संस्मरण

हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा

हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा

डॉ विजया सती दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से हाल में ही सेवानिवृत्त हुई हैं। इससे पहले आप विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दीऐलते विश्वविद्यालयबुदापैश्तहंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दीहान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़सिओलदक्षिण कोरिया में कार्यरत रहीं। साथ ही महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएंपुस्तक समीक्षा, संस्मरणआलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं। विजया सती जी अब ‘हिमाँतर’ के लिए ‘देश-परदेश’ नाम से कॉलम लिखने जा रही हैं। इस कॉलम के जरिए आप घर बैठे परदेश की यात्रा का अनुभव करेंगे-


बुदापैश्त डायरी : 5

  • डॉ. विजया सती

देश के बाहर हिन्दी – यह सोचकर मन उल्लास से भर जाता है. हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा – पंक्ति का सही अर्थ समझ आता है. सुनने में अच्छा लगता है. और जब कहीं परदेश में अपने देश से अचानक मुलाक़ात हो जाए तो ? वो मुहावरा है ना इसके लिए…. दिल बाग-बाग हो गया !

बिल्कुल ऐसा ही हुआ …ऐलते विश्वविद्यालय – बुदापैश्त के भारत अध्ययन विभाग में भूतल पर पहले कक्ष में प्रवेश करते ही लगा कि जैसे अपने ही देश में आ गए – दरवाजे पर कलात्मक अल्पना और बंदनवार, दीवारों पर हिन्दी तिथि सहित कैलेण्डर, कृष्ण-यशोदा की छवि समेटे बहुरंगी चित्र और पार्थसारथि के साथ पार्थ भी विद्यमान. कक्ष की दीवार में लकड़ी का सुंदर मंदिर आसीन है, उसके भीतर हैं मूर्तियां, अगरबत्ती, माला, दीपक, शंख और घंटी.

कक्ष में मंदिर

सुन्दर हस्तलेख में यह पंक्तियां कक्ष की दीवार पर झूल रही है …
कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी !

भारत की विविधता को दर्शाने का इससे बेहतर तरीका और क्या होगा?

भूतल से पहली मंजिल की और बढ़ें तो विभाग की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर राजस्थान-केरल के लोक जीवन को साकार करते ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ के पोस्टर स्वागत करते मिलेंगे.

भूतल और प्रथम तल पर विभाग के विभिन्न कक्षों में अठारह हजार हिन्दी-संस्कृत ग्रन्थ सुव्यवस्थित रूप से रखे हैं. हिन्दी-शिक्षण, हिन्दी का आलोचनात्मक और नवीनतम सर्जनात्मक साहित्य यहां मौजूद है. कैसेट्स और सीडी पर हिन्दी से संबंधित सामग्री के साथ-साथ कुछ विशिष्ट हिन्दी फिल्में भी संजोई गई हैं. विभाग के विद्यार्थी भारतीय भोजन और फिल्मों के अतिरिक्त हमारे संगीत और नृत्य में भी रूचि रखते हैं. भारतीय फ़िल्में भी इन्हें प्रिय हैं. दूतावास का सांस्कृतिक केंद्र यदि लोकप्रिय हिन्दी फिल्म जब वी मेट और हम दिल दे चुके सनम दिखाता तो विद्यार्थियों का कला फिल्म क्लब सत्यजित रे की देवी, पथेर पांचाली और शतरंज के खिलाड़ी जैसी फिल्म न केवल दिखाता बल्कि उनपर विमर्श भी करता.

कुछ हिन्दी पुस्तकों के हंगेरियन अनुवाद वहां हैं – प्रेमचंद का उपन्यास निर्मला और उनकी कुछ कहानियां, हरिसंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएं तथा उदय प्रकाश की कुछ कहानियां.

उच्च स्तर पर विद्यार्थियों ने मन्नू भंडारी और मोहन राकेश की कहानियों पर शोध ग्रन्थ लिखे.

छात्र: लोरांद और पीतर

फेसबुक पर नए छात्र की यह पसंद में दर्ज हुई – पंडित रवि शंकर और जॉर्ज हैरिसन की संगीत रचना – प्रभु जी कृपा करो, मन में आन बसो !

विभाग से अब तक पचास से अधिक भारतविद अध्ययन कर चुके हैं – इनमें से कई अब देश और विदेश में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं – अध्यापन, सांस्कृतिक केन्द्रों तथा संग्रहालयों में निदेशक, निजी और आधिकारिक रूप से हिन्दी अनुवादक.

हर दूसरा छात्र कुछ समय के लिए भारत जरूर हो आना चाहता है, ताकि जो यहाँ पढ़ा, जैसा यहाँ जाना उसका साक्षात्कार कर सके. हिन्दी और भारत से जुड़े विशिष्ट अवसरों जैसे हिन्दी दिवस, होली, दिवाली पर विद्यार्थी भारतीय परिधान में आने की कोशिश करते हैं.

हिन्दी विभाग

रोज़गार के अवसर कम हैं, फिर भी इनकी लगन और अभिरुचि देख कर प्रसन्नता होती है.

लेकिन हमारे देश में हिन्दी के प्रति क्या रवैया है? विदेश में हिन्दी सीख कर भारत पहुंचने वाले छात्र क्या उस छवि की झलक भी पाते हैं जो पहले-पहल हिन्दी पढ़ते हुए उनके मन में आकार लेती है?

हिन्दी का परचम लेकर संयुक्त राष्ट्र पहुंचें, इससे पहले यह आत्मान्वेष्ण जरूरी नहीं?

(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज की सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर (हिन्दी) हैं। साथ ही विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी – ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दी – हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया में कार्यरत रही हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं।)

Share this:
About Author

Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *