Tag: जलविज्ञान

चक्रपाणि मिश्र के अनुसार जलाशयों के विविध प्रकार

चक्रपाणि मिश्र के अनुसार जलाशयों के विविध प्रकार

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-27 डॉ. मोहन चंद तिवारी चक्रपाणि मिश्र ने ‘विश्वल्लभवृक्षायुर्वेद’ नामक अपने ग्रन्थ में कूप,वापी,सरोवर, तालाब‚ कुण्ड‚ महातड़ाग आदि अनेक जलाश्रय निकायों की निर्माण पद्धति तथा उनके विविध प्रकारों का वर्णन किया है,जो वर्त्तमान सन्दर्भ में परंपरागत जलनिकायों के जलवैज्ञानिक स्वरूप को जानने और समझने की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है. यहां बताना चाहेंगे कि राजस्थान की मरुभूमि के इतिहास पुरुष और 16वीं शताब्दी में हुए महाराणा प्रताप के समकालीन पं.चक्रपाणि मिश्र ने अपने अनुभवों और प्राचीन भारत के जलविज्ञान के ग्रन्थों का अवगाहन करके अपनी कृति ‘विश्वल्लभवृक्षायुर्वेद’ में हजारों वर्षों से चलन में आ रहे परंपरागत जलाश्रयों के बारे में अपना सैद्धांतिक विवेचन प्रस्तुत किया है. जलविज्ञान इसलिए प्राचीन भारतीय परम्परागत जलविज्ञान के संदर्भ में चक्रपाणि मिश्र द्वारा रचित यह ‘विश्ववल्...
वराहमिहिर के जलविज्ञान की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता

वराहमिहिर के जलविज्ञान की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-25 डॉ. मोहन चंद तिवारी पिछले लेख में बताया गया है कि वराहमिहिर के भूगर्भीय जलान्वेषण के सिद्धांत आधुनिक विज्ञान और टैक्नौलौजी के इस युग में भी अत्यंत प्रासंगिक और उपयोगी हैं, जिनकी सहायता से because आज भी पूरे देश की जलसंकट की समस्या का हल निकाला जा सकता है तथा अकालपीड़ित और सूखाग्रस्त इलाकों में भी हरित क्रांति लाई जा सकती है. इस लेख में वराहमिहिर के जलवैज्ञानिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता और वर्त्तमान सन्दर्भ में उनकी उपयोगिता के निम्नलिखित विचार बिंदु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं- जलविज्ञान 1. सर्वप्रथम, वराहमिहिर so का जलविज्ञान के क्षेत्र में मौलिक योगदान यह है कि उन्होंने विश्व के जलवैज्ञानिकों को इस सत्य से अवगत कराया कि भूमि के अन्दर भी सैकड़ों ऐसी जल की शिराएं सक्रिय रहती हैं जिनके कारण कृत्रिम प्रकार के बनाए गए जलाशयों में पूरे वर्ष भूमिगत जल का भंडारण ह...
“वराहमिहिर के अनुसार भूमिगत शिलाओं से जलान्वेषण”

“वराहमिहिर के अनुसार भूमिगत शिलाओं से जलान्वेषण”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-18 डॉ. मोहन चंद तिवारी आधुनिक भूविज्ञान के अनुसार भूमि के उदर में ऐसी बड़ी बड़ी चट्टानें होती हैं जहां सुस्वादु जल के सरोवर बने होते हैं. केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार भारतीय प्रायद्वीप का लगभग because 70 प्रतिशत हिस्सा जिन ‘कड़ी चट्टानों’ (Aquifers) से बना है उन चट्टानों के नीचे पानी का विशाल भंडार मौजूद है जिसमें से सालाना 4.23 क.हे.मी. पानी काम में लाया जा सकता है जबकि आज केवल 1 क.हे.मी. ही काम आ रहा है. वराहमिहिर की बृहत्संहिता में इन्हीं भूमिगत जल के खजानों को खोजने के अनेक उपाय बताए गए हैं.. बांबी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, so हरिद्वार द्वारा ‘आई आई टी’ रुडकी में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से स...
“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-12 डॉ. मोहन चंद तिवारी वैदिक संहिताओं के काल में ‘सिन्धुद्वीप’ जैसे वैदिक कालीन मंत्रद्रष्टा ऋषियों के द्वारा जलविज्ञान और जलप्रबन्धन सम्बन्धी मूल अवधारणाओं का आविष्कार कर लिए जाने के बाद वैदिक कालीन जलविज्ञान सम्बन्धी ज्ञान साधना का उपयोग करते हुए कौटिल्य ने एक महान अर्थशास्त्री और जलप्रबंधक के रूप में राज्य के जल संसाधनों को कृषि की उत्पादकता से जोड़कर घोर अकाल और सूखे जैसे संकटकाल से निपटने के लिए अनेक शासकीय उपाय भी किए. भारतीय जलविज्ञान की इसी परंपरागत पृष्ठभूमि में छठी शताब्दी ई. में एक महान खगोलशास्त्री तथा जल वैज्ञानिक वराहमिहिर का आविर्भाव हुआ. वराहमिहिर ने अपने युग में प्रचलित जलविज्ञान की मान्यताओं का संग्रहण करते हुए अपने ग्रन्थ ‘बृहत्संहिता’ में जलविज्ञान का सुव्यवस्थित विवेचन दो भागों में विभाजित करके किया. इनमें से एक प्रकार का जल अन्तरिक्षगत जल ह...
“सिन्धु सभ्यता के ‘हड़प्पा’ और ‘मोहन जोदड़ो’ नगरों  का जलप्रबंधन”

“सिन्धु सभ्यता के ‘हड़प्पा’ और ‘मोहन जोदड़ो’ नगरों  का जलप्रबंधन”

जल-विज्ञान
डॉ. मोहन चन्द तिवारी दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं। वैदिक ज्ञान-विज्ञान के गहन अध्येता, प्रो.तिवारी कई वर्षों से जल संकट को लेकर लिखते रहे हैं। जल-विज्ञान को वह वैदिक ज्ञान-विज्ञान के जरिए समझने और समझाने की कोशिश करते हैं। उनकी चिंता का केंद्र पहाड़ों में सूखते खाव, धार, नोह और गध्यर रहे हैं। हमारे पाठकों के लिए यह हर्ष का विषय है कि प्रो. तिवारी जल-विज्ञान के संदर्भ में ‘हिमांतर’ पर कॉलम लिखने जा रहे हैं। प्रस्तुत है उनके कॉलम ‘भारत की जल संस्कृति’ की 9वीं कड़ी... भारत की जल संस्कृति-9 डॉ. मोहन चन्द तिवारी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आईआईटी’ रुडकी में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जल...