Tag: Water Harvesting System

उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन तथा जलवैज्ञानिकों की रिपोर्ट

उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन तथा जलवैज्ञानिकों की रिपोर्ट

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-32 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-3 भारत के लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में स्थित उत्तर पश्चिम से उत्तर पूर्व तक फैली हिमालय की पर्वत शृंखलाएं न केवल प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, वनस्पति‚ वन्यजीव, खनिज पदार्थ जड़ी-बूटियों का विशाल भंडार हैं, बल्कि देश में होने वाली मानसूनी वर्षा तथा तथा because विभिन्न ऋतुओं के मौसम को नियंत्रित करने में भी इनकी अहम भूमिका है. हिमालय पर्वत से प्रवाहित होने वाली नदियों एवं वहां के ग्लेशियरों से पिघलने वाले जलस्रोतों के द्वारा ही उत्तराखण्ड हिमालय के निवासियों की जलापूर्ति होती आई है. जनसंख्या की वृद्धि तथा समूचे क्षेत्र में अन्धाधुंध विकास की योजनाओं के कारण भी स्वतः स्फूर्त होने वाले हिमालय के ये प्राकृतिक जलस्रोत सूखते जा रहे हैं तथा भूगर्भीय जलस्तर में भी गिरावट आ रही है. पर्यावरण सम्बन्धी इसी पारिस्थितिकी ...
उत्तराखंड में वनों की कटाई से गहराता जलस्रोतों का संकट

उत्तराखंड में वनों की कटाई से गहराता जलस्रोतों का संकट

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-31 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-2 प्राकृतिक जल संसाधनों because जैसे तालाब, पोखर, गधेरे, नदी, नहर, को जल से भरपूर बनाए रखने में जंगल और वृक्षों की अहम भूमिका रहती है.जलवायु की प्राकृतिक  पारिस्थितिकी का संतुलन बनाए रखने और वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग के प्रकोप को शांत करके आकाशगत जल because और भूमिगत जल के नियामक भी वृक्ष और जंगल हैं. इसलिए   जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न जलसंकट से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिए वनों  की सुरक्षा करना परम आवश्यक है. वानिकी उत्तराखण्ड के अधिकांश वानिकी क्षेत्र नदियों के संवेदनशील प्रवाह क्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत स्थित हैं. ये वानिकी क्षेत्र न केवल उत्तराखण्ड हिमालय की जैव-विविधता because (बायो-डाइवरसिटी) का संवर्धन करते हैं बल्कि समूचे उत्तराखण्ड की पर्यावरण पारिस्थितिकी, जलवायु परिवर्तन ...
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में परंपरागत जल संचयन प्रणालियां

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में परंपरागत जल संचयन प्रणालियां

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-29 डॉ. मोहन चंद तिवारी भारत में जलसंचयन और प्रबन्धन का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. विभिन्न प्रांतों और प्रदेशों में परम्परागत जलसंचयन या ‘वाटर हारवेस्टिंग’ के नाम और तरीके अलग अलग रहे हैं किन्तु इन सबका उद्देश्य एक ही है वर्षाजल का संरक्षण और भूमिगत जल का संचयन और संवर्धन. उत्तराखंड में नौले, खाल,चाल, becauseराजस्थान में खड़ीन,कुंड और नाडी, महाराष्ट्र में बन्धारा और ताल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बन्धी, बिहार में आहर और पयेन, हिमाचल में कुहल, तमिलनाडु में एरी, केरल में सुरंगम, जम्मू क्षेत्र के कांडी इलाके के पोखर, कर्नाटक में कट्टा पानी को because सहेजने और एक से दूसरी जगह प्रवाहित करने के कुछ अति प्राचीन साधन थे, जो आज भी प्रचलन में हैं. इसी सम्बन्ध में प्रस्तुत है भारत के विभिन्न क्षेत्रों की परंपरागत जल प्रबंधन और जल संचयन से सम्बंधित प्रमुख जल प्रणाल...