Tag: जलवैज्ञानिक

“बृहत्संहिता में जलाशय निर्माण की पारम्परिक तकनीक”

“बृहत्संहिता में जलाशय निर्माण की पारम्परिक तकनीक”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-22 डॉ. मोहन चंद तिवारी पिछले लेखों में बताया गया है कि एक पर्यावरणवादी जलवैज्ञानिक के रूप में आचार्य वराहमिहिर द्वारा किस प्रकार से वृक्ष-वनस्पतियों की निशानदेही करते हुए, जलाशय के उत्खनन because स्थानों को चिह्नित करने के वैज्ञानिक तरीके आविष्कृत किए गए और उत्खनन के दौरान भूमिगत जल को ऊपर उठाने वाले जीवजंतुओं के बारे में भी उनके द्वारा महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी गईं. जलविज्ञान जलविज्ञान के एक प्रायोगिक और प्रोफेशनल उत्खननकर्त्ता के रूप में वराहमिहिर ने भूगर्भीय कठोर शिलाओं के भेदन की जिन रासायनिक विधियों का निरूपण किया है,वे वर्त्तमान जलसंकट के because इस दौर में परम्परागत जलस्रोतों के लुप्त होने की प्रक्रिया और उनको पुनर्जीवित करने की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं.यानी हम जब इन नौलों और जल संस्थानों को पुनर्जीवित करने का संकल्प ले रहे हैं तो हमारे लिए...
“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-12 डॉ. मोहन चंद तिवारी वैदिक संहिताओं के काल में ‘सिन्धुद्वीप’ जैसे वैदिक कालीन मंत्रद्रष्टा ऋषियों के द्वारा जलविज्ञान और जलप्रबन्धन सम्बन्धी मूल अवधारणाओं का आविष्कार कर लिए जाने के बाद वैदिक कालीन जलविज्ञान सम्बन्धी ज्ञान साधना का उपयोग करते हुए कौटिल्य ने एक महान अर्थशास्त्री और जलप्रबंधक के रूप में राज्य के जल संसाधनों को कृषि की उत्पादकता से जोड़कर घोर अकाल और सूखे जैसे संकटकाल से निपटने के लिए अनेक शासकीय उपाय भी किए. भारतीय जलविज्ञान की इसी परंपरागत पृष्ठभूमि में छठी शताब्दी ई. में एक महान खगोलशास्त्री तथा जल वैज्ञानिक वराहमिहिर का आविर्भाव हुआ. वराहमिहिर ने अपने युग में प्रचलित जलविज्ञान की मान्यताओं का संग्रहण करते हुए अपने ग्रन्थ ‘बृहत्संहिता’ में जलविज्ञान का सुव्यवस्थित विवेचन दो भागों में विभाजित करके किया. इनमें से एक प्रकार का जल अन्तरिक्षगत जल ह...