बुदापैश्त डायरी-13
- डॉ. विजया सती
बुदापैश्त में हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थियों का
अध्ययन ब्रजभाषा काव्य पढ़े बिना पूरा नहीं होता और इस भाषा के विशेषज्ञ के रूप में वहां निमंत्रित होते हैं डॉ इमरै बंघा.बुदापैश्त
डॉ बंघा बुदापैश्त में इंडोलोजी के छात्र रहे
और विश्वभारती, शान्तिनिकेतन में शोधार्थी. वर्तमान में वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ओरिएंटल इन्सटीट्यूट में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं, जहां वे हिन्दी, उर्दू और बँगला पाठ पढ़ाते हैं.बुदापैश्त
भारतीय साहित्य पर कई पुस्तकों और आलेखों के रचयिता डॉ बंघा का लेखन अंग्रेजी, हिंदी और हंगेरियन में प्रकाशित है. उनका मुख्य काम ब्रजभाषा पर है – ‘सनेह को मारग –
आनंदघन का जीवन वृत्त’ – उनकी इस पुस्तक का प्रकाशन भारत में हुआ.बुदापैश्त
हिन्दी की मध्यकालीन कविता,
विशेष रूप से तुलसीदास में अभिरुचि रखने वाले डॉ इमरै बंघा ने कवितावली का भी गंभीर अध्ययन किया है. सियाराम तिवारी जी की पुस्तक मेरी रोमानिया डायरी में डॉ बंघा के तुलसी प्रेम का खूब परिचय मिलता है.बुदापैश्त
डॉ बंघा ने कई भारतीय भाषाओं की
रचनाओं का हंगेरियन भाषा में अनुवाद भी किया है. मीरा ..रवीन्द्र नाथ टैगोर.. सुनील गंगोपाध्याय .. सीताकांत महापात्र .. फणीश्वरनाथ रेणु ..अशोक वाजपेयी …और सूची लम्बी है !
बुदापैश्त
हिन्दी की रीतिमुक्त कविता,
इस काव्यधारा के विशिष्ट कवि ठाकुर, निर्गुण संत कवि कबीर और कृष्ण प्रेम में लीन मीराबाई पर भी उनके गंभीर अध्ययन प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने कई पुस्तकों का सम्पादन भी किया है.बुदापैश्त
डॉ बंघा ने कई भारतीय भाषाओं की रचनाओं का हंगेरियन भाषा में अनुवाद भी किया है. मीरा ..रवीन्द्र नाथ टैगोर.. सुनील गंगोपाध्याय .. सीताकांत महापात्र .. फणीश्वरनाथ रेणु ..अशोक
वाजपेयी …और सूची लम्बी है !बुदापैश्त
ऐलते विश्वविद्यालय के जिस
भारत अध्ययन विभाग में अध्यक्ष के रूप में डॉ मारिया नेज्येशी लम्बे अरसे से कार्यरत थी, वहां डॉ माते, डॉ देजो चबा, डॉ किश चबा, डॉ गेर्गेई हिदास के अतिरिक्त मेरे समय में पूर्व छात्रा आगि उर्दू कक्षाएं ले रही थी.बुदापैश्त
बुदापैश्त
इसी विभाग में किन्हीं नियत दिनों में डॉ
इमरै बंघा के आगमन की प्रतीक्षा होती. विभाग में विशेष रूप से आमंत्रित डॉ इमरै बंघा द्वारा ब्रजभाषा के पाठ पहले ही विद्यार्थियों को सूचित कर दिए जाते और फिर निश्चित समय में कुछ ख़ास शीर्षकों पर विद्यार्थियों से डॉ बंघा की बातचीत रखी जाती – इस पद्धति से पढ़ाई होती. विद्यार्थी अपनी जिज्ञासाएं लेकर आते. मध्ययुगीन हिन्दी बोली के काव्य से उनका साक्षात्कार होता. घनानंद जैसे कवि के पाठ भी डॉ इमरै बंघा पढ़ाते.बुदापैश्त
हिन्दी के अध्ययन में डॉ बंघा की इन कक्षाओं का विशेष योगदान रहता.
(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के
हिन्दू कॉलेज की सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर (हिन्दी) हैं। साथ ही विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी – ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दी – हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया में कार्यरत रही हैं.कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं.)