अपना-अपना नया साल…
सुनीता भट्ट पैन्यूली
कल नये साल का पहला दिन है। हे ईश्वर ! विश्व के समस्त प्राणियों ,मेरे घर-परिवार में, नये साल में जीवन के शुभ गान और स्फूरित राग हों,इसी अन्तर्मन से बहती हुई प्रार्थना में हिलोरें मारती हुई मैं अपनी दैनंदिन क्रिया के अहम हिस्से का निर्वाह करने, अपने ओसारे में आ गयी, जैसे ही तुलसी के चौबारे में दिया जलाया,तभी दिवार की उस तरफ से आवाज़ आई।
कैसी हो बेटी?
मैं सुबह से देख रहा था तुम्हें, तुम आज दिखाई नहीं दी।
मैंने दीये की पीत वर्ण और बिछुड़ते हुए सूरज की रक्ताभ मिश्रित नारंगी लौ में ताऊजी को देखा।
ताऊजी प्रणाम,
मैं ठीक हूं
आप कैसे हैं ?
हां!आज थोड़ी सी व्यस्त थी मैं।
कल नया साल का पहला दिन है ना?
सोचा आज ही गाजर का हलुआ बनाकर रख लूं कल के लिए..वही सब गाजर को घिसकर उसे दूध में उबाल रही थी।
अच्छा! नये साल के स्वागत की तैयारी चल रही है..
मैंने भी तो मनाना था बेटी नया...