मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—31 प्रकाश उप्रेती आज बात- “आम्क- रेडू” (दादी का रेडियो) की. तब शहरों से गाँव की तरफ रेडियो कदम रख ही रहा था. अभी कुछ गाँव और घरों तक पहुँचा ही था. परन्तु इसकी गूँज और गुण पहाड़ की फ़िज़ाओं में फैल चुके थे. इसकी रुमानियत ‘रूडी महिनेक पौन […]
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