राज्य मिलने के बीस साल बाद भी उपेक्षित है जालली सुरेग्वेल क्षेत्र

  • डॉ. मोहन चन्द तिवारी

अभी हाल ही में 22, जुलाई, 2020 को जालली क्षेत्र के सक्रिय कार्यकर्त्ता और समाजसेवी भैरब सती ने अमरनाथ, ग्राम प्रधान जालली; मनोज रावत, ग्राम प्रधान ईड़ा; सरपंच दीन दयाल काण्डपाल, मोहन काण्डपाल, नन्दन सिंह, गोपाल दत, पानदेव व महेश चन्द्र जोशी आदि क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के एक शिष्टमंडल की अगुवाई करते हुए जालली क्षेत्र के विकास और वहां उप तहसील के कार्यालय की स्थापना की मांग को लेकर द्वाराहाट तहसील के एसडीएम श्री आर के पाण्डेय से मुलाकात की और उन्हें ज्ञापन भी सौंपा है. जालली क्षेत्रवासियों की एक मुख्य मांग है कि वहां एक साधन संपन्न कार्यालय खोला जाए और तुरंत वहां डाटा आपरेटर की नियुक्ति की जाए, ताकि इस कोरोना काल की चरमराई हुई राज्य परिवहन व्यवस्था के दौर में स्थानीय लोगों को अपने खतोंनी की नकल प्राप्त करने और परिवार रजिस्टर, आय प्रमाण पत्र,स्थायी निवास पत्र, जातिपत्र आदि दस्तावेजों की प्रामाणिक प्रति के लिए द्वाराहाट नहीं जाना पड़े.ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि उप तहसील जालली में कार्यालय की सुविधा नहीं होने से यहां की जनता को द्वाराहाट तहसील में आने के लिए एक हजार रुपयों की गाड़ी बुक कराकर आना पड़ता है और सौ-डेढ़ सौ रुपए सीएससी ऑफिस वालों को अलग से देने पड़ते हैं.

एक बहुत बड़ी आबादी वाले इस जालली क्षेत्र में एक साधन संपन्न कार्यालय से युक्त उप तहसील की मांग लंबे अरसे से चली आ रही है.इसके लिए कई बार जालली में आंदोलन भी हुए हैं किंतु जालली क्षेत्र प्रशासकीय दृष्टि से सदैव उपेक्षित ही रहा है.हालांकि यहां एक स्टेट बैंक की शाखा और पोस्ट ऑफिस की सुविधा बहुत पहले से मिली हुई है,जब उत्तराखंड राज्य का अस्तित्व भी नहीं था. किन्तु उसके बाद यहां विकास कार्यों की सदा ही अनदेखी हुई है. बीस तीस वर्ष पहले की बात करें तो जालली बस अड्डे के मेन बाजार में जहां एक सरकारी डिस्पेंसरी हुआ करती थी,उसमें एक डॉक्टर मरीजों को देखा करता था मगर दवाई की सुविधा उसके पास तब नहीं होती थी. इसलिए लोगों को कैमिस्ट की दुकान से दवा खरीदनी पड़ती थी. मगर उत्तराखंड राज्य जैसे ही बना,सोचा था जालली में सरकारी डिस्पेंसरी में लोगों को डॉक्टर की सुविधा के साथ साथ सरकार की ओर से दवाइयां भी मिलने लगेंगी मगर हुआ बिल्कुल उल्टा जहां पहले सरकारी डिस्पेंसरी थी वहां अब सरकारी दारु की दुकान चल रही है. यह भी आश्चर्य की बात है कि यहां जालली क्षेत्र में द्वाराहाट के गौचर अस्पताल की तरह का एक अस्पताल तो क्या आज एक डिस्पेंसरी तक नहीं है.रानीखेत से लेकर मासी तक लगभग 60 किमी. इस ब्रिटिश कालीन ऐतिहासिक राजमार्ग में न कोई अच्छा स्कूल है, न कालेज, न कोई प्रशिक्षण संस्थान और न कोई अस्पताल है. दौला,पाली, जोयूं, सुरेग्वेल के लोगों को छोटे मोटे ईलाज के लिए भी रानीखेत जाना पड़ता है.सुगर के मरीज हों या टाइफाइड बुखार के रोगी ब्लड टेस्ट कराने के लिए भी उन्हें रानीखेत की प्राइवेट लैब और अस्पताल में जाना पड़ता है.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पिछले बीस सालों में आज तक इस जालली के इलाके में न तो कोई कालेज खुला और न ही यहां स्वास्थ्य सुविधा के लिए कोई अस्पताल ही स्थापित किया गया. किसी भी उत्तराखंड के नेता ने इस क्षेत्र के विकास के लिए न तो कोई आवाज उठाई और न ही कोई आंदोलन किया.

इसलिए भैरब सती के द्वारा जालली क्षेत्र में विकास सुविधाओं का जो मुद्दा उठाया गया है वह इस क्षेत्र का पिछले कई वर्षों से एक ज्वलन्त मुद्दा रहा है. द्वाराहाट क्षेत्र के जालली, इड़ा, बारखम,जोयूं, सुरेग्वेल,दौला, पाली जैसे ऐतिहासिक स्थान जो मासी से रानीखेत की इस मोटर मार्ग से जुड़े हैं आज भी प्रशासनिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से उपेक्षित पड़े हैं.यही कारण है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद  इस क्षेत्र के गांवों से पलायन सबसे ज्यादा हुआ है जिस पार्टी के भी नेता यहां से जीते उन्होंने इस क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया.पिछले बीस वर्षों में जो भी संसद सदस्य, विधायक,जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान इस क्षेत्र से चुन कर आता है वह अपने इलाके के इर्द गिर्द के विकास की योजनाएं बनाता है किन्तु रानीखेत जालली मासी रोड़ के आस पास की आबादी वाला क्षेत्र आज भी मौलिक नागरिक सुविधाओं से सदा वंचित रहा है. हालांकि पिछले सालों में यहां सड़कों का चौड़ीकरण जरूर हुआ है किन्तु पीडब्ल्यूडी विभाग ने जोयूं ग्राम के सड़क से जुड़े पहाड़ों के जंगल को इतनी बेरहमी से तोड़ा है कि लोगों के पुश्तैनी मार्गों तक को ध्वस्त कर दिया और आज तक उनकी भरपाई नहीं की. सरकार ने इस क्षेत्र में भी विकास की ऐसी गंगा बहाई कि घर घर दारु पहुंचा दी किन्तु पानी और दवा पहुंचाने का आज तक कोई इंतजाम नहीं किया.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पिछले बीस सालों में आज तक इस जालली के इलाके में न तो कोई कालेज खुला और न ही यहां स्वास्थ्य सुविधा के लिए कोई अस्पताल ही स्थापित किया गया. किसी भी उत्तराखंड के नेता ने इस क्षेत्र के विकास के लिए न तो कोई आवाज उठाई और न ही कोई आंदोलन किया. क्षेत्रवाद की संकीर्ण राजनीति करने वाले नेताओं द्वारा जालली क्षेत्र के विकास को अवरुद्ध करने वाले काम जरूर किए गए हैं,जैसे चालीस पचास साल पुराने रानीखेत जालली मासी रोडवेज रुट की जो बस वाया हल्द्वानी आती थी,उस बसरूट को बदल कर वाया रामनगर कर दिया गया.

रानीखेत मासी रोड़ वह पहली ऐतिहासिक रोड़ है,जिसे चीनी आक्रमण के बाद पांच छह दशक पहले शुरू किया गया था. इसी रोड़ पर दिल्ली की पर्वतीय जनता की पहल पर  सबसे पहले कश्मीरी गेट से दिल्ली मासी रोडवेज रूट वाली बस का उद्घाटन हुआ था,जो वाया काठगोदाम होते हुए रानीखेत, बारखम जालली, सुरेग्वेल, पाली और मासी तक जाती थी.  

किन्तु हमें इस द्वाराहाट क्षेत्र के विकास पुरुष  और पूर्व विधायक स्व.विपिन त्रिपाठी जी का विशेष आभारी भी होना चाहिए कि उन्होंने जालली से वाया विभांडेश्वर, द्वाराहाट तक जोड़ने वाली रोड़ को बहुत संघर्ष करके बनवाया था,जिसकी वजह से अब आधे घन्टे में चालीस पचास रुपये किराया देकर जालली क्षेत्र के लोग द्वाराहाट पहुंच सकते हैं. नहीं तो द्वाराहाट से जालली आने के लिए वाया रानीखेत आना पड़ता था,जिसमें पूरा दिन लग जाता था.

दरअसल, रानीखेत मासी रोड़ वह पहली ऐतिहासिक रोड़ है,जिसे चीनी आक्रमण के बाद पांच छह दशक पहले शुरू किया गया था. इसी रोड़ पर दिल्ली की पर्वतीय जनता की पहल पर  सबसे पहले कश्मीरी गेट से दिल्ली मासी रोडवेज रूट वाली बस का उद्घाटन हुआ था,जो वाया काठगोदाम होते हुए रानीखेत, बारखम जालली, सुरेग्वेल, पाली और मासी तक जाती थी. दिल्ली के प्रसिद्ध समाज सेवी और साहित्यकार डा. नारायण दत्त पालीवाल और दिल्ली के अन्य स्थानीय नेताओं का इस रोडवेज की रुट को शुरू करवाने में बहुत बड़ा योगदान था. मुझे आज भी याद है कि इस रोडवेज की बस के दो ड्राइवर हुआ करते थे गोविंद सिंह और लाल सिंह.लाल सिंह बहुत रंगीले स्वभाव के ड्राइवर थे जहां हरियाली और सुंदर प्रकृति की छटा देखी तो वे सुरीले पहाड़ी गीत गाने लगते थे.दूर से यात्रियों को बस पकड़ने के लिए आता देख,गाड़ी रोक लेते थे.जबकि गोविंद सिंह गुसैल और रूखे स्वभाव के ड्राइवर थे.जिस दिन गोविंद सिंह की बारी होती तो मासी से दिल्ली आने वाली बस हमारे गांव जोयूं में सुबह ठीक साढ़े छह बजे पहुंच जाती थी. मगर लाल सिंह गाड़ी मस्ती से गाना गाते हुए चलाते थे इसलिए दस पन्द्रह मिनट लेट पहुंचती थी.इसलिए गोविंद सिंह की बारी वाले दिन जब हमें दिल्ली आना होता था तो हम सड़क पर सुबह छह बजे ही पहुंच जाया करते थे. पर चिंता की बात है कि आज इस मासी से दिल्ली तक जाने वाली बस का रूट वाया हल्द्वानी काठगोदाम से बदल कर वाया रामनगर कर दिया गया है और इड़ा, बारखम, जालली, सुरेग्वेल, दौला,पाली क्षेत्र के लोगों को इस रोडवेज की सुविधा से वंचित कर दिया गया हैं.किस नेता के कहने पर जालली क्षेत्र के लोगों के साथ यह अन्याय हुआ आज तक पता नहीं चला.

इसी पृष्ठभूमि में जालली क्षेत्र के जागरूक कार्यकर्त्ता और समाजसेवी भैरब सती ने इस क्षेत्र के विकास की जो मुहिम छेड़ी है,वह सराहनीय है.परन्तु इस मुहिम की सफलता के लिए पार्श्ववर्ती ग्राम चांदपुर,जोयूं, सुरे, मुनिया चौरा,खरख, दौला पाली, निरकोट, पटाश तकुल्टी,मयोली,बावन,इड़ा बारखम तिपोला आदि सभी ग्राम प्रधानों और वहां के सक्रिय कार्यकर्ताओं और जनता का भी सहयोग मिलना बहुत जरूरी है,ताकि सदियों से उपेक्षित शैव मंदिरों और न्याय देवता ग्वेलज्यू के इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पाली पछाऊँ क्षेत्र का समुचित विकास और जीर्णोद्धार हो सके, यहां परिवहन,व्यवस्था, जल व्यवस्था,शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरी सुविधाएं लोगों को मिल सकें,जिनसे वे आज उत्तराखंड राज्य मिलने के बीस साल बाद भी वंचित हैं.

मैं पिछले कई वर्षों से जोयूं सुरेग्वेल और जालली क्षेत्र के सांस्कृतिक महत्त्व और उसकी सामाजिक समस्याओं के बारे में सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में लिखता आया हूं.दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार जगत रौतेला,अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार रमेश त्रिपाठी और दैनिक भास्कर,के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चन्द्र तिवारी का मैं विशेष आभारी हूं कि जालली क्षेत्र और जोयूं , सुरेग्वेल से सम्बंधित जन समस्याओं को उजागर करने में मुझे इन पत्रकार बन्धुओं का विशेष सहयोग मिला है.आज हमें उत्तराखंड में ऐसे सजग कार्यकर्ताओं, सामाजिक सरोकारों से जुड़े नेताओं,पत्रकारों और समाज सेवियों की बहुत जरूरत है,जो राजनीति से ऊपर उठकर हजारों वर्षों से राजनैतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से शोषित पहाड़ की जनता की मानवीय समस्याओं की आवाज बुलंद करते हुए  मातृभूमि के प्रति अपना दायित्व निभा सकें.भैरब सती एक जागरूक जन प्रतिनिधि की हैसियत से पहले भी जालली क्षेत्र की जल समस्या को प्रशासन के समक्ष रखते आए हैं.अब उन्होंने उप तहसील और जालली क्षेत्र के विकास हेतु आवाज उठाई है.मैं इस कार्य के लिए उन्हें साधुवाद देता हूं और आशा करता हूं कि वे जालली क्षेत्र की आवाज बन कर ही नहीं रह जाएंगे बल्कि रानीखेत से लेकर दौला पाली, मासी तक उपेक्षित इस सम्पूर्ण पाली पछाऊँ क्षेत्र के लोगों की भी आवाज बन कर उभरेंगे.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में विद्या रत्न सम्मानऔर 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा आचार्यरत्न देशभूषण सम्मानसे अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्रपत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)

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1 Comment

  • Bhairab Datt sati

    तिवारी जी के अथक प्रयास को सकारात्मक दिशा निर्देश को पूर्ण करने में मदद करूंगा।

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