उत्तराखंड : पेनक्रिएटाइटिस जैसे घातक रोग के लिए चिकित्सा में आयुर्वेद को मिला पहला पेटेंट

Vaidya-Balendu-Prakash
  • भारत सरकार के पेटेंट ऑफिस ने नवाजा 20 वर्षों के लिए पेटेंट
  • विश्व में आयुर्वेद के द्वारा पेनक्रिएटाइटिस के सफल इलाज की विश्वसनीयता को स्थापित करने का अभूतपूर्व प्रयास
  • 70 के दशक में मेरठ निवासी वैद्य चंद्र प्रकाश जी द्वारा पारद – तांबा – गंधक के योग से रस शास्त्र के गंधक जारण के सिद्धांत का पालन कर बनाई गई थी यह औषधि
  • उनके पुत्र पद्मश्री से सम्मानित वैद्य बालेंदु प्रकाश ने उठाया था उक्त औषधि को परिष्कृत एवं वैज्ञानिक आधार देने का बीड़ा
  • लगभग 2000 रोगियों की चिकित्सा और देश के नामी संस्थाओं के साथ कार्य करके जुटाए गए थे इसकी संरचना, सुरक्षा और प्रभाव संबंधित आंकड़े
  • वर्ष 2014 में उत्तराखंड सरकार के विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने किया था सहयोग, जिसके तहत दाखिल किया गया था पेटेंट का आवेदन

 

  • हिमांतर ब्यूरो, देहरादून

क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस शरीर में स्थित पेनक्रियाज या अग्नाशय में होने वाली वह सूजन है जो कि समय के साथ बढ़ती जाती है और लगभग 20 से 50% रोगियों में और अनियंत्रित ब्लड शुगर (डायबिटीज) होने का कारण बनती है. इसी के साथ असहनीय पेट दर्द, उल्टी, मिचली, पाचन संबंधी समस्या एवं वजन का कम होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. एलोपैथी में इसका कोई दीर्घकालिक उपचार नहीं है और रोग की आकस्मिक अवस्था में ड्रिप, दर्द निवारक इत्यादि देकर रोगी को सामान्य किया जाता है तथा ताउम्र पेनक्रिएटिक एंजाइम्स के साथ वसा और प्रोटीन युक्त पदार्थ का सेवन बंद कर दिया जाता है .

भारत में क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस का पहला मरीज 1937 में देखा गया था परंतु आज लगभग 10 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. किशोर एवं युवावस्था में होने वाला यह रोग दक्षिणवर्ती राज्यों में ही पाया जाता था. परंतु उत्तराखंड स्थित पड़ाव विशिष्ट आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र में आने वाले 1900 मरीजों में सबसे ज्यादा मरीज उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, हरियाणा एवं उत्तराखंड से हैं.

क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस रोग का मुख्य कारण शराब का सेवन बताया जाता है, परंतु इन्हीं आंकड़ों से सिद्ध हुआ है कि लगभग 70% रोगियों ने कभी शराब का सेवन नहीं किया. इन रोगियों के ख़ान-पान एवं रहन-सहन के विषय में जानकारी लेने पर एक चौंकाने वाला सत्य सामने आया है कि ज्यादातर रोगी बीमारी होने से पूर्व रात को देर तक जागने वाले, पूरी रात स्नैक्स खाने वाले और सुबह नाप्राय  नाश्ता करने वाले थे. इन सभी के भोजन में प्राकृतिक प्रोटीन का अभाव भी पाया गया .

वैद्य बालेंदु प्रकाश, जिन्हें हाल ही में यूजीसी के मानकों के आधार पर ‘प्रोफेसर का प्रेक्टिस’ के पद से नवाजा गया है, इस बीमारी पर 1997 से निरंतर काम कर रहे हैं . जहां उन्होंने मरीजों के आँकड़े सुचारू रूप से संकलित किए वहीं दूसरी ओर, लगभग तीन वर्षों में बनने वाली इस रस औषधि के प्रभाव को समझने के लिए विज्ञान का सहारा लिया, जिसमें बेंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इससे पता चला कि रस शास्त्र की दुरु निर्माण प्रक्रिया से विष के रूप में जाने जाने वाले पारा, गंधक और तांबा अपना मौलिक स्वरूप होकर एक जटिल मिनरल कॉंप्लेक्स में बदल जाते हैं. यही कारण है कि चिकित्सा के दौरान और चूहों पर किए अध्ययनों में इस औषधि का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं देखा गया. इसी क्रम में उक्त औषधि का चूहों में अध्ययन किया गया. जिन चूहों को उक्त औषधि देने के बाद पेनक्रिएटाइटिस पैदा करने वाली दवाई दी गई उनके पेनक्रियाज पर दुष्प्रभाव काम या नहीं पाया गया इस तरह किया दोनों अध्ययनों में इस औषधि ने पेनक्रिएटाइटिस रोग प्रतिरोध गुण दिखाए.

वैद्य बालेंदु प्रकाश ने अपने मौलिक अनुसंधान कार्य को कई पटलों पर प्रस्तुत किया है, जिसमें 2019 में अमेरिका की हवाई द्वीप पर अमेरिकन पेनक्रिएटिक संगठन और जापान पेनक्रियाज समिति की संयुक्त 50वें सम्मेलन में उनका प्रदर्शन भरपूर सराहा गया था. ततसंबंधी जानकारी पेनक्रियाज नामक प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में भी दी गई थी.

क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस के चिकित्सा के संबंध में विश्व के विभिन्न देशों में लगभग 20 पेटेंट मिले हैं जिसमें कैलशियम सिग्नलिंग इन्हीबिटर प्रमुख है . खनिज धातुओं पर आधारित आयुर्वेदिक औषधि द्वारा क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस के इलाज का यह विश्व में एकमात्र उदाहरण है जिससे विश्व भर के वैज्ञानिकों में अखंड भारत के स्वर्णिम काल की रस विद्या के वैज्ञानिक पहलुओं को विकसित करने का आकर्षण बनेगा.

यहां यह उल्लेखनीय है कि जहां विश्व के सारे देश पारद रहित देश की परिकल्पना कर रहे हैं, वहां भारत से बनी इस दवा ने पेटेंट के रूप में प्रमाणिकता प्राप्त की है. आयुर्वेद और अखंड भारत की यह विधा संभवत: चिकित्सा जगत में नए आयाम स्थापित करेगी .

कौन हैं वैद्य बालेंदु प्रकाश 

मार्च 1959 में मेरठ में जन्मे वैद्य बालेंदु प्रकाश  ने अपनी ग्रेजुएशन तक की शिक्षा दीक्षा मेरठ से की. इसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के सानिध्य में रहकर आयुर्वेद के रस शास्त्र का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया. इसी के साथ उन्होंने रोहतक के आयुर्वेदिक कॉलेज से बीएएमएस की डिग्री भी हासिल की.

अक्टूबर 1989 में उन्होंने देहरादून में वी सी पी कैंसर रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की, जिसके संरक्षक स्वयं भूतपूर्व राष्ट्रपति, डॉ. के. कर. नारायणन  थे . 1996 में इसका उद्घाटन भी उन्हीं के द्वारा किया गया. वैद्य  बालेंदु प्रकाश अपनी अनुसंधान परख सोच के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं. विगत वर्षों में उन्होंने आयुर्वेद की प्रभावकारिता को सिद्ध करने के लिए कई अनुसंधान किए, जिसमें भारत सरकार के साथ एपीएमएल (एक तरीके का ब्लड कैंसर) शामिल है. 1999 में उन्होंने एपीएमएल के 11 में से 11 मरीजों को ठीक करके एक कीर्तिमान स्थापित किया, जिसके लिए उन्हें US और यूरोपीयन पेटेंट से नवाजा गया. इसी वर्ष उन्हें पद्मश्री की उपाधि से भी सम्मानित किया गया. चिकित्सा के क्षेत्र में पद्मश्री प्राप्त करने वाले वह सबसे कम उम्र के चिकित्सक हैं.

उनके मौलिक और वैज्ञानिक सोच की वजह से उन्होंने अपनी दवाइयां को बाजार में देने की बजाय ट्रेनिंग के तहत आयुर्वेदिक डॉक्टर द्वारा मरीजों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया. इसी परिपेक्ष में अपने पिताजी द्वारा तैयार की गई दवा के लिए उन्होंने एक पेटेंट प्राप्त किया है, जो क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस के इलाज में भारत का पहला पेटेंट है.

क्या होता है पेटेंट

पेटेंट एक अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी बिल्कुल नई सेवा, तकनीकी, प्रक्रिया, उत्पाद या डिज़ाइन के लिए प्रदान किया जाता है, ताकि कोई उनकी नक़ल नहीं तैयार कर सके. दूसरे शब्दों में पेटेंट एक ऐसा कानूनी अधिकार है, जिसके मिलने के बाद यदि कोई व्यक्ति या संस्था किसी उत्पाद को खोजती या बनाती है तो उस उत्पाद को बनाने का एकाधिकार प्राप्त कर लेती है.

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