Tag: पुलिसकर्मी

किसी को तो पड़ी हुई लकड़ी लेनी पड़ेगी साहब! पुलिस सेवा के लिए है या अपशब्दों के लिए?

किसी को तो पड़ी हुई लकड़ी लेनी पड़ेगी साहब! पुलिस सेवा के लिए है या अपशब्दों के लिए?

देश—विदेश
हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली मैं बचपन से ही पुलिस वालों से चार क़दम दूर भागता हूं. कारण उनका रवैया रहा है. बहुत कम पुलिसकर्मी होंगे जो आपसे सलीक़े से बात करेंगे. नहीं तो रौब दिखाना उनकी प्रवृत्ति में शामिल because होता है. शायद ये एक तरीक़ा हो अपराधी को तोड़ने और अपराध का पता लगाने के लिए. लेकिन, जब ये ही रवैया पुलिस आम नागरिकों पर अपनाने लगती है, तो उसकी छवि धूमिल हो उठती है. उसके प्रति आम नागरिक के मन में डर पैदा हो जाता है. बढ़ेगी आम नागरिक पुलिस से कतराने because लगते हैं जिसका ख़ामियाजा समाज को उठाना पड़ता है, क्योंकि बहुत-सी घटनाओं में नागरिक 'पुलिस के चक्कर में कौन पड़े कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.' मैंने ऊपर जो लिखा है इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सारे पुलिसकर्मी एक से होते हैं...लेकिन कुछ पुलिसकर्मियों की बदौलत उनको यह तमगा पहनना पड़ता है. बढ़ेगी जब पुलिसकर्मी ने कहा- तुम क्...
अपराधी तो मारा गया… बस सवाल बाकी रह गए

अपराधी तो मारा गया… बस सवाल बाकी रह गए

समसामयिक
ललित फुलारा एनकाउंटर में आरोपित अपराधी, तो मारा गया पर अपराधी का पोषण करने वाले, सालों से उसे शरण देने वाले, उन रसूखदार कथित अपराधियों का क्या, जो हर बार पर्दे के पीछे ही रह जाते हैं. पर्दे के पीछे वाला यह खेल कभी सामने नहीं आ पाता. यह भी सच है कि अगर गिरफ्तार/सरेंडर किया हुआ अपराधी बच जाता, तो उसके सारे आका चौराहे पर आ जाते. राजनीति, नौकरशाही और अपराध के गठजोड़ कि पटकथा घरों से लेकर नुक्कड़ तक बांची जा रही होती. टीवी और अखबार भरे पड़े होते. कई सफेद कुर्तों पर कालीख पुत जाती. पर दुर्भाग्य है कि अपराध के पोषण वाली बेल बच गई, पत्ता तोड़ दिया गया. बिना सत्ता, शक्ति व धन के कोई गुंडा नहीं पनप सकता. जो लोग अपराधी के एनकाउंटर से खुश हैं, उनके लिए कानून नहीं भावनाएं सर्वोपरी है. ये ही भावनाएं अपराधी को भी बनाती है और नेता को भी! मैं इस त्वरित न्याय का पक्षधर नहीं हूं और न ही हर बार पु...