साहित्‍य-संस्कृति

बंठ्या माने आपड़ गां, निपणु दूध साजी छां…

बंठ्या माने आपड़ गां, निपणु दूध साजी छां…

साहित्‍य-संस्कृति
राजस्थान में राष्ट्रीय बाल कविगोष्ठी में रवांल्टी बाल कविता का हुआ पाठ महावीर रवांल्टा को मिला श्यामसुंदर नागला स्मृति राष्ट्रीय बालवाटिका सृजन सम्मान-2025 हिमांतर ब्यूरो शिक्षा, साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्कार की मासिक पत्रिका 'बालवाटिका', राजस्थान साहित्य अकादमी और विनायक विद्यापीठ,भूणास (भीलवाड़ा) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 26 वीं राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह में महावीर रवांल्टा को बाल साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय अवदान के लिए श्यामसुन्दर नागला स्मृति राष्ट्रीय बालवाटिका सृजन सम्मान-2025 से सम्मानित किया गया जिसमें समारोह के संयोजक एवं 'बालवाटिका' के संपादक डॉ भैंरूलाल गर्ग, 'बालप्रहरी'  के संपादक उदय किरौला, डॉ श्याम सुन्दर भट्ट, पूर्व अध्यक्ष नगर विकास न्यास लक्ष्मी नारायण डाड, प्रधानमंत्री साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा श्याम प्रकाश देवपुरा, राजेन्द्र...
हिंदी पखवाड़ा 2025: उत्तराखंड की पत्रकारिता के तीन संपादक

हिंदी पखवाड़ा 2025: उत्तराखंड की पत्रकारिता के तीन संपादक

साहित्‍य-संस्कृति
  हिमांशु जोशी हिंदी पखवाड़ा केवल भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि उन लोगों को याद करने का समय भी है जिन्होंने हिंदी को समाज की सशक्त आवाज़ बनाया. उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य ने भी हिंदी पत्रकारिता को ऐसे तीन संपादक दिए जिनका काम राष्ट्रीय स्तर तक सम्मानित हुआ. राजीव लोचन साह ने नैनीताल समाचार के माध्यम से हिंदी को आंदोलनों और लोकसंस्कृति से जोड़ा. बद्रीदत्त कसनियाल ने अपनी ज़मीनी रिपोर्टिंग से पहाड़ के सवालों को हिंदी पत्रकारिता की मुख्यधारा में पहुँचाया. नवीन जोशी ने भले ही कर्मभूमि बाहर बनाई हो, लेकिन उनकी रचनाएं और संपादन उत्तराखंड की संवेदनाओं से जुड़कर हिंदी को नया विस्तार देते रहे. इन तीनों ने अपने-अपने तरीके से हिंदी पत्रकारिता को समृद्ध किया और उसे व्यवसाय नहीं बल्कि सामाजिक दायित्व साबित किया. राजीव लोचन साह: आंदोलन और पत्रकारिता का कॉकटेल 'नैनीताल समाचार' के संपादक...
हिंदी भाषा के लिए कुछ मत करो, बस गर्व करो

हिंदी भाषा के लिए कुछ मत करो, बस गर्व करो

साहित्‍य-संस्कृति
  हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष डॉ. प्रकाश उप्रेती हिंदी की दुनिया का लगातार विस्तार हो रहा है. इस दुनिया के साथ हिंदी के बाजार का भी विस्तार हो रहा है. इसमें 'हिंदी भाषा' का कितना विस्तार हो रहा है यह संदेहास्पद है! यह संदेह तब और गहरा हो जाता है जब हम देखते हैं कि हिंदी पट्टी के सबसे बड़े राज्य और सबसे अधिक 'हिंदी भाषा की खपत' वाले राज्य की बोर्ड परीक्षा में वर्ष 2019 में 10 लाख बच्चे और 2020 में 8 लाख बच्चे हिंदी में फेल हो जाते हैं. फिर भी हमें बताया जाता है कि हिंदी की इस स्थिति पर विचार करने की बजाय हिंदी पर गर्व करना होता है. “14 सितंबर को हिंदी का श्राद्ध होता है और हम जैसे  हिंदी के पंडितों का यही दिन होता जब हम सुबह से लेकर शाम तक बुक रहते हैं” हिंदी का व्यक्ति, हिंदी का अखबार, हिंदी के विज्ञापन, हिंदी के नेता, हिंदी के शिक्षक सभी हिंदी पर गर्व करने को कहते हैं क्य...
भाषा का स्वराज

भाषा का स्वराज

साहित्‍य-संस्कृति
  हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भाषा हमारी अभिव्यक्ति का न केवल सबसे समर्थ माध्यम है बल्कि संस्कृति के निर्माण, संरक्षण, संचार और अगली पीढ़ी तक उसका हस्तांतरण भी बहुत हद तक उसी पर टिका होता है, भाषा संस्कृति की वासस्थली जो ठहरी. ज्ञान के साथ भी भाषा का रिश्ता गहन और व्यापक है क्योंकि भाषा में ही ज्ञान संजोया जाता है. भाषा की बदौलत मनुष्य अपने देश-काल की सीमाओं से परे जा कर नया सृजन भी कर पाता है. वस्तुत: भाषा मनुष्य की एक विलक्षण रचना है, एक ऐसी कृति जो नश्वर मनुष्य के आविष्कार और अभ्यास पर टिकी हो कर भी अत्यंत शक्तिशाली है . दुनिया क्या है और उस दुनिया में हम क्या कुछ कर सकते हैं यह सब बहुत हद तक भाषा की ही देन है. भाषा के लेंस से हम अपनी दुनिया को देखते-समझते हैं. उसी से वस्तुओं को पहचानते हैं, पारस्परिक संवाद करते हैं, प्रार्थना करते हैं और प्यार-मुहब्ब...
महावीर रवांल्टा होंगे ‘श्यामसुंदर नागला स्मृति बालवाटिका बाल साहित्य सम्मान-2025’ से सम्मानित

महावीर रवांल्टा होंगे ‘श्यामसुंदर नागला स्मृति बालवाटिका बाल साहित्य सम्मान-2025’ से सम्मानित

साहित्‍य-संस्कृति
पुरोला/भीलवाड़ा. यमुना घाटी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा को ‘श्यामसुंदर नागला स्मृति बालवाटिका बाल साहित्य सम्मान-2025’ से अलंकृत किया जाएगा. यह सम्मान उन्हें ‘बालवाटिका’ (मासिक) पत्रिका की ओर से आयोजित 26वीं राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह-2025 में प्रदान किया जाएगा. यह आयोजन 4-5 अक्टूबर 2025 को विनायक विद्यापीठ, भूणास, भीलवाड़ा (राजस्थान) में होगा, जिसमें देशभर से बाल साहित्यकार शिरकत करेंगे. समारोह में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और हमारा दायित्व’ विषय पर तीन चर्चा-सत्र आयोजित होंगे. साथ ही एक बाल काव्यगोष्ठी भी सम्पन्न होगी. डॉ. भैरूं लाल गर्ग (संपादक एवं संयोजक, बालवाटिका) के अनुसार महावीर रवांल्टा को सम्मानस्वरूप स्मृति चिन्ह, शाल, श्रीफल एवं धनराशि भेंट की जाएगी. महावीर रवांल्टा का साहित्यिक योगदान महावीर रवांल्टा प्रौढ़ एवं बाल साहित्य – दोनों क्षेत्रों ...
लोकगीत रसिकों को दीवाना बनाने वाला उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध लोकगायक दीवान कनवाल

लोकगीत रसिकों को दीवाना बनाने वाला उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध लोकगायक दीवान कनवाल

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
सी एम पपनैं उत्तराखंड. पर्वतीय अंचल की लोकगायन विधा के निपुण व सुविख्यात लोकगीत गायकों में सुमार तथा अपनी जादुई कर्णप्रिय गायन प्रतिभा के बल अंचल के जनमानस का दिल जीतने वाले तथा बहुआयामी विलक्षण व्यक्तित्व के साथ-साथ बेहद सरल इंसान के रूप में पहचानरत संस्कृतिकर्मी दीवान कनवाल किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे हैं. बाल्यकाल से ही अंचल की लोकसंस्कृति के संवर्धन हेतु समर्पित रहे इस लोकगीत गायक और रचनाकार की जीवन यात्रा आज के युवा रंगकर्मियों और गायकों के लिए अति प्रेरणादायी कही जा सकती है. अंचल के सुप्रसिद्ध लोकगीत गायक दीवान कनवाल के मधुर गायन में गजब का सम्मोहन है, जिसमें पहाड़ी अंचल के लोक की ठसक साफ तौर पर दिखाई देती है. पर्वतीय अंचल के गीत-संगीत से जुड़े रहे कुशल चितेरो के सुरों की मिठास मिसरी की तरह इस लोकगीत गायक के स्वरों में घुली रहती है जो गीत-संगीत की अलौकिक दुनिया में विचरण कर जनम...
‘विकसित भारत 2047’ हकीकत या दिवास्वप्न

‘विकसित भारत 2047’ हकीकत या दिवास्वप्न

समसामयिक, साहित्‍य-संस्कृति
नेत्रपाल सिंह यादव निदेशक पॉलिसी & रिसोर्स मैनेजमेंट सेंटर भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी के जैसे-जैस करीब पहुंच रहा है, ऐसे में यह देश एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. 2047 तक भारत को एक विकसित देश में बदलने का महत्वाकांक्षी एजेंडा, जिसे “नए भारत” के रूप में जाना जाता है. एक व्यापक खाका है जिसमें आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता शामिल है. यह आलेख एंथ्रोपोलॉजिकल लेंस से इस विज़न के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहराई से चर्चा करता है. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास तथा सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता एवं मानव विकास के समग्रता का संपूर्णता में विश्लेषण करता है. आधुनिक विकास के मानकों में आर्थिक विकास स्थिति की भूमिका का महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं जिसके तहत किसी भी राष्ट्र या आधुनिक राज्य (Nation & State) की वहां के नागरिक की ‘प्रति व्यक्ति आय’ (Per capita income) से ज...
कैसी हो उत्तराखंड में पत्रकारिता?

कैसी हो उत्तराखंड में पत्रकारिता?

समसामयिक, साहित्‍य-संस्कृति
सुरेश नौटियाल, वरिष्ठ पत्रकार कई साल पहले, ब्रिटिश उच्चायोग के प्रेस एवं संपर्क विभाग ने नई दिल्ली में “भाषाई पत्रकारिता: वर्तमान स्वरूप और संभावनाएं” विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया था। जनसत्ता के तत्कालीन सलाहकार संपादक प्रभाष जोशी ने इस गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा था: “मैंने अपनी जिंदगी के नौ साल अंग्रेजी पत्रकारिता में व्यर्थ किए, क्योंकि इस देश में जनमत बनाने में अंग्रेजी अखबारों की भूमिका नहीं हो सकती है।” इसी आख्यान में प्रभाष जोशी ने कहा कि अंग्रेजी इस देश में सोचने-समझने की भाषा तो हो सकती है लेकिन महसूस करने की नहीं। और जिस भाषा के जरिए आप महसूस नहीं करते, उस भाषा के जरिए आप लोगों को इतना प्रभावित नहीं कर सकते कि वे अपनी राय, अपने तौर-तरीके आदि बदल सकें। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी और अंग्रेजी में लिखने पर पाठक वर्ग में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया होती है। केवल भाषाई अखबार ही लो...
मानसिक स्वास्थ्य है विकसित भारत की आधारशिला

मानसिक स्वास्थ्य है विकसित भारत की आधारशिला

साहित्‍य-संस्कृति, सेहत
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्तूबर 2024) पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र, शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपति हमारे स्वास्थ्य का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. आदमी स्वस्थ्य न रहे तो सारे सुख  और  वैभव व्यर्थ हो जाता है. आज  अस्वास्थ्य की चुनौती दिनों-दिन गहराती जा रही है और आधि और व्याधि, मन और शरीर दोनों के कष्ट बढ़ते जा रहे हैं. तनाव, कुंठा और प्रतिस्पर्धा के बीच मन की प्रसन्नता से हम सभी दूर होते जा रहे हैं. स्वास्थ्य की इन चुनौतियों  को हम खुद बढ़ा रहे हैं. सुकून, ख़ुशी, आश्वस्ति और संतुष्टि के भाव दूभर हो रहे हैं. आयुर्वेद कहता है कि यदि आत्मा, मन और इंद्रियाँ प्रसन्न रहें तो ही आदमी स्वस्थ है: प्रसन्नात्मेंद्रियमन: स्वस्थमित्यभिधीयते . ऐसा स्वस्थ आदमी ही सक्रिय हो कर उत्पादक कार्यों को पूरा करते हुए न केवल अपने लक्ष्यों की पूर्ति कर पाता है बल्कि समाज और देश की उन्नति में योगदान भी कर पा...
गांधी और भारत का देश-काल 

गांधी और भारत का देश-काल 

साहित्‍य-संस्कृति
गांधी जयंती ( 2 अक्तूबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र, शिक्षाविद्एवंपूर्वकुलपति मनुष्य की दृढ़ इच्छा शक्ति और उसके लिए समर्पण कितना चमत्कारी परिणाम वाला हो सकता है इसका जीता जागता उदाहरण बने महात्मा गांधी मानवता के लिए कर्म की भाषा लेकर आए थे. अमूर्त भाषा को मूर्त रूप देकर उन्होंने गरीब, अनपढ़, शोषित हर किसी के साथ संवाद को संभव बनाया था. सभी को जोड़ कर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने में उनकी सफलता आश्चर्यकारी थी. उनकी सादगी भरी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उपस्थिति आसानी से किसी को अपना मुरीद बना लेती थी. उनकी प्रामाणिकता भरोसा दिलाती थी और लोगों के मन के संशय दूर हो जाते थे. वे खुद को किसी वाद का प्रवर्तक नहीं मानते थे, न शिक्षक या गुरु की औपचारिक भूमिका ही कभी अपनाई परंतु  बड़ी भारी संख्या में लोग अपने को गांधीवादी कहलाने में गर्व का अनुभव करने लगे थे. उनकी जीवन शैली, वस्त्र, खानपान और आचरण...