
स्वदेशी से स्वाधीनता और सामर्थ्य का आवाहन
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
‘देश’ एक विलक्षण शब्द है. एक ओर तो वह स्थान को बताता है तो दूसरी ओर दिशा का भी बोध कराता है और गंतव्य लक्ष्य की ओर भी संकेत करता है. देश धरती भी है जिसे वैदिक काल में because मातृभूमि कहा गया और पृथ्वी सूक्त में ‘माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या:’ की घोषणा की गई. यानी भूमि माता है और हम सब उसकी संतान. दोनों के बीच के स्वाभाविक रिश्ते में माता संतान का भरण-पोषण करती है और संतानों का दायित्व होता है उसकी रक्षा और देख–भाल करते रहना ताकि भूमि की उर्वरा-शक्ति अक्षुण्ण बनी रहे. इसी मातृभूमि के लिए बंकिम बाबू ने प्रसिद्ध वन्दे मातरम गीत रचा. इस देश-गान में शस्य-श्यामल, सुखद, और वरद भारत माता की वन्दना की गई है.
ज्योतिष
इस तरह गुलामी के दौर में देश में सब के प्राण बसते थे और देश पर विदेशी के आधिपत्य से छुड़ाने के लिए मातृभूमि के वीर सपूत प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते थ...