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बाखली वहीं छूट जाती है हमेशा की तरह

बाखली वहीं छूट जाती है हमेशा की तरह

संस्मरण
नीलम पांडेय “नील” तब भी आसपास जंगली कविताएं और चित्त उदगार करने वाले मौसम अपनी दस्तक देना शुरु कर देते थे. तब भी मैं प्रकृति को महसूस करना चाहती थी शायद. पर प्रकृति ही एक जादू कर देती और मैं कहीं दूर विचरण के लिए निकल पड़़ती. ये बहती हवा, ये पेड़, आकाश, मिट्टी और दूब की हरी घास जैसे मेरे साथ—साथ बड़े हो रहे थे. तब जाने क्यों ऐसा लगता था, सब कुछ जीवन का ही हिस्सा है, कुछ भी बुरा नही लगता था. किन्तु आज एक जगह बैठकर स्मृतियों में सब कुछ लौटा ला रही हूं जैसे कि पनघट वाले आम के बगीचे और जंगलों से घास लाती या मंगरे के धारे तथा सिमलधार वाले नौले से पानी भरती औरतें अपनी चिरपरिचित आवाज में हुलार भर रही है... जैसे ओ रे पनियारियों, या ओ रे घसियारियों और उनकी ये आवाज पहाड़ों से टकराकर उनके पास वापस आ जाती है.  मुझे जाने ऐसा क्यों लगता था कि पनघट के गावँ से नीचे के गावों में रेडियों में एक पुराना...
यमुना घाटी: कफनौल गांव- रिंगदू पाणी

यमुना घाटी: कफनौल गांव- रिंगदू पाणी

उत्तराखंड हलचल
यमुना—टौंस घाटी की अपनी एक जल संस्कृति है. यहां लोग स्रोतों से निकलने वाले पानी को देवताओं की देन मानते है. इन नदी—घाटियों में जल स्रोतों के कई कुंड स्थापित हैं.​ विभिन्न गांवों में उपस्थित इन पानी के कुंडों की अपनी—अपनी कहानी है. इस घाटी के लोग इन कुंडों से निकलने वाले जल को बहुत ही पवित्रत मानते हैं और उनकी बखूबी देखरेख करते हैं. जल संस्कृति में आज हम ऐसे ही कुंडों से आपको रू—ब—रू करवा रहे हैं. यमुना घाटी के ऐसे ही कुछ जल कुंडों बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ प​त्रकार प्रेम पंचोली— जल संस्कृति भाग—3 कफनौल कहने व सुनने से लगता है कि यहां काफी नौले होंगे और इस गांव में निश्चित तौर पर बहुत सारे जल स्रोत भी है जो कुण्ड नुमा तथा 'नौले' के आकार के थे. पिछले दस वर्षों अन्तराल में इस गांव में सम्पूर्ण जल स्रोत सूख गए. अब मात्र एक ही कुण्ड शेष है जिसे देवता का पानी कहते है. लोग इस पानी क...