रिसाले- मसालों के…

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मंजू दिल से… भाग-2

  • मंजू काला

जब भी मैं पहाडों पर भ्रमण करती हूँ, तो अक्सर महिलाओं को सिल बट्टे पर मसाले रगड़ते हुए गीत गाते देखकर एक कथानक की अविस्मरणीय पात्र को याद करती हूँ, जो because “मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज” की नायिका है और वह मसालों की जादुई शक्तियों को जानती है. वह अपनी दुकान पर  बैठकर कुछ  अजीबो-गरीब  धुन  फुस-फुसाते हुए आने वाले ग्राहकों की समस्याओं को दूर करने हेतु सही मसाला चुनकर अपनी प्रार्थना के बल पर उसमें छिपी शक्तियों को बाहर लाती है.

फंतासी

कथा… फंतासी के माध्यम से अपनी बात कहता है, मगर मसालों में छिपी शक्तियां कोई फंतासी नहीं. आज हम मसालों को भोजन का अनिवार्य अंग भर मानते हैं. आयुर्वेद के जानकार because इनमें मौजूद औषधीय गुणों के बारे में बताएंगे. मगर एक जमाना था जब इन्हीं मसालों ने इतिहास की धारा बदली थी, साम्राज्य बनाए और तोड़े थे, भूगोल को नया आकार दिया था.

प्यारे

हमारे… प्यारे देश में तो because आदि काल से ही स्थानीय तौर पर उगने वाले मसालों का प्रयोग पाक कला तथा चिकित्सा में होता आया था, हर घर की रसोई में मसालों की खूशबू भाप के रूप में हांडियों से निकल कर गृहस्थों की भूख को बढा देती थी, लेकिन वो कहते हैं ना, घर का जोगी जोगड़ा…, सो इसी तर्ज पर इनकी असल ताकत से because हमारे गृहस्थी  और  देश अनजान था. यही हाल दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य मसाला उत्पादक देशों का था. मसालों ने अपना जलवा दिखाया तब, जब इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली.

फंतासी

… मिस्र के प्रसिद्ध…पिरामिड बनाने वाले मजदूरों के भोजन में खास मसाले शामिल किए जाते थे, जिससे उन्हें ताकत मिले. पश्चिम एशिया में तो मान्यता थी कि देवताओं ने because सृष्टि की रचना करने से पूर्व वाली रात… तिल से बनी मदिरा का सेवन किया था! रोम और यूनान के साम्राज्य स्थापित होने पर वहाँ से भी भारतीय मसालों की माँग आने लगी.

फंतासी

प्राचीन काल में मेसोपोटामिया, मिस्र आदि देशों से व्यापारी जिन बेशकीमती वस्तुओं का सौदा करने भारत आते थे, उनमें रेशम, ढाके की मलमल आदि के अलावा मसाले भी शामिल थे. इनका उपयोग खाने के अलावा सौंदर्य प्रसाधन के तौर पर तथा शवों को सुरक्षित रखने के because लिए भी किया जाता था. कहा तो यह भी जाता है कि मिस्र के प्रसिद्ध…पिरामिड बनाने वाले मजदूरों के भोजन में खास मसाले शामिल किए जाते थे, जिससे उन्हें ताकत मिले. पश्चिम एशिया में तो मान्यता थी कि देवताओं ने सृष्टि की रचना करने से पूर्व वाली रात… तिल से बनी मदिरा का सेवन किया था! रोम और यूनान के साम्राज्य स्थापित होने पर वहाँ से भी भारतीय मसालों की माँग आने लगी.

फंतासी

लंबे समय तक भारतीय मसालों के व्यापार because पर अरबों का वर्चस्व रहा. रोमन साम्राज्य को जब यह निर्भरता रास नहीं आई, तो उन्होंने अरब पर कब्जा करने के लिए युद्ध कर डाला और मुँह की खाई.

फंतासी

मध्ययुगीन योरप में… मसाले कीमत के मामले में सोने और हीरे-जवाहरात को टक्कर देते थे. कहते हैं कि तब एक पौंड अदरक एक भेड़ के बराबर और एक पौंड जावित्री तीन भेड़ों या because आधी गाय के बराबर मानी जाती थी. एक बोरी काली मिर्च तो एक इंसान के जीवन के बराबर कीमत रखती थी! लौंग, दालचीनी, जायफल आदि के प्रति भी अरब व योरपीय देशों में गजब की दीवानगी थी.

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फंतासी

एक समय ऐसा भी था जब यूरोप में एक पौंड जायफल की कीमत सात मोटे-ताजे बैलों के बराबर थी! जाहिर-सी बात है कि इतने महँगे मसाले कोई आम आदमी की रसोई में तो पहुँच because नहीं सकते थे. ये पहुँचते थे रईसों के यहाँ, जहाँ ये जितना खाद्य सामग्री के रूप में प्रयुक्त होते थे, उतना ही स्टेटस सिम्बल के तौर पर भी. धनी वर्ग इन मसालों के बल पर घर आए मेहमानों पर रौब झाड़ता था. ये दुर्लभ मसाले सुदूर भारत में कैसे पाए जाते हैं और इन्हें पाने के लिए क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं, इसे लेकर तरह-तरह की बेसिर-पैर की कहानियाँ गढ़ी जाती थीं.

खैर.. स्टेटस दिखाना और रौब झाड़ना एक बात थी मगर इन मसालों की लगातार आसमान बेधती कीमतों से रूरोप का श्रेष्ठी वर्ग भी परेशान था. राजे-महाराजे भी इस महँगाई से पीड़ित थे. चौदहवीं-पंद्रहवीं सदी आते-आते इन्होंने तय किया कि किसी भी तरह भारत पहुँचने का सीधा रास्ता तलाशा जाए और अरब बिचौलियों से मुक्ति पाई जाए. because तब तक नौकायन की तकनीक भी काफी विकसित हो चुकी थी. क्रिस्टोफर कोलंबस, वास्को द गामा, फर्डिनेंड मैगलेन जैसे जाँबाज जहाज लेकर निकल पड़े भारत व अन्य मसाला उत्पादक देशों तक पहुँचने का मार्ग तलाशने. कोलंबस महाशय ने तो रास्ता भटकने का सार्वकालिक रेकॉर्ड बना डाला और जा पहुँचे अमेरिका!

फंतासी

कोलंबस  को भारतीय मसाले तो हाथ न लगे. because अलबत्ता उत्तर और दक्षिण अमेरिका के रूप में दो-दो नए महाद्वीपों से दुनिया को जरूर रू-ब-रू  करा डाला! यदि मसालों का लालच न होता, तो न जाने ये महाद्वीप और कितनी सदियों तक दुनिया की नजरों से छिपे रहते!

फंतासी

कहा जाता है कि लौटने से पहले वास्को ने कालिकट के शासक से काली मिर्च का एक पौधा अपने साथ पुर्तगाल ले जाने की अनुमति माँगी, ताकि उसे वहाँ उगाया जा सके. सारे because दरबारी इस गुस्ताखी पर आग-बबूला हो गए लेकिन शासक ने बड़े ठंडे दिमाग से जवाब दिया, “पौधा चाहो तो ले जाओ लेकिन तुम हमारी मानसूनी बारीश कभी नहीं ले जा सकोगे.”

फंतासी

लेकिन, वास्को द गामा ने गलती नहीं की और वह. भारत आ ही पहुँचा. वह पुर्तगाल से चार जहाजों को लेकर अफ्रीका का चक्कर लगाता हुआ भारत आया और इसी रास्ते से लौटा. इस यात्रा में कुल दो साल लगे और कुल 24,000 मील का सफर तय किया गया. वापसी तक चार because में से दो ही जहाज साबुत बचे थे. इस यात्रा पर जितना खर्चा हुआ, वास्को द्वारा भारत से लाए गए मसालों की कीमत उससे साठ गुना बैठी! यानी हर लिहाज से फायदे का सौदा. कहा जाता है कि लौटने से पहले वास्को ने because कालिकट के शासक से काली मिर्च का एक पौधा अपने साथ पुर्तगाल ले जाने की अनुमति माँगी, ताकि उसे वहाँ उगाया जा सके. सारे दरबारी इस गुस्ताखी पर आग-बबूला हो गए लेकिन शासक ने बड़े ठंडे दिमाग से जवाब दिया, ‘पौधा चाहो तो ले जाओ लेकिन तुम हमारी मानसूनी बारीश कभी नहीं ले जा सकोगे.”

फंतासी

तब  मसाला व्यापार पर अरबों के एकाधिकार के दिन  लद गए. आने वाली तीन सदियों में विभिन्न योरपीय देशों में एशियाई मसालों के भंडारों तक पहुँचने की होड़ लग गई थी पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, हॉलैंड आदि ने इस दौरान मसालों को लेकर आपस में अनेक युद्ध लड़े. इंग्लैंड और हॉलैंड के बीच इंडोनेशिया के जायफल को लेकर because भीषण युद्ध हुए. यहाँ “रन”  नामक एक छोटा-सा द्वीप जायफल के वृक्षों से भरा हुआ था. सत्रहवीं सदी में इस पर दोनों की नजरें लगी हुई थीं. अंतत: इंग्लैंड और हॉलैंड ने एक अनोखा समझौता किया. इसके तहत इंग्लैंड ने रन because हॉलैंड के हवाले कर दिया और बदले में हॉलैंड ने अमेरिका के पूर्वी तट पर स्थित द्वीप इंग्लैंड के हवाले किया, जो आज न्यूयॉर्क का प्रतिष्ठित इलाका मैनहेटन है. कुल मिलाकर ऐसे युद्धों का परिणाम रहा भारत व अन्य कई देशों का उपनिवेशीकरण..!

फंतासी

अब ये बातें बड़ी अटपटी लगती हैं कि because बड़े-बड़े शक्तिशाली देश मसालों को लेकर आपस में लड़ें, कि आर्थिक और विदेश नीतियाँ मसालों के इर्द-गिर्द तय की जाएँ. हमारे जीवन में मसालों का महत्व अब भी अपनी जगह कायम है, मसालों का व्यापार अब भी होता है लेकिन because दुनिया बदलने की मसालों की क्षमता अब अतीत का हिस्सा बन चुकी है. इस क्षेत्र में वे अपनी भूमिका निभा चुके हैं. आज की भाषा में कहें तो अपनी ‘एक्सपायरी डेट’ पार कर चुके हैं.

फंतासी

(मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्‍पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्‍यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है.)

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