बधाई हो रवांई के लाल बधाई हो…

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— शशि मोहन रवांल्टा

नरेश भाई! रवांई का मान—सम्मान बढ़ाने के लिए आपको हार्दिक बधाई। 26 जनवरी के दिन उत्तरखंड के मुखिया के हाथों आपको ‘देव भूमि रत्न’ सम्मान मिलने पर बहुत ही प्रसन्नता हुई। साथ ही उत्तराखंड पत्रकार यूनियन का हार्दिक आभार जिनके द्वारा यह आयोजन आयोजित किया गया और आपका चयन इस सम्‍मान के लिए हुआ।

एक साधारण-सा दिखने व्यक्ति बहुत ही असाधारण काम कर रहा है। बातों ही बातों में पता चला कि नरेश भाई रवांई घाटी से पहाड़ी खाद्यानों को वहां के किसानों से एकत्रित करके देहरादून—दिल्ली—मुंबई जैसे महानगरों में स्टॉलों के माध्यम से लोगों को पहाड़ी खाद्य सामग्री मुहैया करवाते हैं। साथ ही यह भी पता चला कि नरेश भाई से यमुना घाटी के 500 किसान सीधे जुड़े हुए हैं

वैसे से तो नरेश भाई मेरे क्षेत्र रवांई घाटी से ही हैं लेकिन मेरा इनसे पहले से कोई खास परिचय नहीं था। यदि परिचय था भी तो बस इतना भर कि नौटियाल जी देवलसारी गांव के हैं और राजकीय इंटर कॉलेज, नौगांव में हमारे ​सीनियर रहे हैं। जैसा कि अक्सर होता है कि अपने क्षेत्र के लोगों से किसी—किसी न बहाने या गांवों के माध्यम से एक दूसरे से परिचय होता ही है, साथ ही देवलसारी गांव में लुद्रेश्वर महादेव का भव्य मंदिर होने के नाते भी इस गांव की अपनी एक अलग पहचान है। चूंकि मेरे गांव में मेरे ईष्ट देव बाबा बौखनाग का मुख्य थान होने के नाते हमारे यहां जेष्ठ की जातर (मेला) होता है जिसमें क्षेत्र के सभी लोगों का आना-जाना होता है। नरेश भाई की चूंकि हमारे गांव से रिश्तेदारी भी है तो गाहे—बगाहे वो भी मेले में आया करते थे। बस उनसे इतना भर परिचय था।

पिछले साल रवांई लोक महोत्सव तैयारियों के दौरान एक दिन अचानक प्रेम पंचोली भाई का फोन आया कि ​शशिमोहन मैं आपकी बात नरेश नौटियाल से करवाता हूं, प्रेम भाई ने बताया कि नरेश नौटियाल देवलसारी गांव से है और देहरादून में पहाड़ी उत्पादों को उत्तराखंड के अलावा देश के महानगरों दिल्ली—मुंबई तक पहुंचा रहे हैं, आप बात करो। उन्होंने फोन पर हेल्लो बोला, मैंने कहा पंडित जी नमस्ते। रुद्रेश्वर महादेव की जय हो। उसके बाद मैंने नरेश भाई को रवांई लोक महोत्सव के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। जिससे सुनकर वो काफी प्रसन्न हुए और कहा कि मैं भी रवांई लोक महोत्सव में आपका साथ दूंगा। उसके बाद जब मैं देहरादून गया तो ‘जस्ट कैफे’ घंटाकार में नरेश भाई से चाय-कापी के साथ पहली मुलाकात हुई।

नरेश भाई से पहली बार मिला तो वो एकदम साधार से दिखे। फिर प्रेम भाई ने उनके बारे में बताया तो सहज विश्वास नहीं हुआ। दिखने और बोलने में एकदम भोलापन जैसे के अमूमन हम पहाड़ियों में होता। पहाड़ के लोगों से यदि कोई पहली मर्तबा मिलता और बात करता है, तो वह एक नजर में पहचान लेता है कि अमुख व्यक्ति पहाड़ से है। इसके बाद जब नरेश भाई से बातचीत हुई तो पता चला कि एक साधारण-सा दिखने व्यक्ति बहुत ही असाधारण काम कर रहा है। बातों ही बातों में पता चला कि नरेश भाई रवांई घाटी से पहाड़ी खाद्यानों को वहां के किसानों से एकत्रित करके देहरादून—दिल्ली—मुंबई जैसे महानगरों में स्टॉलों के माध्यम से लोगों को पहाड़ी खाद्य सामग्री मुहैया करवाते हैं। साथ ही यह भी पता चला कि नरेश भाई से यमुना घाटी के 500 किसान सीधे जुड़े हुए हैं। जिनसे वो विभिन्न प्रकार की दालें और अन्य सामान एकत्रित करते हैं।

बातों ही बातों में नरेश भाई ने एक बात और भी बताई कि मैं यह दालें गांव की महिलाओं से सीधे खरीदकर लाता हूं और पैसे भी नकद महिलाओं के हाथों में ही देता हूं। जिससे कि महिलाओं की आर्थिकी में सुधार होता है। यह बात मेरे ​दिल की को अंदर तक छू गई। मैंने कहा, भाई आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि आप सीधे महिलाओं से संपर्क करके उनके हाथों में पैसे देते हैं। ये बहुत अच्छी बात है, वो इसलिए भी कि हमारे यहां महिलाएं ही हमारी रीढ़ हैं हमारे यहां का ज्यादातर काम ​महिलाएं ही संभालती है, वो काम चाहे खेतीबाड़ी का हो या अन्य गृहकार्य। इसलिए उनके हाथों में सीधे पैसे देने का मतलब है कि उनके काम को सम्मान देना। धीरे—धीरे बातों का सीलसीला बढ़ता ​गया।

एक महिला बाहर छत पर प्‍लास्टिक की थैलियों में दालें और मसालों कि पैंकिंग कर रही है। मैंने देखा कि वह महिला मोमबत्ती जलाए हुए थैलियों को बड़ी तन्मयता और सावधानी के साथ पैक कर रही है। मैं काफी देर तक उनको निहारता रहा, चूंकि वो अपने काम में व्यस्त थीं तो उनका ध्यान मेरी तरफ नहीं गया। नरेश भाई ने आवाज देकर परिचय करवाया। ये मेरी वाइफ लता नौटियाल हैं

नेरश भाई बताते हैं कि आज स्थिति यह है कि मैं जब दालों के सीजन में गांवों में जाता हूं ​तो महिलाएं मेरे लिए दालें छिपा कर रखती हैं और यदि गांव में कोई अन्य व्यक्ति दालें खरीदने आता है तो उसे न देखकर मुझे देते हैं। यह सुनकर मैं गद्गद हो गया। मैंने कहा भाई, यह आपका व्यवहार ही जो लोग आपको इतना प्यार करते है। आपका स्वभाव ही ऐसा है कि आप जिस व्‍यक्ति से एक बार मिल जाते हैं उसे अपना बना लेते है। ये आपकी लग्न, मेहनत और ईमानदारी का ही ​परिणाम है। आपकी सौम्यता ही लोगों को आपके करीब लाती है। सच कहूं तो मेरी पहली मुलाकात भी नरेश भाई से अविस्मरणीय है। इसके बाद नरेश भाई हमारी टीम रवांई लोक महोत्सव के अहम हिस्सा बन गए। तब से अब तक नरेश भाई सानिध्य बराबर प्राप्त होता रहा है। टीम रवांई लोक महोत्सव एवं नरेश भाई के बिना महोत्‍सव असंभव था। महोत्सव के बारे में सभी के योगदान को लेकर विस्तार से फिर कभी चर्चा करूंगा।

एक दिन जब नरेश भाई के घर जाना हुआ तो देखा कि एक महिला बाहर छत पर प्‍लास्टिक की थैलियों में दालें और मसालों कि पैंकिंग कर रही है। मैंने देखा कि वह महिला मोमबत्ती जलाए हुए थैलियों को बड़ी तन्मयता और सावधानी के साथ पैक कर रही है। मैं काफी देर तक उनको निहारता रहा, चूंकि वो अपने काम में व्यस्त थीं तो उनका ध्यान मेरी तरफ नहीं गया। नरेश भाई ने आवाज देकर परिचय करवाया। ये मेरी वाइफ लता नौटियाल हैं, भाभी जी से नमस्‍ते के साथ परिचय हुआ। फिर मैंने नरेश भाई से कहा कि मुझे तो लगता था कि आप इतना बड़ा काम कर रहे हैं तो आपने इनके पैकिंग के लिए कोई मशीन वगैरा रखी होगी लेकिन भाभी जी तो अपने हाथों से इसकी पैकिंग कर रही हैं। मैंने कहा, भाई आप दोनों धन्य हैं जो इतना बड़ा काम कर हैं। आजतक तो​ सिर्फ सुना ही था किसी कामयाब पुरुष के पिछे किसी महिला का हाथ होता है लेकिन आज सच में देख रहा हूं। आप दोनों को मेरा प्रणाम।

अंत में अनायास किसी शायर चार पंक्तियां जेहन में उतर आई— ये चार पंक्तियां नरेश भाई के लिए-

जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है

हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है

अभी तो नापी है बस मुट्ठी भर जमीन

अभी तो सारा आसमान बाकी है।

 आपकी मेहनत, लग्न और सच्ची निष्ठा को सलाम कि आप सीधे 500 किसानों को रोजगार से जोड़ रहे हैं। आज उत्तराखंड पलायन का दंश झेल रहा है। आप जैसे युवा साथी पलायन को रोकने के लिए उम्मीद की नई किरण के रूप में कार्य कर रहे है। उम्मीद है कि आपसे हमारी युवा प्रेरणा लेगी व और हिमालय और गांवों को बचाने और बसाने के लिए भरसक प्रयास करेगी।

2 COMMENTS

  1. रवांई की माटी के लाल नरेश भाई नौटियाल जी को बहुत-बहुत बधाइयाँ व शुभकामनाएं…

  2. रँवाई के लाल भाई नरेश नौटियाल को रँवाई की एक पहचान दिलाने के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं भाई नरेश नौटियाल ने रँवाई के पहाड़ी खाद्यान्न को पूरे देश में पहुंचाया है जन-जन तक साधारण से दिखने वाले नरेश भैया आज हमारे गांव की ही नहीं पूरे उत्तराखंड की शान हैं

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