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पितरों की घर-कुड़ी आबाद रहे

पितरों की घर-कुड़ी आबाद रहे

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—8 प्रकाश उप्रेती ये हमारी ‘कुड़ी’ (घर)  है. घर को हम कुड़ी बोलते हैं. इसका निर्माण पत्थर, लकड़ी, मिट्टी और गोबर से हुआ है. पहले गाँव पूरी तरह से प्रकृति पे ही आश्रित होते थे इसीलिए संरक्षण के लिए योजनाओं की जरूरत नहीं थी. जिसपर इंसान आश्रित हो उसे तो बचाता ही है. पहाड़ों में परम्परागत रूप से एक घर दो हिस्सों में बंटा रहता है. एक को गोठ कहते हैं और दूसरे को भतेर. गोठ नीचे का और भतेर ऊपर का हिस्सा  होता है. इन दो हिस्सों को भी फिर दो भागों में बांट दिया जाता है: तल्खन और मल्खन . तल्खन बाहर का हिस्सा और मल्खन अंदर का हिस्सा कहलाता है. अक्सर भतेर में तल्खन बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो वहीं मल्खन में सामान रखा जाता है. गोठ में खाना बनता है. मल्खन में चूल्हा लगा रहता और खाना बनता है. तल्खन में लोग बैठकर खाना खाते हैं. हम मल्खन से सारी चीजें च...