कीवी मेन! विक्रम बिष्ट के स्वरोजगार मॉ​डल नें पलायन को दिखाया आईना, पहाड़ में रोजगार सृजन की जगा रहे हैं अलख

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Kiwi Men Vikram Singh Bisht by Himantar

ग्राउंड जीरो से संजय चौहान

कुछ लोगों को पहाड़ आज भी पहाड़ नजर आता है. वहीं दूसरी ओर हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने बिना किसी शोर शराबे के चुपचाप अपनी मेहनत और हौंसलों से पहाड़ की परिभाषा because ही बदल कर रख दी है. ऐसे लोग आज पलायन की पीडा से कराह रहे पहाड़ के लिए उम्मीद की किरण नजर आ रहे हैं. आज ऐसे ही पहाडी के बारें में आपको रूबरू करवाते हैं जिन्होंने पहाड़ में स्वरोजगार का मॉ​डल तैयार करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. लोग उन्हें कीवी मेन के नाम से भी जानते हैं.

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सीमांत जनपद चमोली के कर्णप्रयाग ब्लाक की सिदोली पट्टी में गौचर से 20 किमी की दूरी पर स्थित मुल्या गांव (ग्वाड) निवासी 48 वर्षीय विक्रम सिंह बिष्ट आज लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनें हुये हैं. उनका स्वरोजगार मॉ​डल लोगों को बेहद पसंद आ रहा है, जिस कारण लोग स्वरोजगार के लिए अपने गांव वापस लौट रहें हैं. बहुमुखी प्रतिभा के because धनी विक्रम सिंह बिष्ट का जीवन बेहद संघर्षमय और चुनौतियां से भरा रहा है. उन्होंने कृषि, बागवानी, उद्यानीकरण, सब्जी, फूल उत्पादन से लेकर मत्स्य पालन, विभिन्न प्रजातियों की पौध तैयार करने वाली नर्सरी, हर क्षेत्र में हाथ आजमाया. वे एक बेहतरीन हस्तशिल्पि भी हैं. बेजान लकड़ियों में भी वे कलाकारी से जान फूंक देते हैं. उन्हें जहां-जहां सफलता मिली उसको जारी रखा बाकी असफलता वाले क्षेत्रों को छोड दिया. उन्होंने असफलताओं से कभी भी घबराना और हारना नहीं सीखा. बस अपनी जिद और जुनून की बदौलत अपनी पहचान खुद बनायी.

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बचपन से था कुछ अलग करने का जुनून!

विक्रम सिंह बिष्ट पेशे से न तो कोई इंजीनियर है और न ही कोई वैज्ञानिक और न ही किसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर. वे पहाड़ को बेहद करीब से जानने और समझने वाले पहाडी है. because पहाड़ को समझने की उनकी अपनी अलग परिभाषा है. बंजर होते पहाड़ के गांव में खुशहाली लाने का सपना संजोये विक्रम सिंह बिष्ट पहाड़ के बेहद सामान्य परिवार से हैं, तत्कालीन परिस्थितियों की वजह से वे अपनी पढ़ाई केवल मैट्रिक तक ही जारी रख पाये. लेकिन बचपन से ही उनका सपना था की वो कुछ अलग करके दिखायेंगे. 1992 में उन्होंने उद्योग विभाग से 25 हजार का ऋण लेकर खुद का लघु उद्योग शुरू किया और लकड़ी सहित अन्य कार्य आरम्भ किया.

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इस दौरान वे अपने अपनें पुश्तैनी संतरा, नारंगी और नींबू के छोटे से बगीचे में जाया करते थे. उन्हें पेड़, पौधे बचपन से ही बेहद आकर्षित करते थे. एक दिन उनके मन में विचार आया की संतरा because का पेड़ ही क्यों लगाया जाता है टहनी की कलम से क्यों नहीं संतरे का पेड़ तैयार हो सकता है. उन्होंने लोगों से इस संदर्भ में परिचर्चा की तो सबने उन्हें निराश किया. लेकिन उनकी जिद थी की वे टहनी से संतरे का पेड़ तैयार करेंगे. वे सफल हुये और उनका प्रयोग सफल हुआ. कुछ सालों बाद संतरे के पेड़ में फूल तो आनें लगे लेकिन फल नहीं लगे.

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इस संदर्भ में वे कई लोगों से मिले जानकारी हासिल की और लोगो के सुझावों पर अमल करते हुये कमियों को पूरा किया. आखिरकार वो दिन भी आ गया जब संतरे के पेड़ ने पहली मर्तबा बंपर पैदावार दी. because जिससे उत्साहित होकर उन्होंने वर्ष 2000 में अलंकार नर्सरी तैयार की जिसमें विभिन्न प्रकार के फलदार पौध तैयार करके वितरित की. इस नर्सरी में माल्टा, नींबू, नारंगी, सेब, अखरोट सहित विभिन्न प्रजातियों की पौध तैयार की. नयी सडक निर्माण में उनकी इस नर्सरी को नुकसान हुआ लेकिन अब उन्होंने दूसरी जगह अपनी नर्सरी को तैयार किया है.

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उन्होंने 2002 और 2004 में दो पॉलीहाउस लगाकर सब्जियों का उत्पादन शुरू किया. उन्होंने फूल उत्पादन से लेकर सब्जियों का बडे पैमाने पर उत्पादन किया. राई से लेकर लहसुन, प्याज, टमाटर, because बैंगन, बंद गोबी, फूल गोबी, ब्रोकॉली, अदरक, धनियां का उत्पादन किया और बाजार में विक्रय करके मुनाफा कमाया. यही नहीं उन्होंने हर्बल प्लांट जिरेनियम का भी उत्पादन किया. विक्रम सिंह बिष्ट कहते हैं कि पलायन के कारण पहाड़ खाली हो रहा है लेकिन यदि सुनियोजित तरीके से और दीर्घकालीन सोच लेकर कार्य किया जाय तो पहाड़ की बंजर भूमि में भी सोना उगाया जा सकता है. वे चाहते हैं कि लोग वापस अपनें घर गांव लौटे.

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2005 में कीवी के पेड़ लगाकर किया था अचंभित, आज कीवी मेन के नाम से प्रसिद्ध हैं

2005 तक पहाड़ के लोगों के लिए कीवी नाम अनजान ही था क्योंकि बहुत ही कम लोगों को कीवी फल के बारें में जानकारी थी. विक्रम सिंह बिष्ट उद्यान विभाग की ओर से हिमाचल गये जहां उन्होंने कीवी के फल और पेड को देखा. बाजार में कीवी फल के दाम पूछने पर उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ की ये फल इतना महंगा भी हो सकता है. because वापस लौटने के बाद उन्होंने बडी मुश्किल से कीवी के 10 पेड लगाये. चार साल की मेहनत के बाद 2009 में कीवी के पेड़ो नें फल देना शुरू किया और आज भी वे हर साल लगभग 5-6 कुंतल कीवी की पैदावार देते हैं जिससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी हो जाती है.

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उन्होंने कीवी को स्थानीय बाजार गौचर, कर्णप्रयाग से लेकर देहरादून तक भेजा है. उन्होंने कीवी के 5 पेड को खुद ही कलम के द्वारा तैयार किया हैं जो अगले साल से फल देना शुरू कर देंगे. because बिक्रम सिंह बिष्ट कहते हैं कि शुरू शुरू में जब उन्होंने कीवी के पेड लगाये तो लोगों नें उनको हतोत्साहित किया लेकिन आज वही लोग कीवी मेन कहकर बुलाते हैं तो अच्छा लगता है. वे कहते हैं कि मैंने उस समय कीवी के पेड लगाये जिस समय शायद ही पहाड़ में किसी नें कीवी के पेड देखें हो आज उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों में लोग कीवी का बडे पैमाने पर उत्पादन कर रहें हैं.

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ट्राउट मत्स्य पालन!

विक्रम सिंह बिष्ट नें मत्स्य पालन भी शुरू किया है. जिसके लिये उन्होंने पांच, छ टैंक बनायें हैं और उनमें ट्राउट मत्स्य पालन शुरू कर दिया है. उन्हें उम्मीद है की मत्स्य पालन के because जरिए स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा और लोगों को रोजगार. कीवी मेन विक्रम सिंह बिष्ट से स्वरोजगार को लेकर लंबी परिचर्चा हुई. वे कहते हैं कि सबसे पहले लोगों को खुद पर भरोसा करना होगा तभी जाकर हम सफल हो पायेंगे. सीमित संसाधनों के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आज वे अपने कार्यों से संतुष्ट हैं. उन्होंने निजी प्रयासों से अपने गांव के पास एक शिवालय का भी निर्माण करवाया है.

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वे कहते हैं कि आने वाले समय में वे हर्बल खेती, नगदी फसलों की खेती करके लोगों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे की कैसे बंजर भूमि में भी सोना उगाया जा सकता है. अभी वे इस दिशा में प्रयासरत हैं. आजकल बेहद प्रतिस्पर्धा का दौर है इसलिए हमें मिश्रित  स्वरोजगार मॉ​डल की ओर मुडना होगा. खासतौर पर युवाओं को बागवानी, because उद्यानीकरण और सब्जी उत्पादन के जरिए रोजगार सृजन की दिशा में आगे आना होगा. यदि अपनी माटी थाती पर भरोसा किया जाय तो ये हमें रोजगार भी देगा और रोजगार के नयें अवसरों का सृजन भी होगा. वे कहते हैं कि उन्हें उन्हें उद्योग और उद्यान विभाग का हर समय सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहा है.

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वास्तव में देखा जाए तो विक्रम सिंह बिष्ट जी जैसे सकारात्मक व्यक्तित्व से हमें सीख लेने की आवश्यकता है. जिन्होंने सीमित संसाधनों के बाद भी अपनें स्वरोजगार मॉ​डल को रोजगार का because साधन बनाया. बड़े शहरों का रूख करने की जगह अपनी माटी थाती और स्वयं पर भरोसा किया. खाली होते पहाडों के लिए विक्रम सिंह बिष्ट जी का स्वरोजगार मॉ​डल किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं है. जरुरत है हमें ऐसे लोगों से सीख लेने की… विक्रम सिंह बिष्ट जी को उनके पुरुषार्थ के लिए हजारों सैल्यूट…

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