Tag: भारतीय काल गणना

पितृपूजा: वैदिक धर्म की विराट ब्रह्मांडीय अवधारणा

पितृपूजा: वैदिक धर्म की विराट ब्रह्मांडीय अवधारणा

लोक पर्व-त्योहार
पितृपक्ष: धर्मशास्त्रीय विवेचन-2 डॉ. मोहनचंद तिवारी मैंने पिछले लेख में भारतीय काल गणना के अनुसार पितृपक्ष के बारे में बताया था कि धर्मशात्र के ग्रन्थ  ‘निर्णयसिन्धु’ के अनुसार आषाढी कृष्ण अमावस्या से पांच पक्षों के because बाद आने वाले पितृपक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तब पितर जन क्लिष्ट होते हुए अपने पृथ्वीलोक में रहने वाले वंशजों से प्रतिदिन अन्न जल पाने की इच्छा रखते हैं- “आषाढीमवधिं कृत्वा पंचमं because पक्षमाश्रिताः. कांक्षन्ति because पितरःक्लिष्टा अन्नमप्यन्वहं because जलम् ..” ज्योतिष यानी आश्विन मास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि देकर संतुष्ट करेंगे. इसी इच्छा को लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक में because आते हैं. पितृपक्ष में यदि पितरों को पिण्डदान या तिलांजलि नहीं मिलती है तो वे पितर निरा...
भारतीय काल गणना में ‘अधिमास’ की अवधारणा

भारतीय काल गणना में ‘अधिमास’ की अवधारणा

अध्यात्म
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस वर्ष 18 सितंबर से 'अधिमास' प्रारंभ becauseहो चुका है,जो 16 अक्टूबर को समाप्त होगा.और 17 अक्टूबर से नवरात्र प्रारम्भ होंगे. यह 'अधिमास','अधिक मास', 'मलमास' और 'पुरुषोत्तम मास' आदि नामों से भी जाना जाता है. 'अधिमास' के कारण इस बार दो आश्विन मास पड़े हैं. साथ ही चतुर्मास भी पांच महीनों का हो गया है और नवरात्रि जो श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के साथ ही शुरू हो जाती थी वह भी एक महीने पीछे खिसक गई है. घासी विदित हो कि भारतीय पंचांग के becauseअनुसार वर्त्तमान विक्रम संवत 2077 में मान्य 60 संवत्सरों में 47वां 'प्रमादी' नामक संवत्सर चल रहा है. 'संवत्सर' उसे कहते हैं जिसमें मास आदि भली भांति निवास करते रहें. इसका दूसरा अर्थ है बारह महीने का काल विशेष. इस नए संवत की खास विशेषता यह है कि इस बार दो आश्विन मास होने के कारण वर्ष बारह नहीं बल्कि तेरह महीनों का होगा और श्राद्ध ...