कारगिल विजय दिवस (26 जुलाई) पर विशेष
- डॉ. मोहन चन्द तिवारी
आज पूरे देश में कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है.आज के ही दिन 26 जुलाई,1999 को जम्मू और कश्मीर राज्य में नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था. उसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष ’26 जुलाई’ का दिन ‘विजय दिवस’ के रूप में याद किया जाता है और पूरा देश उन वीर और जाबांज जवानों को इस दिन श्रद्धापूर्वक नमन करता है.
भारतीय सेना का यह ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था. इस कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे. कारगिल के इस युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने में उत्तराखंड के 75 जवानों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी.
दो महीने से भी अधिक समय तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के वीर सपूतों ने जिस अदम्य उत्साह और रणकौशल का परिचय देते हुए अपनी मातृभूमि में घुसे पाकिस्तानी आतंकवादियों और आक्रमणकारियों को मार भगाया था वह भारतीय सेना के शौर्यपूर्ण तथा गौरवशाली इतिहास का ताजा और ज्वलंत उदाहरण है. कारगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त जाट रेजिमेंट के कैप्टन अनुज नायर व ले. सौरभ कालिया, जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा,गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय, बिहार रेजिमेंट के मेजर सर्वानन, राजपूत राइफल्स के मेजर पद्मपणि आचार्य आदि कुछ ऐसे बहादुर सेना नायक हुए जिनके नेतृत्व में मोर्चा संभालने वाले सैकड़ों वीर जवान हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह दिन देश को समर्पित उन सभी वीर सेनानियों को याद करने और उन्हें नमन करने का दिन है जिन्होंने अपना जीवन हमारी सुरक्षा के खातिर बलिदान कर दिया-
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले.
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा..”
स्वतंत्रता और देशभक्ति की अपनी एक निराली ही परंपरा होती है जिसकी रक्षा की कीमत रणबांकुरों को हर युग में अपना रक्त बहाकर या अपने प्राण देकर चुकानी पड़ती है. देश पर हंसकर न्यौछावर होने वाले जांबाजों की बदौलत ही आज हम अपने घरों में सुरक्षित हैं. कारगिल की लड़ाई में तोपखाने से पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ने वाली टीम के सदस्य रहे सूबेदार मेजर ओम प्रकाश मिश्रा का कहना है कि बहुत कम लोगों को देश पर जान कुर्बान करने का मौका मिलता है.हर फौजी जान हथेली पर रखकर इसके लिए तैयार रहता है.कारगिल की लड़ाई के दौरान यही जोश और जज्बा वहां तैनात हर सैनिक के अंदर मौजूद था.
भारत मां के इन सपूतों ने अपनी मां को भी वापस लौटकर आने का वादा किया था. मगर उनके वादा निभाने का अन्दाज भी निराला था.उन्होंने भारत के सीमाओं की रक्षा के लिए जहां एक ओर युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दे दी और भारत मां को दिए गए वचन को निभाया तो दूसरी ओर अपनी मां को दिया गया घर वापसी का वचन भी हंसी खुशी निभा दिया, मगर तिरंगे मे लिपटे हुए लकड़ी के ताबूत में लौट कर.
कारगिल युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद हुए थे,1300 से ज्यादा घायल हो गए. देश के लिए बलिदान होने वाले सपूतों में अधिकांश योद्धा वे थे जो अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए. इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर भारतीय सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है और भारत माता की रक्षा का वचन भी देता है.
भारत मां के इन सपूतों ने अपनी मां को भी वापस लौटकर आने का वादा किया था. मगर उनके वादा निभाने का अन्दाज भी निराला था.उन्होंने भारत के सीमाओं की रक्षा के लिए जहां एक ओर युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दे दी और भारत मां को दिए गए वचन को निभाया तो दूसरी ओर अपनी मां को दिया गया घर वापसी का वचन भी हंसी खुशी निभा दिया, मगर तिरंगे मे लिपटे हुए लकड़ी के ताबूत में लौट कर. जिस राष्ट्र ध्वज तिरंगे के आगे कभी इन जाँबाजों का माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर शोक संतप्त भाव से उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था.
भारत एक ऐसा सौभाग्यशाली राष्ट्र है जिसके पास ‘महाभारत’ जैसा अभेद्य रक्षाकवच ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ ने न केवल हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रमणकारियों से देश की रक्षा की है बल्कि हर युग में एक वीर सेना नायक के रूप में राष्ट्रीय कूटनीति तथा युद्धनीति के मध्य संतुलन बनाने में भी अहम भूमिका का निर्वाह किया है. सेना आधुनिक से आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से भले ही समृद्ध क्यों न हो जाए किन्तु उसका नेतृत्व करने वाले सेनानायकों का मनोबल यदि कमजोर होगा तो वह सेना रणक्षेत्र में सफल नहीं हो सकती. किन्तु महाभारत के पास एक ऐसी युद्ध तकनीक और सैन्य मनोविज्ञान है जिसकी प्रेरणा से भारतीय सेना हर युग में शौर्य तथा पराक्रम की नवीन ऊर्जा प्राप्त करती रही है.
29 जून सन् 1999 को कारगिल की रणभूमि में शौर्य तथा पराक्रम को महामण्डित करने वाले मेजर पद्यपाणि ने महाभारत से ही प्रेरणा लेकर वीरता से लड़ते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था. तब मेजर पद्यपाणी ने पिता को लिखे अपने अन्तिम पत्र में यह इच्छा भी प्रकट की थी कि उनकी गर्भवती पत्नी चारुलता को प्रतिदिन महाभारत की शौर्यपूर्ण कथाएं सुनाते रहें ताकि उनकी भावी सन्तान को वीरता के महाभारतीय संस्कार मिल सकें. यह एक उदाहरण है कि भारतीय सेना में आज भी महाभारत कितनी लोकप्रिय प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है. मेजर पद्यपाणि की भांति भारतीय सेना में आज भी अनेक जवान हैं जो महाभारत से प्रेरणा लेकर रणभूमि में वीरतापूर्ण युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं तथा गीता के द्वारा दिए गए सन्देश-
“हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्” (गीता, 2.37) की भावना से देश और राष्ट्र की रक्षा के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति भी दे देते हैं.
महर्षि वेद व्यास ने युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले ऐसे ही शूरवीरों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हुए कहा है कि तीनों लोकों में शूरवीरता से बढ़कर और कोई वस्तु नहीं. शूरवीर सबका पालनहार होता है और सारा संसार उसी के सहारे टिका है –
“न हि शौर्यात् परं किञ्चित्त्रिषु लोकेषु विद्यते.
शूरः सर्वं पालयति सर्वं शूरे प्रतिष्ठितम्..” -शान्तिपर्व.‚ 99.18
महाभारत के अनुसार वीरता से युद्ध लड़ने वाले सैनिकों को संसार के सभी धर्मों का पुण्य प्राप्त होता है ठीक उसी प्रकार जैसे महासागर को हजारों नदियों का जल प्राप्त होता है –”यथा नदीसहस्राणि प्रविष्टानि महोदधिम्.
तथा सर्वे न संदेहो धर्माधर्मभृतां वरम्..”
-अनुशासनपर्व‚145वां अध्याय
कारगिल के इस युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने में उत्तराखंड के 75 जवानों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी. जिस समय कारगिल में युद्ध चल रहा था उसी समय उत्तराखंड के जाने माने लोककवि नरेन्द्र सिंह नेगी जी का आडियो कैसेट “कारगिले लड़ै में छौऊं” रिलीज हुआ. इस कैसेट के एक गीत के माध्यम से कारगिल के युद्ध में लड़ रहे गढ़वाल रेजीमेंट के एक सैनिक का अपनी माँ को भेजा गया सन्देश आज भी उत्तराखंड की उस वीरगाथा परंपरा की याद से आंखों को नम कर देता है कि भारत के जांबाज कितनी देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने में गर्व का अनुभव करते हैं.
युद्धक्षेत्र के हालात बताते हुए उत्तराखंड का यह सैनिक जवान अपनी मां को चिट्ठी लिखते हुए कहता है-
“इन रूखे-सूखे, पहाड़ों पर चारों तरफ बर्फ गिरी हुई है. अंधाधुंध तोपें चल रही हैं,ऐसा लगता है जैसे आसमान से बम और गोले बरस रहे हैं. माँ मैं यह नहीं कह सकता कि तुम्हारे पास पहले मेरी यह चिट्ठी पहुँचेगी या मेरी प्राणाहुति का समाचार देने वाला टेलीग्राम. लेकिन मै यह जरूर कह सकता हूं कि देशरक्षा की जो सौगंध मैंने खायी है उसे कभी तोड़ नहीं सकता.अब तो मेरी अन्तिम मनोकामना यही है कि मुझे युद्धक्षेत्र में वीरगति मिले और मैं तिरंगे के कफन से लिपटा हुआ ही अपनी मातृभूमि में वापस लौटूं-
“पैल्लि य चिट्ठि मिललि कि तार,
मांजि बोलि नि सकदु मी
देश रक्षा कि कसम खाईंन,
कसम तोड़ि नि सकदु मी
तिरंगा कु कफन मिलु ये
आखिरि ख्वैश छ,
तू उदास न ह्वै मां.”
‘विजय दिवस’ के अवसर पर राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारतीय सेना के सभी वीर जवानों को कोटि कोटि नमन!
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)