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क्यों रिश्तों को छीन रहे हो?

क्यों रिश्तों को छीन रहे हो?

कविताएं
भुवन चन्द्र पन्त छीन लिया है अमन चैन सब, जब से तुमने पांव पसारे। हर घर में मेहमान बने हो, सिरहाने पर सांझ-सकारे।। भुला दिये हैं तुमने अब तो, रिश्तों के संवाद सुरीले। सारे रिश्ते धता बताकर, बन बैठे हो मित्र छबीले।। सब के घर में रहने पर भी, ऐसी खामोशी है छाई। बतियाते हैं सब तुमसे ही, मम्मी-पापा, बहना भाई।। घर के रिश्ते मूक बने हैं, तुमसे रिश्ता जोड़ रहे हैं। खुद-रोते हंसते तेरे संग, हमसे नाता छोड़ रहे हैं।। नन्हें से बच्चे तक को भी, तुमने ऐसे मोह में जकड़ा। रोता बच्चा चुप हो जाये, ज्यों ही उसने तुमको पकड़ा।। गुस्से में मैं बोला इक दिन, क्यों रिश्तों को छीन रहे हो? हमसे इतना प्यार जताने, को तुम क्यों शौकीन रहे हो? चुपके से आकर वो बोला, खता न मेरी खुद को रोको। यकीं नही मेरी बातों पर, मुझको इस पत्थर पर ठोको।। कसम तुम्हारी ऊफ न करूंगा, चाहे कितना भी धोओगे। पर ये सच है...