हिमालय पर्यावरण एवं तपोवन संस्कृति के संरक्षक थे सुन्दरलाल बहुगुणा

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  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

चिपको आंदोलन के प्रणेता और हिमालय पर्यावरण के पुरोधा पद्मविभूषण श्री सुन्दर लाल बहुगुणा आज हमारे बीच नहीं रहे. 94 वर्षीय विश्व विख्यात पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का शुक्रवार 21 मई, 2021 को कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया.उन्हें 8 मई को कोरोना संक्रमित होने के because बाद एम्स में भर्ती कराया गया था,जहां शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली.  राजकीय सम्मान के साथ ऋषिकेश के पूर्णानंद घाट पर श्रीसुन्दरलाल बहुगुणा जी का अंतिम संस्कार किया गया.उनके बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने नम आंखों से पिता को मुखाग्नि दी.

सिद्धांतों पर चलते

हिमालय पर्यावरण और वन संरक्षण के प्रति अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित करने वाले इस महामनीषी के निधन की खबर सुनते ही समूचे देश में शोक की लहर उमड़ पड़ी. चिपको because आंदोलन का नेतृत्व करने वाले वृक्षमित्र सुंदरलाल बहुगुणा जल,जंगल, जमीन और वायु को मानव जीवन के लिए  ईश्वरप्रदत्त उपहार मानते थे और जीवन पर्यन्त इनकी रक्षा के लिए ही संघर्ष करते रहे.पर्यावरण संरक्षण को समर्पित उनका जीवन और सिद्धान्त विश्वभर में पर्यावरण हितैषियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा.

गांधी के

महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलते हुए सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जो अहिंसक अभियान चलाया,उसकी गूंज पूरे देश में ही नहीं because विदेशों तक भी सुनाई दी.बहुगुणा जी ने विश्वभर की यात्रा कर चिपको आंदोलन को 107 देशों तक फैलाया.

महात्मा

देश के स्वतंत्रता आन्दोलन के सेनानी, महात्मा गांधी और सरदार पटेल की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रूप प्रदान करने वाले टिहरी के मुक्ति नायक बहुगुणा जी के विदा होने because से एक समर्पित पर्यावरण आंदोलन के विचार का भी अंत हो गया. वन्य पर्यावरण संरक्षक के रूप में विश्वभर में मान्य सुंदरलाल बहुगुणा न केवल भारत में बल्कि समूचे विश्व में एक चर्चित पर्यावरणविद रहे हैं |

पूरा

महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलते हुए सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जो अहिंसक अभियान चलाया,उसकी गूंज पूरे देश में ही नहीं विदेशों तक भी सुनाई दी.बहुगुणा जी ने विश्वभर की यात्रा कर चिपको आंदोलन को 107 देशों तक फैलाया.

अपना

सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के टिहरी रियासत की बालगंगा घाटी में स्थित मरोड़ गांव में 9 जनवरी 1927 को हुआ. उनके पिता अम्बादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे.सुंदर लाल बहुगुणा 13 साल की अवस्था में ही टिहरी वासियों के नांगरिक अधिकारों हेतु संघर्षशील गांधी जी के शिष्य श्रीदेव सुमन के because संपर्क में जब आए तो उनके जीवन की मानो दिशा ही बदल गई.पिता के वन विभाग  में अधिकारी होने के कारण  बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के लाभों को बारीकी से समझा था.उन्होंने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधने और पानी के संरक्षण की अद्भुत क्षमता होती है.उनका मानना ​​था कि वनों का सबसे पहले उपयोग आस-पास रहने वाले लोगों के लिए होना चाहिए ताकि उन्हें भोजन,लकड़ी और पशुओं के लिए घास, चारा आसानी से उपलब्ध हो सके.

बहुगुणा जी ने

उन्होंने देखा कि वन, पर्वत, नदी, पहाड़,मानव जीवन यापन के प्रकृति प्रदत्त उपहार हैं,किन्तु उन्हीं वनों, पहाड़ों का लाभ के लिए राज्य सरकारों द्वारा  जो दोहन और विनाश किया जा रहा है,वह प्रकृति के प्रति किया गया घोर अपराध है. उन्होंने आम जनता को वनों के वास्तविक लाभ और उनके मौलिक अधिकारों के प्रति  because जागरूक किया. उन्होंने कहा कि वन हमें, ईंधन,पशुओं का चारा जीवन रक्षक औषधियां ही नहीं देते,बल्कि जीवन की मूलभूत आवश्यकता हवा,पानी और निरोगी स्वास्थ्य भी देते हैं,जो कोई राज्य सरकार नहीं दे सकती.बहुगुणा जी की इसी सोच ने ‘चिपको’ जैसे वन संरक्षक आंदोलन को जन्म दिय और कालांतर में इस पर्यावरण संरक्षण आंदोलन को पूरे विश्व में मान्यता मिली.इसी आंदोलन के परिणामस्वरूप बहुगुणा जी को विश्व पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ प्रतिनिधि सभा’ को संबोधित करने का भी अवसर मिला.

इतर

उन्होंने अमेरिका, जापान, because कनाडा, फ्रांस, जर्मनी इंगलैंड, आदि विभिन्न देशों में ‘चिपको’ का संदेश फैलाते हुए प्राचीन भारतीय तपोवन संस्कृति के महत्त्व से भो देश और दुनियां को अवगत कराया. बीबीसी ने बहुगुणा जी के चिपको आंदोलन पर ‘एक्सिंग द हिमालय’ फिल्म भी बनाई.

आंदोलनों से

दरअसल, बहुगुणा जी को इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचाने में उनकी सहधर्मिणी का भी विशेष योगदान था.1956 में 23 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा का विवाह लक्ष्मी आश्रम कौसानी because से जुडी मीराबेन की सहयोगी सामाजिक कार्यकर्ता विमला नौटियाल से हुआ.उन्होंने ही बहुगुणा जी को तुच्छ राजनीतिक भ्रमजाल से मुक्त रखते हुए समाज सेवा और पर्यावरण के लिए ठोस कार्य करने की प्रेरणा दी| इसी  उद्देश्य से सिल्‍यारा में ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ की स्थापना की गई थी.

हिमालय

1981 से 1983 के बीच बहुगुणा जी ने पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर,चंबा के लंगेरा गांव से हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किलोमीटर की पदयात्रा की.इसी वृक्ष बचाओ जन आंदोलन because के दौरान जब बहुगुणा जी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिले तो जन दबाव मेंआकर  इंदिरा गांधी को 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने की मांग को स्वीकार करना पड़ा .

और

श्रीदेव सुमन की आशा और आकांक्षा के अनुरूप टिहरी को कभी न छोड़ते हुए बहुगुणा जी ने देश की आजादी और टिहरी की मुक्ति के बाद गांधी और पटेल जैसे विराट पुरुषों के विचार,दर्शन because और कार्य को सिद्धि तक पहुंचाने का बहुत बड़ा कार्य किया. गांधी, पटेल, विनोबा और कालेलकर सभी को सुंदरलाल बहुगुणा में भविष्य के भारत का एक सुयोग्य और सक्षम नेतृत्व दिखाई देता था.किंतु बहुगुणा जी राष्ट्रीय राजनीति से सदा दूर रहे और हिमालय पुत्र बनकर हिमालय के संघर्षों से जूझते हुए हिमालय वासियों की पीड़ा दूर करने के लिए टिहरी से कभी नीचे नहीं उतरे.

सुधारों

बहुगुणा जी ने देश को आजादी मिलने के बाद राजनीतिक जीवन से पूर्णतः संन्यास लेकर समाज सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. भूदान आंदोलन से लेकर दलित उत्थान, because शराब विरोधी आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही.1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के संपर्क में आने के बाद बहुगुणा जी ने दलित छात्रों के लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना की.दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए भी उन्होंने अनेक बार आंदोलन किए.

सामाजिक

1960 के दशक में विभिन्न सामाजिक सुधारों और आंदोलनों से इतर बहुगुणा जी ने अपना पूरा ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित कर दिया.1971 में उन्होंने 16 दिन तक लगातार because अनशन किया,जिसकी चर्चा देश-विदेश तक हुई. इसी कालखंड में 1973 में चमोली जिले के रैनी गाँव में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के पेड़ों की कटाई का विरोध करने के लिए उन्होंने चिपको आन्दोलन चलाया. वन विभाग के ठेकेदारों के हाथों से कट रहे पेड़ों  को बचाने के लिए गौरा देवी के साथ जब दर्जनों पहाड़ की माता-बहनें चिपकीं तो पूरी दुनिया में ‘चिपको आन्दोलन’ प्रसिद्ध हो गया.पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाने का यह अभियान देवभूमि से पूरे देश में पहुंचा और इस आंदोलन के सूत्रधार सुंदरलाल बहुगुणा को वृक्षमित्र की संज्ञा से सुशोभित किया गया.

विभिन्न

1981 से 1983 के बीच बहुगुणा जी ने पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर,चंबा के लंगेरा गांव से हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किलोमीटर की पदयात्रा की.इसी वृक्ष बचाओ because जन आंदोलन के दौरान जब बहुगुणा जी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिले तो जन दबाव मेंआकर  इंदिरा गांधी को 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने की मांग को स्वीकार करना पड़ा .

दशक में

बहुगुणा जी के पर्यावरण संरक्षण कार्यों से देश और दुनिया पर इतना असर पड़ा कि विश्वभर के स्कूलों और कालेजों में पर्यावरण की शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाने लगा. because बहुगुणा जी को मिलने वाले सम्मानों और पुरस्कारों की बाढ़ सी आ गई.

भारत सरकार ने सुन्दरलाल बहुगुणा को सन् 1981 में नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ सम्मान  देने की घोषणा की,लेकिन बहुगुणा जी ने यह सम्मान लेने से यह कह कर मना करbecause दिया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं स्वयं को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ.इसके उपरांत सुंदर लाल बहुगुणा को उनकी हिमालय पर्यावरण सम्बन्धी सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले-

विरोधी

  • वर्ष 1986: जमनालाल बजाज पुरस्कार
  • वर्ष 1987:  राइट लाइवलीहुड अवार्ड
  • वर्ष 1989: आईआईटी रुड़की द्वारा डीएससी की मानद उपाधि
  • वर्ष 2009: पद्मविभूषण सम्मान

बांध का

इसके अलावा राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, शेरे कश्मीर अवार्ड समेत दर्जनों अन्य छोटे बड़े पुरस्कार भी इन्हें दिए गए.विश्वभारती विवि शांतिनिकेतन ने भी इन्हें डाकटरेट की मानद उपाधि because प्रदान की.इतने सम्मानों को प्राप्त करने के बाद भी हिमालय पुरुष बहुगुणा जी स्थितप्रज्ञ होकर टिहरी से नीचे नहीं उतरे और पर्यावरण रक्षा के उनके संकल्प को कोई डिगा नहीं सका.

टिहर

बहुगुणा जी का मुख्य कर्मक्षेत्र यद्यपि हिमालय के पहाड़ और उनके जंगल थे. तथापि आमंत्रित होने पर उन्होंने देश विदेश में जाकर भी ‘चिपको’ आंदोलन के संदेश को जन जन तक because पहुंचाया किन्तु वे आजीवन हिमालय की तपोभूमि में ही एकचित हो कर यहां के जल,जंगल जमीन के सरोकारों को लेकर संघर्ष करते रहे और यहां राज्य संस्था से संत्रस्त लोगों के हमदर्द बन कर उनके अधिकारों की लड़ाई भी लड़ते रहे.हिमालय और गंगा के संरक्षण को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर उन्होंने पहाड़वासियों को  पर्यावरण संरक्षण का यह अमोघ मन्त्र दिया –

“धार एंच पाणी, ढाल पर डाला,

जी को

बिजली बणावा खाला-खाला”

बहुगुणा जी ने 1990 में  एशिया के सबसे बड़े बाँध टिहरी डैम का विरोध हिमालय पर्यावरण को बचाने के लिए किया और दो ढाई दशक तक कई प्रधानमंत्रियों के आग्रह के वावजूद भी वे टिहरी बांध के निर्माण का विरोध करते रहे.उनका मानना था कि हिमालय जैसे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में 100 मेगावाट से अधिक because क्षमता का बांध नहीं बनना चाहिए.बड़े और विशाल बांधों को बनाने का मतलब है प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण देना. राज्य को विकास की योजनाओं से जोड़ने के लिए जगह-जगह गाड़ गधेरों की जलधाराओं पर छोटी-छोटी बिजली की परियोजनाएं शुरू कर लोगों की ऊर्जा सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है.

पर,सरकार की जिद के because कारण टिहरी बांध तो बना किन्तु एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर सदा के लिए उजड़ गया. जिस टिहरी नगर का लोककवि गुमानी पंत ने टिहरी नरेश सुदर्शन शाह की सभा में दो सौ साल पहले  गौरवगान किया था,अन्ध विकासवादियों द्वारा उसका आज नामो निशान भी मिटा दिया गया-

बहुगुणा

“सुरंगतटी रसखानमही
धनकोशभरी यहु because नाम रह्यो.
पदतीन बनाय so रच्यौ
बहुविस्तार वेगु but नहीं जात कह्यो.
इन तीन पदों के because बखान
बस्यो अक्षर एक so ही एक लह्यो.
धनराज सुदर्शन because शाहपुरी
टिहिरी यदि but कारन नाम गह्यो..”

वाले

यद्यपि बहुगुणा जी के विरुद्ध खूब प्रोपेगेंडा और दुष्प्रचार भी किया जाता रहा ,लेकिन गांधी ,पटेल और श्रीदेव सुमन के विराट मानव मूल्यों से निर्मित बहुगुणा जी के व्यक्तित्व because की शुभ्रता कभी धूमिल नहीं हुई ,और वे ही धूमिल हो गए जो हिमालय के अधिकारों के साथ साथ वहां टिहरी राज्य के धरती पुत्रों को उजाड़ने में लगे थे.बहुगुणा जी के संघर्षपूर्ण हस्तक्षेप के कारण ही टिहरी के विस्थापितों के साथ थोड़ा बहुत न्याय हो पाया.

करने

मैंने उन्हें अपनी पुस्तक ‘अष्टाचक्रा अयोध्या : इतिहास और परम्परा’ भेंट की तो वे यह जान कर बहुत प्रसन्न हुए थे कि मैंने इस पुस्तक में पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर because उत्तराखंड हिमालय को आर्यों का आदिनिवास स्थान सिद्ध किया है.अत्यंत दुःख का विषय है कि हिमालय पर्यावरण का संरक्षक ऋषिकल्प हिमालय पुत्र आज हमारे बीच नहीं रहा. हिमालय पुत्र श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी को विनम्र श्रद्धांजलि! और शत-शत नमन! अभिवंदन!

संघर्ष

देश,समाज और पर्यावरण के लिए संघर्ष करने वाले बहुगुणा जी को टिहरी बांध का विरोधी होने के कारण भारतरत्न का सम्मान नहीं मिल सका. किन्तु देश विदेश में बहुगुणा जी because ने हिमालय पर्यावरण की रक्षा के लिए जो सम्मान अर्जित किया वह ‘विश्वगुरु भारत जैसा सम्मान है. बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा जी की संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा नई पीढी के लिए सदैव प्रेरक बनी रहेगी.हिमालय सरीखे अटल जीवन मूल्यों के पर्याय और हिमालय के समान श्वेत वस्त्रधारी सहज सरल राजर्षि सुन्दरलाल बहुगुणा जी की जीवनगाथा अद्वितीय और अनुकरणीय है.

के लिए

दस बारह वर्ष पहले हिमालय पर्यावरण सम्बन्धी कार्यक्रम में बहुगुणा जी दिल्ली आए थे,तो मुझे भी इस महान तपस्वी के दर्शन करने और हिमालय पर्यावरण पर चर्चा करने का because सुअवसर मिला था. बहुगुणा जी उत्तराखंड की ऋषि परम्परा और वेदों की पर्यावरण चेतना के सूक्ष्मद्रष्टा  ऋषितुल्य विचारक थे. मैंने उन्हें अपनी पुस्तक ‘अष्टाचक्रा अयोध्या : इतिहास और परम्परा’ भेंट की तो वे यह जान कर बहुत प्रसन्न हुए थे कि मैंने इस पुस्तक में पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर उत्तराखंड हिमालय को आर्यों का आदिनिवास स्थान सिद्ध किया है.अत्यंत दुःख का विषय है कि हिमालय पर्यावरण का संरक्षक ऋषिकल्प हिमालय पुत्र आज हमारे बीच नहीं रहा. हिमालय पुत्र श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी को विनम्र श्रद्धांजलि! और शत-शत नमन! अभिवंदन!

पर्यावरण

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

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