Home सेहत आखिर क्या है “हिमालयन अरोमा”!

आखिर क्या है “हिमालयन अरोमा”!

0
आखिर क्या है “हिमालयन अरोमा”!

हिमांतर.कॉम (himantar.com) पर ‘हिमालयन अरोमा’ नामक एक पूरी सीरिज जल्द ही…

भारत एक विविध देश है because और कई संस्कृतियों, धर्मों और व्यंजनों का घर है. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध हर व्यंजन एक दूसरे से अलग है और इसकी अलग-अलग विशेषताएं हैं. भारतीय व्यंजनों में से प्रत्येक को वर्षों से सावधानीपूर्वक विकसित किया गया है और रसोइयों के स्थान और इलाके सहित कई कारक भोजन की विशिष्टता और विशिष्टता को दर्शाते हैं.

ज्योतिष

इसका सबसे अच्छा उदाहरण because ‘हिमालयी’ व्यंजन है. यदि हम हिमाचल प्रदेश के अत्यंत गंभीर और चरम मौसम को ध्यान में रखते हैं, तो हम समझ सकते हैं कि ‘हिमालयी’ व्यंजन कितने अलग हैं और कितने खास हैं. यहां सबसे लोकप्रिय लेकिन व्यापक रूप से मनाए जाने वाले ‘हिमालयी’ व्यंजनों के बारे में कुछ प्रसिद्ध तथ्य हैं.

ज्योतिष

क्या आपने कभी हिमालयन भोजन का स्वाद चखा है और सोचा है कि यह मसालेदार क्यों नहीं होता? ऐसा इसलिए क्योंकि मसालों के इस्तेमाल से खाना पचाना मुश्किल हो जाता है. बहुत कठोर परिस्थितियों और चट्टानी because इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है यदि वे ‘भारी’ और ‘मसालेदार’ भोजन को पचाने में असमर्थ हैं. और हिमालय में रहने वाले लोग बहुत सारे किण्वित खाद्य पदार्थ खाते हैं क्योंकि यह आंत को स्वस्थ रखने में मदद करता है और खाए गए भोजन को जल्दी पचाने में मदद करता है.

ज्योतिष

हिमालय में खाए जाने वाले खाद्य because पदार्थ प्रोटीन, साथ ही कार्बोहाइड्रेट और वसा में उच्च होते हैं. ऐसे पोषक तत्वों से भरपूर आहार लोगों को खराब मौसम में भी अपनी दैनिक गतिविधियों को करने में मदद करता है. शरीर को कठोर मौसम का सामना करने और अथक परिश्रम करने के लिए आवश्यक ऊर्जा देता है. हिमालय में खाया जाने वाला भोजन वहां प्रचलित कठोर because और कठोर सर्दियों की स्थिति से निपटने में मदद करता है और खाने वालों को बिना किसी असफलता के पोषण भी देता है.

ज्योतिष

दिलचस्प बात यह है कि हिमालय में ‘विंटर मेन्यू’ जैसी कोई चीज नहीं है. इसका कारण यह है कि वहां अधिकांश भोजन केवल पाले से मुक्त दिनों में ही उगाया जाता है, जिसके बाद जरूरत पड़ने पर उनका भंडारण because और सेवन किया जाता है. कुछ खाद्य पदार्थ जो भूमिगत रूप से उगते हैं, जैसे जड़ वाली सब्जियां (रूट सब्जियां), एक गड्ढे में जमा की जाती हैं और सूखे पत्तों से ढकी होती हैं. हिमालयी राज्यों की भोजन संस्कृति को जानने व समझने के लिए “हिमालयन अरोमा नाम से एक श्रंखला प्रस्तुत की जा रही है  जिसमें because हम हिमाचल, गढ़वाल हिमालय, नेपाल, कशमीर हिमालय, कलाश हिमालय, खैबर हिमालय, कुमाऊँ हिमालय, मिजोरम, लद्दाख, असाम, सिक्कम, त्रिपूरा,  की भोजन  संस्कृति  को जानने  का  प्रयास  करेंगे! इस श्रंखला में हम हिमालयन फ्रूट, हिमालयन, बैरीज  पर भी  चर्चा करेंगे! “हिमालयन अरोमा” से हमें परिचित करायेंगी- मंजू काला!

ज्योतिष

ट्रैवल फोटोग्राफर व ब्लागर होने के साथ-साथ आप because बर्ड लोरर व भारतीय खानों की विशेषज्ञा भी है! आप बच्चों की स्टोरी टेलर भी है, व ओडिसी क्लासिकल डांस में भी आपको बैचलर डिग्री प्राप्त है! आप अंग्रेजी, इतिहास  व   क्लासिकल नृत्य, की मास्टर डिग्री होल्डर है!

ज्योतिष

संप्रति आप “मंजू दिल से” नाम से हिमांतर में ब्लाग पोस्ट लिखती हैं!  “लोकगंगा राष्ट्रीय पत्रिका की आप संयुक्त संपादक है और हिमालयी सरोकारों पर केंद्रित “हिमांतर पत्रिका” की आप सहायक संपादक हैं! because भारतीय भोजन के इतिहास की आप विशेषज्ञ हैं! “ग्राम-टूडे” नामक पत्रिका आपके भारतीय पक्षियों से संबंधित लेख प्रकाशित करती रहती है! आकाशवाणी और दूरदर्शन से  भी (हमारे पकवान!) आपकी भोजन और पक्षियों से संबंधित वार्ताएं प्रसारित होती है! आपने दूरदर्शन के  कार्यक्रमों में- एक कव्यत्री, भारतीय सिनेमा because की विशेषज्ञा, परंपरागत भारतीय भोजन की विशेषज्ञा के तौर पर प्रतिभाग किया है! आप टी “टेलर” भी है! और ट्रैकर भी!! धाद संस्था के “फंची”, कार्यक्रम- जो कि हिमालय के उत्पादन व काश्तकारों पर आधारित है, की आप एंकर हैं!” धाद के साथ मिलकर आप हिमालय के उत्पादन और उत्तराखंड की भोजन परंपरा पर कार्य कर रही हैं!

ज्योतिष

पारंपरिक पहाड़ी भोजन में आप फ्यूजन भी कर रही हैं! प्रकृति से लगाव होने के कारण नेचर फोटोग्राफी में भी आपकी खासी दिलचस्पी है! बच्चों को कहानी के माध्यम से चिड़ियों की जानकारी देना आपका प्रिय शगल है!because आकाशवाणी के बच्चों पर आधारित कार्यक्रम- “फूल वारी” के माध्यम से आप, बच्चों को पक्षियों से संबंधित जानकारी देती है! पिता और पति दोनों के महकमा-ए-जंगलात से ताल्लुक होने के कारण आपका हिमालय  और उसकी वनस्पति के बाबत जानकारी रखना स्वाभाविक है! एकांत में बसावट होने के कारण पशु पक्षियों से बतियाते हुए आप अपने पिता की पुस्तकें भी कब पलटने लगीं.. ये स्वयं आप भी न जान पाईं!

ज्योतिष

पिता को अंग्रेजी साहित्य से लगाव था, because तो आप भी रूचि से अंग्रेजी साहित्य पढ़ने लगीं! “एम्मा” आपकी प्रिय पात्र रही है! भारतीय संस्कृति से आपका खासा लगाव है! मुगल स्थापत्यकला व  भारतीय भित्ति चित्रों की भी आपको गहरी समझ है!  भारतीय संस्कृति पर आधारित आपकी पुस्तक- “इंडियन बैलैड, अलमंडा टू चेट्टीनाड”  शीघ्र ही पाठकों के लिए उपलब्ध हो जायेगी!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here