गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

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गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1
  • नवीन नौटियाल

उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। इस श्रृंखला में गढ़वाल में निवास कर रही ब्राह्मण जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल

गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बाँटते हैं।

ब्राह्मण :- गढ़वाल में निवास करने वाली ब्राह्मण जातियों के बारे में यह माना जाता है कि 8वीं – 10वीं शताब्दी के बीच ये लोग अलग-अलग मैदानी भागों से आकर यहाँ बसे और तत्पश्चात यहीं के रैबासी (निवासी) हो गए। गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बाँटते हैं। गढ़वाल की ब्राह्मण जातियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है –
(अ) सरोला ब्राह्मण :– इसके अंतर्गत वे ब्राह्मण जातियाँ आती हैं जिनका मुख्य काम शादी-विवाह व अन्य शुभ-अवसरों पर सम्पूर्ण गाँव-कुटुंब-भयात के लिए भात पकाना (खाना पकाना) था। इसीलिए इन्हें सरोला कहा जाता है। सरोला ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जिन्हें प्राचीन समय में चाँदपुर गढ़ी के राजा ने रसोई के लिए नियुक्त किया था। ‘सर’ का सरोला ‘गाड’ का गंगाड़ी। इस उक्ति के अनुसार ऊँचे स्थानों पर रहने वाले ब्राह्मण सरोला तथा नदी घाटी के निवासी ब्राह्मणों को गंगाड़ी कहा जाने लगा। आरम्भ में सरोलों की बारह जातियाँ ही थीं। कहा जाता है कि नौटियालों का पूर्व पुरुष जो नौटी गाँव में बसा था, गढ़ नरेशों के पूर्वज कनकपाल के साथ गढ़वाल में आया था।
1. नौटियाल :- संवत 945 में नौटियाल जाति के सरोला लोग धार मालवा से रजा कनकपाल के साथ आकर तली चाँदपुर के नौटी गाँव में बस गए। नौटियाल जाति के लोगों के बसने के कारण ही इस गाँव का नाम नौटी गाँव पड़ा। नौटियाल जाति के वंशजों का आरम्भ इसी गाँव से माना जाता है। राजा कनकपाल के साथ आयी थी। ढंगाण, पल्याल, मंजखोला, गजल्डी, चान्दपुरी, बौसोली नामक छः जाति संज्ञा इसी एक जाति की शाखा हैं।
2. सेमल्टी :- रतूड़ी जी के अनुसार, इनके आदि पुरुष संवत 965 में वीरभूम, बंगाल से गढ़वाल के सेमल्टा गाँव में आकर बसे थे। सेमल्टा गाँव के निवासी होने के कारण ये सेमल्टी कहलाए।
3. मैटवाणी :- गढ़वाली आद्यगौड़ ब्राह्मण मैटवाणी गौड़ देश छखात, बंगाल से संवत 975 में गढ़वाल चाँदपुर गढ़ी के मैटवाणा नस्मक गाँव में आकर बसे। इस जाति के मूल पुरुष रूपचंद त्र्यम्बक थे।
4. गैरोला :- आद्यगौड़ सरोला ब्राह्मण गैरोला जाति के लोगों का पैतृक गाँव चाँदपुर में माना जाता है। इनके आदि पुरुष जयानन्द और विजयानन्द संवत 972 में गैरोली गाँव में आकर बसे थे। इसी कारण ये गैरोला कहलाए।
5. चमोली :- मूल रूप से सरोला द्रविड़ ब्राह्मण हैं जो रामनाथ विल्हित नामक स्थान से संवत 924 में आकर गढ़वाल के चाँदपुर परगने के चमोली नामक गाँव में आकर बसे। यह जाति सरोलाओं में प्रमुख मानी जाती है और ‘बारहथोकी’ समुदाय का अंग है। नंदादेवी राजजात यात्रा में इस जाति के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
6. डिमरी :- डिमरी ब्राह्मण दक्षिण भारत के द्रविड़ ब्राह्मण माने जाते हैं। इनके मूल पुरुष राजेन्द्र और बलभद्र संतोली, कर्नाटक से आकर गढ़वाल में चाँदपुर के डिम्मर गाँव में आकर बस गए थे जिसके फलस्वरूप ये डिमरी हुए।
7. थपलियाल :- संवत 980 में थपलियाल सरोला गौड़ ब्राह्मण जाति के लोगचाँदपुर के थापली नामक गाँव में आकर बस गए। थपलियाल जाति के लोग चाँदपुर गढ़ी के अलावा देवलगढ़, श्रीनगर, और टिहरी में भी प्रसिद्द रहे हैं।
8. सेमवाल :- आद्यगौड़ सरोला ब्राह्मण सेमवाल संवत 980 में वीरभूम, बंगाल से गढ़वाल के सेमगाँव में आकर बसे और फिर यहीं के निवासी हो गए। इनके मूल पुरुष प्रभाकर और निरंजन थे।
9. बिजल्वाण :- गौड़ ब्राह्मण बिजल्वाण जाति के आदि पुरूष है बिज्जू थे। जो संवत 1100 में वीरभूम, बंगाल से आकर गढ़वाल में बसे थे। संभवत: उन्हीं के नाम पर ही इस जाति का नाम बिजल्वाण पड़ा।
10. लखेड़ा :- आद्यगौड़ सरोला ब्राहमण लखेड़ा जाति के मूल पुरुष नारद और भानुवीर संवत 1117 में प. बंगाल के वीरभूम से आकर गढ़वाल के लखेड़ी नामक गाँव में आकर बसे।
11. खण्डूड़ी :- गढ़वाल में सरोलाओं के बारहथोकी समुदाय में से एक ब्राह्मण जाति खंडूड़ी मूलतः गौड़ ब्राह्मण जाति है, जिनका गढ़वाल के खंदूड़ा गाँव में आगमन संवत 945 में वीरभूम बंगाल से हुआ।
12. कोटियाल/ कोठियाल :- गौड़ ब्राहमण कोटियाल/ कोठियाल गढ़वाल के सरोला जाति की एक प्रमुख जाति है। जो चांदपुर के कोटी गाँव मैं आकर बसी थी और यहाँ कोटियाल अथवा कोठियाल नाम से प्रसिद हुई।
13. मैराव के जोशी :- ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुमाऊँ से गढ़वाल में आकर बसे और यहीं के निवासी हो गए।
14. रतूड़ी :- इस जाति को सरोला समुदाय की प्रमुख जाति माना जाता है। यह आद्यगौड़ ब्राह्मण जाति गौड़ देश से संवत 980 में गढ़वाल में आयी और चाँदपुर के समीप रतुड़ा गाँव में बस गयी। टिहरी के राजा के राज दरबार में वजीर पंडित रहे प. हरिकृष्ण रतूड़ी को सर्वप्रथम गढ़वाल का प्रामाणिक इतिहास लिखने का श्रेय भी जाता है।
15. सेमवाल :- आद्यगौड़ ब्राह्मण जाति सेमवाल के मूल पुरुष प्रभाकर और निरंजन वीरभूम. पश्चिम बंगाल से संवत 980 में सेमगाँव में बसे थे। सेमगाँव में बसने के कारण ये सेमवाल कहलाए।
16. नवानी :- इनकी पूर्व जाति सती थी और ये संवत 980 में गुजरात से गढ़वाल के नवन गाँव में आकर बसे जिसके कारण इस जाति का नाम नवानी पड़ा।
17. हटवाल :- गौड़ ब्राह्मण हटवाल वीरभूम, बंगाल से 1059 संवत में गढ़वाल के हाटगाँव में आकर बसे जिसके कारण ये हटवाल कहलाए। इनके मूल पुरुष सुदर्शन और विश्वैश्वर थे।
18. सती :- गढ़वाल की ये सरोला जाति गढ़वाल में गुजरात से आई और चाँदपुर गढ़ी में बसी है। ब्राह्मण जाति नवानी इस जाति की एक उप-शाखा है। सती जाति के लोग गढ़वाल के अलावा कुमाऊँ में भी हैं।
19. कंडवाल :- ये मूलत: सरोला ब्राहमण है जो गढ़वाल के कांडा गाँव में बसने से कंडवाल कहलायी। कंडवाल जाति के लोग कुमाऊँ के कांडई नामक गाँव से चाँदपुर परगने में आकर बसे थे।

सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मण वही ब्राह्मण हैं जिनके मूल पुरुष इस देश के आदिम निवासियों में नहीं थे। बल्कि वे लोग क्रमशः आठवीं या नवीं शताब्दी से और उसके पश्चात भी इस देश में आकर बसे, और बसते रहे। नानागोत्री या खस ब्राह्मण गढ़वाल के आदिम निवासी और नवागन्तुक लोगों की मिली-जुली संतान पायी जाती है, जिसके साक्षी रूप उनके आचार-विचार विद्यमान हैं।

(ब) गंगाड़ी ब्राह्मण :- इसके अंतर्गत उन ब्राह्मण जातियों को रखा जाता है जिनकी व्यवहारिकता का क्षेत्र केवल अपनी बिरादरी और अपने सगे-सम्बंधियों या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष जातियों तक ही सीमित होता है। रतूड़ी जी का मानना है कि सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मण वही ब्राह्मण हैं जिनके मूल पुरुष इस देश के आदिम निवासियों में नहीं थे। बल्कि वे लोग क्रमशः आठवीं या नवीं शताब्दी से और उसके पश्चात भी इस देश में आकर बसे, और बसते रहे। नानागोत्री या खस ब्राह्मण गढ़वाल के आदिम निवासी और नवागन्तुक लोगों की मिली-जुली संतान पायी जाती है, जिसके साक्षी रूप उनके आचार-विचार विद्यमान हैं, जो अब भी उनके बीच उसी तरह पाये जाते हैं। गंगाड़ी और सरोला ब्राह्मणों के गोत्र भी एक हैं और धार्मिक और लौकिक रिवाज भी एक हैं। केवल भेद इतना है कि सरोला जाति का पकाया हुआ दाल चावल सब जातियाँ खा लेती हैं जबकि गंगाड़ी ब्राह्मणों का पकाया हुआ दाल चावल उनकी रिश्तेदारी में ही चलता है।
1. बुधाणा/बहुगुणा :- गढ़वाल में गंगाड़ी ब्राह्मणों में प्रमुख आद्यगौड़ ब्राह्मण बहुगुणा जाति सम्वत 980 में गौड़ बंगाल से गढ़वाल के बुघाणी नामक गाँव में आकार बसी। बुघाणी गाँव में बसने के कारण ये बहुगुणा कहलाए। बहुगुणा जाति को चौथोकी समुदाय* (डोभाल, बहुगुणा, डंगवाल और उनियाल) के अंर्तगत रखा जाता है।
2. डंगवाल :- डंगवाल जाति के द्रविड़ मूल के गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 982 में संतोली, कर्नाटक से डांग गाँव में बसे थे। इनके मूल पुरुष धरणीधर थे।
3. डोभाल :- डोभाल जाति के लोग संवत 945 में संतोली, कर्नाटक से आकर गढ़वाल के डोभा गाँव में आकर बसे, इसीलिए ये डोभाल कहलाए। इस जाति के मूल पुरुष कर्णजीत डोभा सर्वप्रथम वे ही डोभा गाँव में आकर बसे थे।
4. उनियाल :- संवत 981 में मिथिला से जयाचंद और विजयाचंद नामक दो पृथक गोत्री ममेरे-फुफेरे भाई श्रीनगर, गढ़वाल के वेणीगाँव में आए और वहीं बस गए। वे मैथिल ब्राह्मण थे। वहीं से उनियाल जाति का आरम्भ हुआ।
5. घिल्डियाल :- घिल्डियाल जाति को आद्यगौड़ ब्राह्मण श्रेणी में रखा जाता है। इस जाति के लोग गौड़ देश से संवत 1100 में गढ़वाल में आकर बसे। इसलिए इनका नाम घिल्डियाल पड़ा।
6. नैथानी/नैथाणी :- नैथानी मूलरूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं जो सम्वत 1200 कन्नौज से आकर गढ़वाल के नैथाणा नामक गाँव में आकार बस गए। आपके मूलपुरुष कर्णदेव और इंद्रपाल जो सबसे पहले गढ़वाल में आए।
7. जुयाल :- गंगाड़ी ब्राह्मणों की महाराष्ट्रीय जाति जुयाल दक्षिण भारत से जुया गाँव में संवत 1700 में इनके आदि पुरुष बासुदेव और विजयानंद के निर्देशन में गढ़वाल में आयी और तत्पश्चात यहीं बस गयी ।
8. सकलानी/सकल्याणी :- कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की यह शाखा सम्वत 1700 के आसपास अवध से आकर गढ़वाल के सकलाना गाँव में बसी। इनके मूल पुरुष नाग देव ने ही सकलाना गाँव बसाया था। कालांतर में इस जाति के नाम पर इस पट्टी का नाम भी सकलाना पट्टी पड़ा। इस जाति के लोगों को ‘पुजारी’ भी कहा जाता है।
9. जोशी :- जोशी जाति के ब्राह्मणों की पूर्व जाति द्रविड़ मानी जाती है। ये जाति कुमाऊँ से सम्वत 1700 में गढ़वाल आई और उसके बाद यहीं बस गयी।
10. तिवारी/तिवाड़ी :- त्रिपाठी मूल के तिवाड़ी सरोला ब्राह्मण लगभग 1700 संवत में कुमाऊँ से आकर गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों में बस गए और तत्पश्चात वहीं के निवासी हो गए।
11. पैन्यूली :- पैन्यूली मूलत: गंगाड़ी गौड़ ब्रह्मण हैं जो संवत 1207 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल के पाण्याला गाँव रमोलि में बसे थे। इनके मूल पुरुष ब्रह्मनाथ थे।
12. चंदोला :- इनकी पूर्व जाति सारस्वत है। ये पहले पंजाब से चंदोसी और उसके बाद सम्वत 1633 में गढ़वाल आए आए। इनके मूलपुरुष लूथराज माने जाते हैं। सम्भवत: चंदोसी में बसने के कारण ही ये चंदोला हुए।
13. ढौंडियाळ/ढौंडयाल :- गढ़वाल के नरेश राजा महिपति शाह द्वारा चोथोकी समुदाय में वृद्धि करते हुए 32 अन्य जातियों को भी इस समुदाय में शामिल किया गया जिनमें ढौंडियाल प्रमुख जाति थी। इस जाति के मूल पुरुष रूपचंद गौड़ ब्राहमण थे जो राजपुताना से सम्वत 1713 में गढ़वाल के ढौंड गाँव में आकर बस गए थे। इनके द्वारा ही ढौंड गाँव बसाया गया था, जिस कारण इन्हें ढौंडियाल कहा गया।
14. नौड़ियाल/नौडियाल/नौरियाल :- ये मूलत: गढ़वाली गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण हैं। जो अपने मूल स्थान भृंग चिरंगा से सम्वत 1600 में गढ़वाल के नौड़ी गावं में आए और वहीं बस गए। इनके मूलपुरुष पंडित शशिधर द्वारा ही नौड़ी गाँव बसाया गया था। इसी गाँव के नाम पर ही इस जाति को नौडियाल कहा गया।
15. ममगाईं :- ममगाईं मूलत: गौड़ ब्रह्मण है जो उज्जैन, महाराष्ट्र से आकर गढ़वाल में बसे और मामा के गाँव में बसने के कारण ममगाईं नाम से प्रसिद्द हुए। इस जाति के लोग मूलत: पौड़ी जिले में बसे हैं लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी में भी इस जाति के कुछ गाँव मिलते हैं।
16. बड़थ्वाल :- बड़थ्वाल मूलत: सारस्वत ब्राहमण हैं जो संवत 1543 में गुजरात से आकर गढ़वाल में बसे। इस जाति के मूल पुरुष पंडित सूर्य कमल मुरारी गुजरात से आकर गढ़वाल के बड़ेथ नामक गाँव में बसे बाद में इनके वंशज बड़थ्वाल नाम से प्रसिद हुए।
17. कुकरेती :- ये द्रविड़ ब्रह्मण है, जो विलहित नामक स्थान से संवत 1409 में आकर गढ़वाल मैं बसे और फिर यहीं के निवासी हो गए। इनके मूल पुरुष गुरुपति कुकरकाटा नाम गाँव में आकर बसे थे, यही कुकरकाटा नामक गाँव में बसने के कारण ही ये कुकरेती नाम से प्रसिद हुए।
18. धस्माना/धस्माणा :- धस्माना गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण हैं जो उज्जैन से संवत 1723 में गढ़वाल आए और धस्मण गाँव में बस गए थे। इनके मूलपुरुष हरदेव, वीरदेव और माधोदास थे।
19. कैंथोला :- कैंथोला की पूर्व जाति गुजराती भट्ट थी। ये गुजरात से संवत 1669 में अपने मूल पुरुष रामवितल के निर्देशन में गढ़वालो के कैंथोली गाँव में आये और वहीं बस गए थे।
20. सुयाल :- सुयाल जाति के ब्राह्मणों के मूलपुरुष दजल और बाज नारायण गुजरात से आकर गढ़वाल के सुई गाँव में बसे और यहीं के निवासी हो गए ।
21. बंगवाल :- बंगवाल गौड़ वंशीय ब्राह्मण हैं। ये सम्वत 1725 में मध्यप्रदेश से गढ़वाल के बांगा गाँव में आकर में बसे और यहीं के निवासी हो गए।
22. अन्थ्वाल/अणथ्वाल :- अणथ्वाल सारस्वत ब्रह्मण हैं जो संवत 1612 में पंजाब से गढ़वाल के अणेथ गाँव में आए और तत्पश्चात यहीं के निवासी हो गए । अणथ्वाल जाति के लोग मूलत: अफगानिस्तान मूल के माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अणथ्वाल नाम की एक जाति लाहौर, पाकिस्तान में भी रहती है, जो वहाँ के हिन्दू मंदिरों की पूजा सम्पन्न कराने का काम करती है।
23. बौखण्डी ;- महाराष्ट्र वंशीय बौखंडी ब्राह्मण जाति विलहित से संवत 1700 में गढ़वाल आए और यहाँ के निवासी हुए । यह जाति स्वयं को भुकुण्ड कवि की संतान बतलाती है।
24. जुगराण/जुगड़ाण :- पांडे मूल वंश के जुगराण नामक गंगाड़ी ब्राह्मण कुमाऊँ से संवत 1700 में गढ़वाल आए और यहाँ के जुगड़ी नामक गाँव में बसने के कारण जुगड़ाण और बाद में जुगराण कहलाए।
25. मालकोटी :- गौड़ सरोला ब्राह्मण मालकोटी संवत 1700 में अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के मालकोटी गाँव में बस गए और मालकोटी नाम से प्रचलित हुए। इनके मूल पुरुष बालकदास थे।
26. बलोदी :- दविड़ वंश गंगाड़ी ब्राह्मण बलोदी संवत 1400 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल के बलोद नामक गाँव में बसने के कारण बलोदी कहलाए।
27. घनसाला/घणसाला :- घणसाला गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1600 में गुजरात से आकर गढ़वाल के घनसाली अथवा घणसाली नामक गाँव में बसने के कारण घनसाला अथवा घणसाला नाम से जाने गए।
28. देवरानी/देवराणी :- ये भट्ट के ब्राह्मण हैं जो संवत 1500 में गुजरात से गढ़वाल में आकर बस गए।
29. पोखरियाल :- ये मूलतः गौड़ ब्रह्मण हैं जो संवत 1678 में विलहित से आकर पौड़ी गढ़वाल, चमोली और टिहरी में बसने से पोखरियाल प्रसिद हुए। इनके कुछ लोग नेपाल में प्रसिद शिव मंदिर पशुपति नाथ मैं पूजाधिकारी हैं।
30. डबराल :- डबराल महाराष्ट्र वंशीय ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1433 में अपने मूल पुरुष विश्वनाथ और रघुनाथ के साथ गढ़वाल के डाबर गाँव में आकर बसे थे।
31. सुंदरियाल :- सुंदरियाल ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1711 में गढ़वाल आए। ये कर्नाटक वंश के ब्राह्मण हैं जो गढ़वाल के सुन्द्रोली नामक गाँव में बसने के कारण सुंदरियाल कहलाए।
32. किमोटी :- ये गौड़ वंशीय गंगाड़ी ब्राह्मण बंगाल के मूल निवासी हैं जो कि संवत 1617 में अपने मूल पुरुष रामभजन किमोटा के नेतृत्व में बंगाल से गढ़वाल आए और यहीं किमोता गाँव में बस गए।
33. बडोला/बुडोला :- बडोला गौड़ वंश के गंगाड़ी ब्राह्मण हैं। संवत 1798 में उज्जैन से अपने मूल पुरुष उज्जल के साथ आकर बडोली अथवा बुडोला नामक गाँव में बसने से बुडोला कहलाए।
34. पांथरी :- गढ़वाल के गंगाड़ी सारस्वत ब्राह्मण पांथरी जाति के आदि पुरुष अन्थू और पंथराम संवत 1600 में जालंधर से आकर गढ़वाल के पांथर गाँव में आकर बसे और पंथारी नाम से जाने जाते हैं।
35. बलोनी/ बलोणी :- बलोनी सारस्वत मूल के ब्राह्मण हैं जो जालंधर से 1776 संवत में गढ़वाल के बलोण गाँव में आकर बसे और यहीं के निवासी हो गए। जीवराम इनके मूल पुरुष थे।
36. पुरोहित :- ये जम्मू कश्मीर राजपरिवार के कुल पुरोहित और वहाँ पुरोहिताई करते थे यही कारण है कि ये पुरोहित नाम से प्रसिद्द हुए। इनके पहले गाँव दसोली में माने जाते जाते हैं तत्पश्चात ये नागपुर पट्टी में भी बस गए थे।
37. बडोनी/बडोणी :- बडोनी गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग सम्वत 1600 में बंगाल से आए और बडोन गाँव में बस गए । बडोन गाँव में बसने के कारण ही ये बडोनी कहलाए।
38. रुडोला :- तैलंग मूल के ब्राह्मण रुडोला सिंध हैदराबाद से आकर गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों में बस गए।
39. सुन्याल :- अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के सोनी गाँव में बसने के कारण ये सुन्याल नाम से जाने गए।
40. कोटनाला :- ये गौड़ ब्राह्मण जाति बंगाल के निवासी माने जाते हैं जो बंगाल से से सम्वत 1725 में गढ़वाल के कोटी गाँव में आकर बस गए। कोटी गाँव में बसने के कारण ये कोटनाला कहलाए।
41. काला :- ऐसा माना जाता है कि काला जाति के लोग गढ़वाल में काली कुमाऊँ क्षेत्र से आये और पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी नामक गाँव में बस गए।
42. कौंस्वाल :- कौंस्वाल जाति के गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण संवत 1722 में गढ़वाल आए और यहाँ के कंस्याली नामक गाँव में बसने के कारण कौंसवाल कहलाए।
43. वैरागी :- गौड़ मूल के ब्राह्मण वैरागी गढ़वाल में आकर बस गए।
44. मलासी :- गौड़ वंश के मलासी ब्राह्मण अज्ञात स्थान से आकर मलासू गाँव में आकर बसे।
45. फरासी :- ये द्रविड़ वंश के ब्राह्मण हैं जो संवत 1791 में दक्षिण भारत से गढ़वाल में आए और यहाँ के फरासू नामक गाँव में बसने से फरासी नाम से जाने गए।
46. बदाणी/बधाणी :- बदाणी अथवा बधाणी कान्यकुब्ज वंश के गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 1722 में कन्नौज से गढ़वाल आए। ये सर्वप्रथम गढ़वाल बधाण परगने में बसे इसीलिए बधाणी अथवा बदाणी कहलाए।
47. गोदुड़ा :- यह गंगाड़ी ब्राह्मण जाति पहले भट्ट थी जो संवत 1718 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल में बसे। इनके मूलपुरुष गोदू थे। संभवत: उनके नाम से ही इस जाति का नाम गोदुड़ा पड़ा होगा।
48. सैल्वाल :- ये किसी अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के सैल गाँव में बसने के कारण सैल्वाल कहलाए।
49. कुड़ियाल :- कुड़ियाल जाति के गौड़ वंशीय ब्राह्मण बंगाल के मूल निवासी हैं जो संवत 1600 में बंगाल से यहाँ आए। गढ़वाल के कूड़ी नामक गाँव में बसने के कारण ये कुड़ियाल कहलाए।
50. भट्ट :- यह सामान्यत: एक प्रकार की उपाधि थी जो राजाओं दी जाती थी कालांतर में ये एक ब्राह्मण जाति के रूप में प्रचलित हुई। भट्ट जाति के लोग मूलतः दक्षिण भारतीय मूल के माने जाते हैं। यह गढ़वाल की एकमात्र जाति है जो में सरोला, गंगाड़ी और नागपुरी ब्राह्मणों की सूची में शामिल की गयी है।
51. बौराई/बौड़ाई :- ये गौड़ वंश के ब्राह्मण हैं जो कि अज्ञात स्थान से संवत 1500 में गढ़वाल आए और वहाँ के बौधर या बौर गाँव में बस गए।
52. मैकोटी :- कान्यकुब्ज वंश के मैकोटी गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 1622 में कन्नौज से गढ़वाल आए। गढ़वाल के मैकोटी नामक गाँव में बसने से ये मैकोटी कहलाए।
53. बिंजोला :- ये द्रविड़ वंश के ब्राह्मण हैं जिनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
54. पोखरियाल :- पोखरियाल जाति के लोग मूलपुरुष गुरुसेन के साथ संवत 1678 में विलहित से गढ़वाल में आए। गढ़वाल में पोखरी गाँव में बसने के कारण ये पोखरियाल कहलाए।
55. सिलवाल :- सिलवाल जाति के ब्राह्मण द्रविड़ वंश से सम्बद्ध हैं और ये सम्वत 1600 में बनारस से आकर गढ़वाल के सिल्ला गाँव में बसने से सिलवाल हुए।

(स) अन्य ब्राह्मण :- इस श्रेणी में वे सभी ब्राह्मण आते हैं जो उपर्युक्त दोनों श्रेणियों में शामिल नहीं हैं।
बेंजवाल :- बेंजवाल कान्यकुब्ज ब्राह्मण जाति के लोग गढ़वाल के अगस्त्यमुनि क्षेत्र में बेंजी नामक गाँव के निवासी हैं जो 11वीं शताब्दी में महाराष्ट्र से यहाँ आकर बसे। बेंजी गाँव में बसने के कारण ही इन्हें बेंजवाल कहा गया। प्रसिद्द इतिहासकार एटकिन्सन ने हिमालयन गजेटियर मैं इस जाति वर्णन किया है। ऐसा माना जाता है कि यह ब्राहमण जाति अगस्त्य ऋषि के साथ आये 64 गोत्रीय ब्राह्मणों में से एक थी।
पंत :- ये मूलत: भारद्वाज गोत्रीय ब्राहमण हैं जिनके मूल पुरुष जयदेव पंत महाराष्ट्र से 10 वीं सदी में तत्कालीन राजाओ के साथ कुमाऊँ में आगमन हुआ। तत्पश्चात इनके वंशज चार थोकों में विभाजित हुए जिनसे बाद में मूल कुमाऊँनी पंत ब्राह्मण जाति का आविर्भाव हुआ। बाद में इस जाति के कुछ परिवार गढ़वाल के विभिन्न इलाको में बसे और वहीं के मूल निवासी हो गए। इसके अलावा जखमोला, गोदियाल, उपाध्याय, कुकसाल/खुग्साल और खंतवाल आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं लेकिन इनके बारे में जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी।

सन्दर्भ :-

1. गढ़वाल हिमालय : इतिहास, संस्कृति, यात्रा और पर्यटन – रमाकांत बैंजवाल, पृष्ठ – 39
2. गढ़वाल का इतिहास – प. हरिकृष्ण रतूड़ी, संपा. – डॉ. यशवंत सिंह कठोच, पृष्ठ – 77

(लेखक उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल, पट्टी- सितोन स्यूँ, कोट— ब्लॉक, गाँव-रखूण के निवासी हैं तथा वर्तमान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि, नई दिल्ली में शोधार्थी हैं)

Email: naveenchandra2527@gmail.com

5 COMMENTS

  1. ये कहां पढ़ा आपने पुरोहित सरोला नहीं हैं, कोई किताब हो जहां लिखा हो तो कृपया बता दें।

  2. इस प्रकार के लेख लिखने वालों को शर्म आनी चाहिए।पहाड़ के अधिकतर ब्राह्मणों का अपने पूर्वजों का मैदानी भागों से पहाड़ आने की बात कहना जातीय श्रेष्ठता को साबित करने की अक्षम्य मूर्खता है।इस प्रकार के बाल आग्रह पर तुरंत लगाम लगाने की आवश्यकता है।
    मैं अपने अध्ययन व शोध के आधार पर कह सकता हूँ कि कभी भी मास पलायन सुगम से दुर्गम की ओर नहीं होता।इक्का दुक्का परिस्थितिवश पहाड़ आया भी होगा तो उसके लिए अपने गैर पहाड़ी जातीय नाम को जीवित रखना संभव भी नहीं रहा होगा।आपके इस लेख के अनुसार गढ़वाल की समस्त ब्राह्मण जातियों का उद्गम पहाड़ से इतर मैदानी भागों में है।जो कि हास्यास्पद है।इसका मतलब हुआ कि पहाड़ की अपनी कोई स्वतंत्र सभ्यता नहीं थी।सभी लोग आयातित थे।इसी प्रकार का बालहठ कुमाऊं की ब्राह्मण जातियों में भी दृष्टिगोचर होता है।तो क्या गढ़ कुमाऊँ की भूमि मूलतः ब्राह्मण विहीन थी??कई साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि indus valley civilization के सामानांतर पहाड़ में भी एक फलती फूलती सभ्यता विद्यमान थी।जिसके लोग आयातित नहीं थे।
    कालान्तर में पहाड़ के कुछ जातियों में अपने से श्रेष्ठ सभ्यता के प्रतीक पुरुषों व उनके सुस्थापित संस्कृत केंद्रों से सम्बन्ध स्थापित करने की अंधी होड़ लग गई ताकि अपनी जाति को अन्य प्रतिद्वंदी जातियों,ठाकुरों व दलित जातियों से येन केन प्रकारेण श्रेष्ठ सिद्ध किया जा सके।इस मूर्खता में वे सफल हो गए।अपने पूर्वज व आदि पुरुष भी मैदान में ढूंढ लिए।जिसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं था।अपने दावे को मजबूत करने के लिए अपने पूर्वजों को मैदान से आये राजाओं के साथ आया बताया जाने लगा।
    इस पूरे घालमेल की पुनः व्याख्या करने जरुरत है।नए शोध की आवश्यकता है।ताकि पहाड़ियों को सही इतिहास बताया जा सके कि पहाड़ियों आपके आदि पुरुष आयातित नहीं थे।अपना उद्गम जबरदस्ती मैदान में बताना गर्व नहीं बल्कि शर्म की बात है।

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