Tag: ग्लेशियर

उच्च हिमालयी शीतजलीय मछली असेला के प्रजनन में मानवीय हस्तक्षेप

उच्च हिमालयी शीतजलीय मछली असेला के प्रजनन में मानवीय हस्तक्षेप

जल-विज्ञान
डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल विज्ञान शिक्षक रा.इ.का. भंकोली उत्तरकाशी (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान शिक्षक सम्मान 2022) गढ़वाल हिमालय की नदियों में पाई जाने वाली प्रमुख शीतजलीय मछली- असेला या साइजोथोरेक्स (स्नोट्राउट), के प्रजनन और आबादी पर पर बदलते जलवायु और मानवीय हस्तक्षेप के दुष्परिणाम दिख रहे हैं। इनका शरीर चिकना एवं हल्का चमकीला होता है। इसकी मुख्यतः दो प्रजातियां साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी एवं साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायत मात्रा में पायी जाती है। शीतजल में प्रजनन साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी शीतजलीय प्रजाति होने के कारण अधिकांशतः नदी के मध्य भाग में रहती हैं। गर्मी के मौसम में बर्फीली चोटियों (ग्लेशियर) से बर्फ पिघलने से नदियों के जल का तापमान कम हो जाता है। इस मौसम में इस मत्स्य प्रजाति की वृद्धि दर अन्य मौसमों की अपेक्षा अधिक रहत...
सीएम धामी ने मध्य क्षेत्रीय परिषद की बैठक उत्तराखण्ड में आयोजित किये जाने के लिये केंद्रीय गृहमंत्री का जताया आभार

सीएम धामी ने मध्य क्षेत्रीय परिषद की बैठक उत्तराखण्ड में आयोजित किये जाने के लिये केंद्रीय गृहमंत्री का जताया आभार

देहरादून
मुख्यमंत्री ने वैज्ञानिक आधार पर बरसाती नदियों को ग्लेशियर आधारित नदियों से जोड़ने के अभिनव प्रयासों पर दिया बल देहरादून: मध्य क्षेत्रीय परिषद की नरेंद्र नगर में आयोजित बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित प्रतिभाग कर रहे अन्य महानुभावों का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस महत्वपूर्ण बैठक को उत्तराखण्ड में आयोजित किये जाने के लिये केंद्रीय गृह मंत्री का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मध्य क्षेत्रीय परिषद केंद्र तथा राज्यों के मध्य आपसी सहयोग एवं समान प्रकार के मामलों में सेतु के समान है। परिषद आपसी विचारों एवं अनुभवों को साझा करने का भी सशक्त माध्यम है। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में उत्तराखण्ड से संबंधित कतिपय नीतिगत विषयों का उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड का 71 प्रतिशत भूभाग वन क्षेत्र से आच्छादित है। राज्य की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उत्तराखण्ड मे...
पुरोला—मोरी: भेड़ पालकों का जीवन बीमा करने की मांग!

पुरोला—मोरी: भेड़ पालकों का जीवन बीमा करने की मांग!

उत्तरकाशी
नीरज  उत्तराखंडी भेड़ पहाड़ की  आर्थिकी की रीढ़ है लेकिन उचित  प्रोत्साहन न मिलने से भेड़ -बकरी पालन व्यवसाय  दम तोड़ता  नजर आ रहा है. आधुनिक सुख सविधाओं की ओर दौड़ती युवा पीढ़ी पारम्परिक व्यवसाय भेड़ बकरी पालन से विमुख होती जा रही है. जिसकी एक बडी वजह भेड़ पालकों की सरकारी अनदेखी भी शामिल है. उचित सहयोग प्रोत्साहन न मिले से युवा पीढ़ी इस पुश्तैनी  व्यवसाय  से  मुख मोड़ने लगी है. पहाड़ की जवानी रोटी रोजगार की तलाश  में  मैदान  की खाक छान रही है.आज के युवक भेड़ पालन व्यवसाय पर रुचि नहीं ले रहे हैं. जिससे लगातार भेड़-बकरी व्यवसायियों की संख्या में भारी गिरावट आ रही है. उच्च हिमालय की  सुन्दर घाटियों में समुद्रतल से  3566 मीटर (11700 फीट) की ऊंचाई पर भेड़ पालक बेखौफ मौसम की मार झेल कर  भेड़ बकरी व्यवसाय पालन करते है. प्रतिकूल परिस्थितियों में धूप, बारिश, सर्दी  आसमानी  बिजली  के संकट से...
जलवायु परिवर्तन हिमालय के भूगर्भीय जलस्तर को घटा रहा है : शोध

जलवायु परिवर्तन हिमालय के भूगर्भीय जलस्तर को घटा रहा है : शोध

पर्यावरण
ग्लेशियर पिघलने से जल स्रोतों की स्वतंत्रता पर गंभीर संकट… निशांत पानी के चश्मे हिमालय क्षेत्र के ऊपरी तथा बीच becauseके इलाकों में रहने वाले लोगों की जीवन रेखा हैं. लेकिन पर्यावरणीय स्थितियों और एक दूसरे से जुड़ी प्रणालियों की समझ और प्रबंधन में कमी के कारण यह जल स्रोत अपनी गिरावट की ओर बढ़ रहे हैं. भूमिगत जल यह कहना है इंडियन स्‍कूल ऑफ बिजनेस के भारती but इंस्‍टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में रिसर्च डायरेक्‍टर एवं एडजंक्‍ट एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्‍टर अंजल प्रकाश का. ऑब्‍जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित डॉक्‍टर अंजल प्रकाश के इस अध्ययन के मुताबिक़ पानी के यह चश्मे जलापूर्ति के प्रमुख स्रोत है और वह भूतल और भूगर्भीय जल प्रणालियों के अनोखे संयोजन से फलते-फूलते और बदलते हैं. so माकूल हालात में जलसोते या चश्मे के जरिए भूगर्भीय जल रिसकर बाहर आता है. यह संपूर्ण हिमालय क्षेत्र के तमाम शहर...
पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी 5 जून को हर साल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाने का खास दिन है. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से स्वीडन स्थित स्टॉकहोम में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन 5 जून, सन् 1972 को आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी के सिद्धान्त को वैश्विक धरातल पर मान्यता मिली. इसी सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) का भी जन्म हुआ. तब से लेकर प्रति वर्ष 5 जून को भारत में भी ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है तथा प्रदूषण एवं पर्यावरण की समस्याओं के प्रति आम जनता के मध्य जागरूकता पैदा की जाती है.पर चिन्ता की बात है कि अब ‘पर्यावरण दिवस’ का आयोजन भारत के संदर्भ में महज एक रस्म अदायगी बन कर रह गया है. दुनिया के तमाम देश भी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चिन्...