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कौन कहता है मोहन उप्रेती मर गया है!

कौन कहता है मोहन उप्रेती मर गया है!

स्मृति-शेष
लोक के चितेरे मोहन उप्रेती की जयंती (17 फरवरी, 1928) पर विशेषचारु तिवारीउस शाम मैं गुजर रहा था उद्दा की दुकान के सामने से, अचानक दुकान की सबेली में खड़े मोहन ने आवाज दी- ‘कहां जा रहा है ब्रजेन्द्र? यहां तो आ.’ क्या है यार? because घूमने भी नहीं देगा.’ और मैं खीज कर उदेसिंह की दुकान के सामने उसके साथ घुस गया. उसके सामने ही लगी हुर्इ लकड़ी की खुरदरी मेज थी. मोहन कुछ उत्तेजित-सा लग रहा था. मेज को तबला मानकर वह उसमें खटका लगाकर एक पूर्व प्रचलित कुमाउनी गीत को नितान्त नई धुन तथा द्रुत लय में गा रहा था. वह बार-बार एक ही बोल को दुहरा रहा था. उस गीत की नर्इ और चंचल because धुन मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी. गीत था-अपनेपन बेडू पाको बारामासा हो नरैण काफल पाको so चैता मेरी छैला. रूणा-भूणा because दिन आयो हो नरैण पूजा but म्यारा मैता मेरी छैला. मोहन बार-बार यही धुन दुहरा रहा था. ‘अर...