Tag: जठराग्नि

बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर!

बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर!

लोक पर्व-त्योहार
दीपावली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र कहते हैं ‘भारत ’ यह नाम भरत नामक अग्नि के उपासकों के because समुदाय से जुड़ा है. वेदों के व्याख्याकार यास्क ने ‘भारत’ का अर्थ ‘आदित्य’ किया है. ब्राह्मण ग्रंथों में ‘अग्निर्वै भारत:’ ऐसा उल्लेख मिलता है. ‘भारती’ इस शब्द की व्याख्या करते हुए यास्क ‘भारत आदित्य तस्य भा: ‘ भारती वाक् और उससे जुड़े जन भी भारत हुए. ऋग्वेद में स्पष्ट उल्लेख आता है : ‘विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनं’. इन सबको देखते हुए प्रकाश के प्रति आकर्षण भारतीय परम्परा में आरम्भ से ही एक प्रमुख आधार प्रतीत होता है. प्रकाश के प्रमुख स्रोत  अग्नि देवता है. गौरतलब है कि अग्नि सबको पवित्र करने वाला ‘पावक’ है और शरीर के भीतर so (जठराग्नि!) और बाहर की दुनिया में बहुत सारे कार्य उसी की बदौलत चलते हैं. यहाँ तक की जल में भी वाड़वाग्नि होती है. आजकल के सुनामी इसे स्पष्टत: प्रदर्शित...
पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

अध्यात्म
भुवन चन्द्र पन्त पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किये जाने वाला कर्म ही श्राद्ध है. दरअसल पितर ही हमें इस धरती पर लाये, हमारा पालन पोषण किया और हमें अपने पांवों पर खड़े होने के लिए समर्थ किया. लेकिन उनसे ऊपर भी हमारे ऋषि थे, जो हमारे आदिपुरूष रहे और जिनके नाम पर हमारे गोत्र चले तथा उन ऋषियों के शीर्ष में देवता. देवऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए ही श्राद्ध की परम्परा शुरू हुई. हालांकि जितना उपकार इनका हमारे प्रति है उस ऋण से उऋण होना तो संभव नहीं और नहीं ऋण का मूल चुका पाना संभव है, श्राद्ध के निमित्त सूद ही चुका दें because तो हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं. जिसने हमारे लिए इतना सब किया, उनके इस दुनियां से चले जाने के बाद उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान देकर कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है. यों तो श्रद्धाभाव से  पितरों को स्वयं पिण्ड अर्पित कर तथा उन्ह...