स्त्री जीवन के रंग, बस की खिड़की से

स्त्री जीवन के रंग, बस की खिड़की से

सुनीता भट्ट पैन्यूली उत्तराखंड की कुनकुनी ठंड पार हो गयी है एक नर्म गर्मी  और फगुनाहट का अहसास राजस्थान के सीमांत प्रदेश में पहुंचकर देह को प्रफुल्लित कर रहा है.हमने अपने शाल और स्वेटर बस में उतारकर रख लिये हैं. हरे-भरे कीकर के पेड़, सूखे जर्र-जर्र ताल-तलैयों और कुंओं का सिलसिला अनवरत चल रहा है […]

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 बसंत पंचमी: कला का सदुपयोग व आत्मनवीनीकरण…

बसंत पंचमी: कला का सदुपयोग व आत्मनवीनीकरण…

सुनीता भट्ट पैन्यूली एक साहित्यिक उक्ति के अनुसार,“प्राण तत्व ‘रस’ से परिपूर्ण रचना ही कला है” इसी कला की प्रासंगिकता के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि सृष्टि की रचना, अनादिशक्ति ब्रहमा का अद्भुत चमत्कार है और उसमें अप्रतिम रंग,ध्वनि,वेग,स्पंदन व चेतना का स्फूरण मां सरस्वती की कलाकृति. यही कला का स्पर्श हमें उस […]

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 अपना-अपना नया साल…

अपना-अपना नया साल…

सुनीता भट्ट पैन्यूली कल नये साल का पहला दिन है। हे ईश्वर ! विश्व के समस्त प्राणियों ,मेरे घर-परिवार में, नये साल में जीवन के शुभ गान और स्फूरित राग हों,इसी अन्तर्मन से बहती हुई प्रार्थना में हिलोरें मारती हुई मैं अपनी दैनंदिन क्रिया के अहम हिस्से का निर्वाह करने, अपने ओसारे में आ गयी, […]

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 कहानी: शीशफूल

कहानी: शीशफूल

सुनीता भट्ट पैन्यूली कहानियों का नदी की तरह कोई मुहाना नहीं होता ना ही सितारों की तरह उनका कोई आसमान. एक सजग दृष्टि और कानों की एकाग्रता किसी भी विषयवस्तु को कहानियों का चोला पहना देती हैं. पलायन, बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घर छोड़कर कुछ अरसे के लिए बाहर ज़रुर चले जाते […]

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 मेरे बगीचे के फूल

मेरे बगीचे के फूल

सुनीता भट्ट पैन्यूली मानसून के पदचापों की आमद हर because तरफ़ सुनाई दे रही है. पेड़ों के अपनी जड़ों से विलगित होने का शोर शायद ही मानवता को सुनाई दे किंतु इस वर्षाकाल में कोरोना का हाहाकार और मानवता के उखड़ने और उजड़कर गिरने का शोर हर रोज़ कर्णों को भेद रहा है. मानसून इस […]

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