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चुनाव के बहाने वजूद तलाशते प्रवासी पहाड़ी!

चुनाव के बहाने वजूद तलाशते प्रवासी पहाड़ी!

समसामयिक
शशि मोहन रावत ‘रवांल्‍टा’ आज लॉक डाउन के लगभग सात माह बाद अपने पुराने साथी से मुलाकात हुई. रात साढ़े ग्यारह बजे चाय पी गई और उसके बाद वो दूसरे रूम में सोने चला गया, क्योंकि सात माह से गांव में रहने के कारण जल्दी सोना उसकी आदत में शुमार हो गया है. मैं चाय पी लेता हूं तो नींद तकरीबन 1 घंटे बाद ही आती है. 12 बजे करीब बिस्तरbecause पर लेटा ही था कि— मेरे फोन की घंटी बजी. मैं चौंका. इतनी रात किसका फोन आया होगा? अचानक से दिमाग में कई तरह के ख्याल आने लगे. चूंकि नंबर नया था इसलिए और समय भी अधिक हो चुका था तो फोन उठाना भी जरूरी समझा. फोन फोन उठाते ही— हैलो, कौन? हां भाई प्रवासी क्या हाल हैं? अनयास ही मुंह के निकाला, तू बता भाई because घरवासी. अबे... तू इतनी रात को कैसे फोन कर रहा है ? और वो भी नए नंबर से? फोन बोला, फेसबुक पर तेरी because पोस्ट देखी तो समझ गया कि तू अभी सोया नहीं ह...