Month: September 2020

पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

अध्यात्म
भुवन चन्द्र पन्त पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किये जाने वाला कर्म ही श्राद्ध है. दरअसल पितर ही हमें इस धरती पर लाये, हमारा पालन पोषण किया और हमें अपने पांवों पर खड़े होने के लिए समर्थ किया. लेकिन उनसे ऊपर भी हमारे ऋषि थे, जो हमारे आदिपुरूष रहे और जिनके नाम पर हमारे गोत्र चले तथा उन ऋषियों के शीर्ष में देवता. देवऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए ही श्राद्ध की परम्परा शुरू हुई. हालांकि जितना उपकार इनका हमारे प्रति है उस ऋण से उऋण होना तो संभव नहीं और नहीं ऋण का मूल चुका पाना संभव है, श्राद्ध के निमित्त सूद ही चुका दें because तो हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं. जिसने हमारे लिए इतना सब किया, उनके इस दुनियां से चले जाने के बाद उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान देकर कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है. यों तो श्रद्धाभाव से  पितरों को स्वयं पिण्ड अर्पित कर तथा उन्हें त...
जब सांझ ढले : प्रकृति और प्रेम की जीवंत पहाड़ी कविताएं

जब सांझ ढले : प्रकृति और प्रेम की जीवंत पहाड़ी कविताएं

साहित्यिक-हलचल
शम्भूदत्त सती का कविता संग्रह, 'जब सांझ ढले', हिंदी अकादमी, 2005 डॉ. मोहन चंद तिवारी कुमाउनी साहित्य के रचनाकार शम्भूदत्त सती जी के उपन्यास 'ओ इजा' की पिछले  लेखों में चर्चा की जा चुकी है. इस लेख में उनके कविता संग्रह 'जब सांझ ढले' की चर्चा की जा रही है. उनका यह कविता संग्रह सन् 2005 में हिंदी अकादमी,दिल्ली से प्रकाशित हुआ है. शम्भूदत्त सती जी ने पिछले दशकों से हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक कुमाउनी आंचलिक साहित्यकार के रूप में अपनी एक खास पहचान बनाई है.सती जी पहाड़ की माटी से जुड़े एक कुशल लेखक ही नहीं बल्कि उत्कृष्ट कोटि के अनुवादक, धारावाहिक फ़िल्मों के लेखक और पहाड़ की लुप्त होती सांस्कृतिक शब्द सम्पदा और परम्परागत धरोहर के संरक्षक गीतकार भी रहे हैं. उनका 'ओ इजा' उपन्यास कुमाउनी साहित्य और लोकसंस्कृति के सन्दर्भ में   लिखी गई महत्त्वपूर्ण कृति है,जिसमें पहाड़ की महिलाओं के साथ पुरु...