Tag: शिक्षक दिवस

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मानिला के तत्वावधान में पांच दिवसीय ‘शिक्षक पर्व’ का शुभारंभ

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मानिला के तत्वावधान में पांच दिवसीय ‘शिक्षक पर्व’ का शुभारंभ

अल्‍मोड़ा
हिमांतर संवाददाता, अल्मोड़ा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुणीधार, मानिला, अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) के तत्वावधान में पांच दिवसीय ‘शिक्षक पर्व’ का शुभारंभ किया गया. पांच दिवसीय शिक्षक पर्व के उद्घाटन सत्र में विचार गोष्ठी एवं  सह-नवागंतुक स्वागत समारोह की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. जया पांडे द्वारा की गयी. अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने छात्रों को डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जीवन प्रसंग पर विस्तार से बताया तथा शिक्षा, शिक्षक और छात्र संबंध पर भी अपने विचार प्रस्तुत किए. इसी क्रम में डॉ. जया पांडे ने नवागंतुक छात्रों का महाविद्यालय परिवार में स्वागत भी किया. उद्घाटन सत्र के प्रथम चरण ‘विचार गोष्ठी’ में वक्ता के रूप में डॉ. रेखा, सहायक प्राध्यापिका, राजनीति विज्ञान विभाग व डॉ. धर्मेन्द्र यादव, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग ने शिक्षक दिवस का इतिहास, शिक्षा के विस्तार मे...
शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

साहित्‍य-संस्कृति
शिक्षक दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भारतीय संस्कृति में गुरु या शिक्षक को ऐसे प्रकाश के स्रोत के रूप में ग्रहण किया गया है जो ज्ञान की दीप्ति से अज्ञान के आवरण को दूर कर जीवन को सही मार्ग पर ले चलता है. इसीलिए उसका स्थान सर्वोपरि होता है. उसे ‘साक्षात परब्रह्म’ तक कहा गया है.  आज भी सामाजिक, आध्यात्मिक और निजी जीवन में बहुत सारे लोग किसी न किसी गुरु से जुड़े मिलते हैं. because गुरु से प्रेरणा पाने और उनके आशीर्वाद से मनोरथों की पूर्ति की कामना एक आम बात है यद्यपि गुरु की संस्था में इस तरह के विश्वास को कुछ छद्म  गुरु  नाजायज़ फ़ायदा भी उठाते हैं और गुरु-शिष्य के पावन सम्बन्ध को because लांछित करते हैं. शिक्षा के औपचारिक क्षेत्र में गुरु या शिक्षक एक अनिवार्य कड़ी है जिसके अभाव में ज्ञान का अर्जन, सृजन और विस्तार सम्भव नहीं है . भारत में शिक्षक दिवस डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स...
उत्तराखंड की सल्ट क्रांति: ‘कुमाऊँ की बारदोली’

उत्तराखंड की सल्ट क्रांति: ‘कुमाऊँ की बारदोली’

इतिहास
शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी देश की आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के सल्ट क्रांतिकारियों की भी अग्रणी भूमिका रही थी. 5 सितंबर 1942 को महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो’ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की प्रेरणा से जन्मे सल्ट के क्रांतिकारियों ने अपने क्षेत्र में स्वाधीनता आन्दोलन की लड़ाई लड़ते हुए सल्ट क्षेत्र के ‘खुमाड़’ नामक स्थान पर खीमानंद और उनके भाई गंगा राम, बहादुर सिंह मेहरा और चूड़ामणि चार क्रांतिकारी शहीद हो गए थे. किन्तु दुर्भाग्य यह रहा है कि साम्राज्यवादी इतिहासकारों और राजनेताओं को इन क्रांतिवीरों के बलिदान को जितना महत्त्व दिया जाना चाहिए उतना महत्त्व नहीं मिला है. आज राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में सल्ट क्रांति और स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले क्रांतिकारियों का कहीं नामोल्लेख तक नहीं मिलता यहां तक कि हमारे उत्तराखंड के लोगों को भी इस आन...