संस्मरण ‘गीला या सूखा’ का खेल मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—22 प्रकाश उप्रेती आज बात उस खेल की जिसकी लत बचपन में लगी और मोह अब तक है. हम इसे- “बैट- बॉल” खेलना कहते थे और दूसरे गाँव में ‘क्रिकेट’ नहीं ‘मैच खेलने’ जाते थे. पांव से लेकर सर तक जितने ‘घो’ (घाव) हैं उनमें से
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