
कर्मयोगी श्रीकृष्ण: जियो तो ऐसे जियो !
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेषप्रो. गिरीश्वर मिश्र
सुख की चाह और दुःख से दूरी बनाए रखना जीवित प्राणी का सहज स्वाभाविक व्यवहार है और पशु मनुष्य सब में दिखाई पड़ता है. यह सूत्र जीवन के सम्भव होने की शर्त की तरह काम करता है. पर इसके आगे की कहानी हम सब खुद रचते हैं. आहार, निद्रा, भय और मैथुन के अलावे हम सब धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा, आदर, सम्मान, प्रेम, दया, दान आदि समाजजनित कामनाओं के इर्द-गिर्द निजी और सार्वजनिक जीवन ताना-बाना बुनते हैं. जिन्दगी खेने की सारी because कशमकश इन्हीं को लेकर चलती रहती है और आज की दुनिया में हर कोई कुंठा और तनाव से जूझता दिख रहा है और उससे निपटने के लिए मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है. थोड़ा निकट से देखें तो यही बात उभर कर सामने आती है कि किसी न किसी तरह सभी अपनी स्थिति से असंतुष्ट हैं. कुछ लोग जितना है उसमें इच्छा से कम होने को ले कर तो कुछ लोग जो उनके पास नहीं ह...




