Tag: Uttarakhand Village

अपना गाँव

अपना गाँव

कविताएं
अंकिता पंत गाँवों में फिर से हँसी ठिठोली है बुजुर्गों ने, फिर किस्सों की गठरी खोली है. रिश्तों में बरस रहा फिर से प्यार मन रहा संग, खुशी से हर त्यौहार. गाँवों में फिर से खुशियाँ छाई हैं परदेसियों को बरसों बाद, घर की याद आई है. महामारी एक बहाना बन कर आ गई खाली पड़े मकानों को, बरसों बाद घर बना गई. पहाड़ अब और अधिक चमकने लगे हैं अपनों से जुड़कर, ये रिश्ते और अधिक महकने लगे हैं. रिश्तों की चाहत, अपनी मिट्टी से फिर जुड़ने लगी है अब मेरे पहाड़ों को, सुकूँ भरी राहत मिलने लगी है. विजयपुर  (खन्तोली) जनपद – बागेश्वर, उत्तराखंड  ...
तार-तार होती गांवों की परंपरा, घर-घर पैदा हो रहे नेता

तार-तार होती गांवों की परंपरा, घर-घर पैदा हो रहे नेता

समसामयिक
पंचायत चुनाव किस्त— 1 शशि मोहन रवांल्टा मारी तो शरीप कंसराओ... मारी तो शरीप ये उंच बौख क डांडा कंसराओ ह्यू पड़ी बरिफ ये।। कंसराओ (कंसेरू) भटाओ (भाटिया) केशनाओ (कृष्णा).... हेड़ खेलण जाणू ये.... कंसराओ, भटाओ, केशनाओ.... हिमालय तीन गांवों का यह गीत अपने आप में एक because बहुत ही गहन संदेश छिपाए हुए है, जिसमें तीन गांवों की एकता को गीत के माध्यम से बखूबी दर्शाया गया है। इस लोक गीत के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि इन तीनों की गांवों की एकता अटूट है। बर्फ हिमालय की ऊंची चोंटियां because जब बर्फ से आच्छादित हो जाती हैं, तो हम रवांल्टे अपने उच्च हिमालय क्षेत्र में आखेट करने जाते हैं जो हमारे हक—हकूक में शामिल है। जब हिमालय की because ऊंची चोटियों के साथ—साथ हमारे गांव—गोठ्यार तक बर्फ से लक—दक हो आते हैं तो उस दौरान हम हिमालय के वांशिदें अपनी पुरानी परंपराओं को आगे बढ़ाते ह...