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उत्तराखंड की वादियों से गुमानी पंत ने उठाई थी,आज़ादी की पहली आवाज

उत्तराखंड की वादियों से गुमानी पंत ने उठाई थी,आज़ादी की पहली आवाज

समसामयिक
संविधान दिवस (26 नवम्बर) पर विशेषडॉ.  मोहन चंद तिवारीमैं पिछले अनेक वर्षों से अपने लेखों द्वारा लोकमान्य गुमानी पन्त के साहित्यिक योगदान की राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रूप से चर्चा करता आया हूं. उसका एक कारण यह भी है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उत्तराखंड की भाषाओं को मान्यता दिलाने के लिए सर्वाधिक साहित्यिक प्रमाण लोककवि गुमानी पंत द्वारा आज से दो सौ वर्ष पूर्व रचित कुमाउंनी साहित्य है,जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय धरातल पर देश की भाषाई एकता को स्थापित करने के लिए गढ़वाली, कुमाउंनी आदि उत्तराखंड की भाषाओं के अलावा नेपाली और संस्कृत भाषाओं में साहित्य रचना की.पर विडंबना यह है कि आज उत्तराखंड की वादियों में बोली जाने वाली खसकुरा नेपाली भाषा को तो आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त है किंतु  उसी भाषापरिवार से सम्बद्ध कुमाउंनी, गढ़वाली और जौनसारी को संवैधिनिक मान्यता नहीं मिल पाई ...