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झोला भर बचपन

झोला भर बचपन

संस्मरण
हम याद करते हैं पहाड़ को… या हमारे भीतर बसा पहाड़ हमें पुकारता है बार-बार? नराई दोनों को लगती है न! तो मुझे भी जब तब ‘समझता’ है पहाड़ … बाटुइ लगाता है…. और फिर अनेक असम्बद्ध से दृश्य-बिम्ब उभरने लगते हैं आँखों में… उन्हीं बिम्बों में बचपन को खोजती मैं फिर-फिर पहुँच जाती हूँ अपने पहाड़… रेखा उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के हिंदी विभाग में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. हम यहां पर अपने पाठकों के लिए रेखा उप्रेती द्वारा लिखित ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़ नाम की पूरी सीरिज प्रकाशित कर रहे हैं… आज प्रस्तुत है उनकी 15वीं किस्त ... ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—15 रेखा उप्रेती अभाव किसे कहते हैं हम नहीं जानते थे. जो था उसी को जानते और उसके होने से भरा-पूरा था अपना बचपन. भौतिक संसाधनों से शून्य, सुविधाओं की दृष्टि से महा विपन्न लेकिन प्रकृति की अनमोल नेमतों और प...