Tag: varahamihira

चक्रपाणि मिश्र के अनुसार भारत के पांच भौगोलिक जलागम क्षेत्रों का पारिस्थिकी तंत्र 

चक्रपाणि मिश्र के अनुसार भारत के पांच भौगोलिक जलागम क्षेत्रों का पारिस्थिकी तंत्र 

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-28 डॉ. मोहन चंद तिवारी चक्रपाणि मिश्र ने ‘विश्ववल्लभ-वृक्षायुर्वेद’ में भारतवर्ष के विविध प्रदेशों को जलवैज्ञानिक धरातल पर विभिन्न वर्गों में विभक्त करके वहां की वानस्पतिक तथा भूगर्भीय विशेषताओं को पृथक् पृथक् रूप because से चिह्नित किया है जो वर्त्तमान सन्दर्भ में आधुनिक जलवैज्ञानिकों के लिए भी अत्यन्त प्रासंगिक है. चक्रपाणि के अनुसार जलवैज्ञानिक एवं भूवैज्ञानिक दृष्टि से भारत के पांच जलागम क्षेत्र इस प्रकार हैं- जलविज्ञान 1. ‘मरु देश’- जहां रेतीली मिट्टी है because और हाथी की सूंड के समान भूमि में जल की शिराएं हैं उसे ‘मरु प्रदेश’ कहते हैं. इस क्षेत्र में जलागम को प्रेरित करने वाली वृक्ष वनस्पतियों में पीलू (अखरोट) शमी, पलाश, बेल, करील, रोहिड़, अर्जुन, अमलतास और बेर के पेड़ मुख्य हैं. जलविज्ञान 2. ‘जांगल देश’ -मरुदेश की because अपेक्षा जांगल देश में जल की ...
चक्रपाणि मिश्र के भूमिगत जलान्वेषण के वैज्ञानिक सिद्धांत

चक्रपाणि मिश्र के भूमिगत जलान्वेषण के वैज्ञानिक सिद्धांत

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-26 डॉ. मोहन चंद तिवारी आचार्य वराहमिहिर की तरह चक्रपाणि मिश्र का भी भूमिगत जलान्वेषण के क्षेत्र में  महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है,जो वर्त्तमान सन्दर्भ में भी अत्यन्त प्रासंगिक है. चक्रपाणि मिश्र ने भारतवर्ष के विविध क्षेत्रों because और प्रदेशों की पर्यावरण और भूवैज्ञानिक पारिस्थिकी के सन्दर्भ में देश की भौगोलिक पारिस्थिकी को जलवैज्ञानिक धरातल पर पांच वर्गों में विभक्त किया है और प्रत्येक क्षेत्र की वानस्पतिक तथा भूगर्भीय विशेषताओं को अलग अलग लक्षणों से परिभाषित भी किया है. प्राचीन भारत के परंपरागत जल संसाधनों के सैद्धांतिक  स्वरूप को जानने के लिए भी चक्रपाणि मिश्र का 'विश्ववल्लभवृक्षायुर्वेद’ नामक ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है. 'विश्ववल्लभवृक्षायुर्वेद’ में जलवैज्ञानिक सिद्धांत सोलहवीं शताब्दी में महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.) के समकालीन रहे ज्योतिर्विद पं.चक्र...