
अपना गाँव
अंकिता पंतगाँवों में फिर से हँसी ठिठोली है
बुजुर्गों ने, फिर किस्सों की गठरी खोली है.रिश्तों में बरस रहा फिर से प्यार
मन रहा संग, खुशी से हर त्यौहार.गाँवों में फिर से खुशियाँ छाई हैं
परदेसियों को बरसों बाद, घर की याद आई है.महामारी एक बहाना बन कर आ गई
खाली पड़े मकानों को, बरसों बाद घर बना गई.पहाड़ अब और अधिक चमकने लगे हैं
अपनों से जुड़कर, ये रिश्ते और अधिक महकने लगे हैं.रिश्तों की चाहत, अपनी मिट्टी से फिर जुड़ने लगी है
अब मेरे पहाड़ों को, सुकूँ भरी राहत मिलने लगी है.विजयपुर (खन्तोली) जनपद – बागेश्वर, उत्तराखंड ...

