Tag: म्यर पहाड़

राणा ज्यूक याद, राणा ज्यूक बाद

राणा ज्यूक याद, राणा ज्यूक बाद

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि 13 जून, 2020 पर विशेष चारु तिवारी लोककवि-गिदार हीरासिंह राणा ज्यू गीत-कविता हमेशा आम लोगनक क्वीण-कहाणि कहते रईं. गौं-गाडाक मैसनोंक जतुक ले कष्ट और संघर्ष उनूल देखीं वैं बै उनूल शब्द और कथ्य उठाईं. उनर रचनाओं में जीवनक भोगी यथार्थ छू. जीवनाक कष्ट खालि उनार आपण न्हैंत, बल्कि उ पुर जमानाक छन जनूंल उनूकों गीत-कविता लेखणांक लिजी जमीन दैछ. उनर रचनाओं विशेषता य छू कि उं समाजाक विषयों कैं भौत कसि बैर पकड़नी और लोगोंनक कष्टों और विडंबनाओं कैं उमैं शामिल करनी. उनर गीत-कविताओं में कथ्य तो छनै छिन, लेकिन आपंण उद्गार व्यक्त करणि गैर भाव लै छन. उनर रचना- संसार में शब्द छांटणैंकि कला छु तो लोगों तक पहुंचणैंकि संवेदना लै छू. आम लोगों सरोकार में रची-पगी उनरि रचनाओं क आकाश लै भौत ठुल छू. पहाड़ाक सैंणियौंक कष्ट, आम लोगोंक तकलीफ, प्रकृतिक सौंदर्य, श्रृंगारैक खूबसूरती, प्रेम-विछोहैकि कहांणि, लोक स...
लोक की आवाज – हीरा सिंह राणा

लोक की आवाज – हीरा सिंह राणा

संस्मरण
मीना पाण्डेय आज से कुछ 18-20 साल पहले हीरा सिंह राणा जी से अल्मोड़ा में 'मोहन उप्रेती शोध समिति' के  कार्यक्रम के दौरान पहली बार मिलना हुआ. ‌तब उनकी छवि मेरे किशोर मस्तिष्क में 'रंगीली बिंदी' के लोकप्रिय गायक के रूप में रही. उसके बाद दिल्ली आकर कई कार्यक्रमों में लगातार मिलना हुआ. मध्यम कद-काठी पर मटमैला कुर्ता और गहरे रंग के चेहरे को आधा ढ़ापती अर्द्ध-चंद्राकार दाड़ी. चेहरे-मोहरे और वेश भूषा में भी वे लोक के प्रतीक रहे. उनकी कविताओं और गीतों में पहाड़ के परिवेश व  संस्कृति के प्रति गहरा लगाव स्पष्ट दिखाई देता है. राणा जी की रचनाओं का वितान बहुत वृहद रहा. वहां श्रृंगार है, जन आंदोलनों को उत्साह से भर देने के गीत हैं, प्रकृति के प्रति अनुराग है और अपनी संस्कृति के प्रति अकाट्य प्रेम भी. ये दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि हीरा सिंह राणा जी की लोकगायक के रूप में लोकप्रियता के प्रका...