Tag: Uttarakhand

अच्छी किस्म का बीज ने मिलने से काश्तकार लाचार

अच्छी किस्म का बीज ने मिलने से काश्तकार लाचार

उत्तराखंड हलचल, समसामयिक
डा० राजेंद्र कुकसाल जिन सपनों को लेकर पहाड़ी राज्य की स्थापना की गई थी, वे सपने आज भी सपने बन कर रह गये है उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकड़ों के अनुसार 4876 हैक्टियर में अदरक की कास्त की जाती है, जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है।  अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं- 1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल । 2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा। 3- डॉ. यशवंत सिंघ परमार युनिवर्सिटी ऑफ़ हॉर्टिकल्चर एंड फोरेस्ट्री, नौणी सोलन, हिमाचल प्रदेश उद्यान विभाग विगत 20 - 30 बर्षो से 10 से 15 करोड़ रुपए का अदरक बीज उत्तर पूर्वी राज्यों से दलालों के माध्यम से मंगाता आ रहा है, यह बीज कृषकों को न तो समय पर मिलता है और न ही इस बीज से अच्छी उपज प्राप्त होती है किन्तु उद्...
गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
नवीन नौटियाल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। इस श्रृंखला में गढ़वाल में निवास कर रही ब्राह्मण जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बाँटते हैं। ब्राह्मण :- गढ़वाल में निवास करने वाली ब्राह्मण जातियों के बारे में यह माना जाता है कि 8वीं - 10वीं शताब्दी के बीच ये लोग अलग-अलग मैदानी भागों से आकर यहाँ बसे और तत्पश्चात यहीं के रैबासी (निवासी) हो गए। गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, द...
तिलाड़ी कांड: जब दहाड़ उठी रवाँई घाटी

तिलाड़ी कांड: जब दहाड़ उठी रवाँई घाटी

इतिहास
उत्तराखंड का जलियावाला बाग तिलाड़ी कांड सकलचन्द रावत आज रवाँई जौनपुर की नई पीढ़ी के किशोर कल्पना ही नहीं कर सकते कि सन 1930 में रवाँई की तरुणाई को आजादी की राह पर चलने में कितनी बाधाओं का सामना करना पड़ा था। because पौरुष का इतिहास खामोश था, वक्त की वाणी मूक थी, लेखक की कृतियां गुमशुम थी और बेड़ियों से जकड़ी हुई थी। आजादी जंगलात अफसर ने अपनी रिवाल्वर से निहत्थे किसानों पर फायर किये जिससे अजितू तथा झून सिंह ग्राम नगांणगांव वाले सदा के लिये सो गये। कई लोग घायल हुये। साथ because ही साथ मजिस्ट्रेट की जांघ पर भी गोली लगी। हत्यारा रतूड़ी भाग खड़ा हुआ। किसानों का दल घायलों सहित मजिस्ट्रेट को लेकर राजतर पहुंचे। गिरफ्तारी के लिये आई हुई पुलिस से जब हत्याकांड की बात सुनी तो भयभीत हो गये और जिन लोगों को गिरफ्तार कर लाये थे उन्हें छोड़ कर भाग गये। यूसर्क सन 1930, 17-18 गते ज्येष्ठ। उस दिन दह...