में लिखा है. हमारे पहाड़ में तैडू़- की बेल को खजाने के तौर पर देखा जाता था. आंगन में गोरू,  आंगन में तेडू़ की बेल,   तिबारी में मक्की, और छत पर कद्दू होना संपन्न होने की निशानी माना जाता था.

टैपिओका (Tapioca) को अक्सर ‘गरीबों का भोजन’ कहा जाता है. जो लोग चावल को खरीद पाने में असमर्थ होते है वह अक्सर टैपिओका का अपने भोजन में समावेश करते है. टैपिओका  से बने साबूदाना को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शरणार्थियों का मुख्य भोजन माना जाता था जो आसानीसे उपलब्ध होता था और सस्ता भी था.

त्वचा को कोमल और खूबसूरत बनाने के लिए के लिए टैपिओका का इस्तेमाल कर सकते हैं. टैपिओका में विटामिन्स, मिनल्स और एंटी ऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं जो त्वचा को निखारने में मदद करते हैं.

सिरदर्द को कम करने के लिए टैपिओका का इस्तेमाल किया जा सकता है. टैपिओका में फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है जो सिरदर्द को कम करने में मदद करता है.

काले और मजबूत बालों के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते हैं. इसके लिए महंगे- महंगे तेल, शैम्पू और अन्य प्रोडक्ट का इस्तेमाल अपने बालों पर करते हैं. लेकिन इससे हमें तभी फायदा मिलता है जब हमारे शरीर में पौष्टिक तत्वों की कोई कमी नहीं होती है.

सफ़ेद बाल और बालों का झड़ना जैसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए भी टेपियोका का इतेमाल किया जा सकता है. टैपिओका एक ऐसा स्टार्च है जिसमें प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम और अन्य जरुरी तत्व पाए जाते हैं जो बालों के लिए बहुत आवश्यक होते हैं.

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में अक्सर हमरा पेट अक्सर खराब होता रहता है. शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में पेट का महत्वपूर्ण योगदान होता है. पाचन तंत्र में खराबी आने से कई सारी समस्याएं होने लगती है. इसलिए पाचन तंत्र का मजबूत होने बहुत जरुरी होता टेपिओका में फाइबर और कार्बोहाइड्रेट की उच्च मात्रा पाई जाती है जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाने का कार्य करती है. अत: अच्छी पाचन क्रिया के लिए अपने दैनिक जीवन में टैपिओका को शामिल कर सकते हैं.

स्वस्थ शरीर के लिए संतुलित वजन होना बहुत आवश्यक होता है. जिस प्रकार से ज्यादा वजन होने से परेशानी होती है ठीक उसी प्रकार से ज्यादा वजन कम होना भी एक समस्या है.

जो लोग दुबलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं उन्हें अपनी दिनचर्या में टैपिओका को शामिल करना चाहिए. टैपिओका में कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी अधिक मात्रा में पाई जाती है जो वजन बढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए किसी औषधि से कम नहीं है.

(मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण,  पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्‍पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्‍यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है.)

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