Tag: Girishwar Misra

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

लोक पर्व-त्योहार
होली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  प्रकृति के सौंदर्य और शक्ति के साथ अपने हृदय की अनुभूति को बाँटना बसंत ऋतु का तक़ाज़ा है. मनुष्य भी चूँकि उसी प्रकृति की एक विशिष्ट कृति है इस कारण वह इस उल्लास से अछूता नहीं रह पाता. माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत की आहट मिलती है. परम्परा में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है इसलिए उसके जन्म के साथ इच्छाओं और कामनाओं का संसार खिल उठता है. फागुन और चैत्त के महीने मिल कर वसंत ऋतु बनाते हैं. वसंत का वैभव पीली सरसों, नीले तीसी के फूल, आम में मंजरी के साथ, कोयल की कूक प्रकृति सुंदर चित्र की तरह सज उठती है. फागुन की बयार के साथ मन मचलने लगता है और उसका उत्कर्ष होली के उत्सव में प्रतिफलित होता है. होली का पर्व वस्तुतः जल, वायु, और वनस्पति से सजी संवरी नैसर्गिक प्रकृति के स्वभाव में उल्लास का आयोजन है. रंग, गुलाल और अबीर से एक दूसरे को...
सार्वजनिक जीवन में मर्यादा की जरूरत है   

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा की जरूरत है   

समसामयिक
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  देश को स्वतंत्रता मिली और उसी के साथ अपने ऊपर अपना राज स्थापित करने का अवसर मिला. स्वराज अपने आप में आकर्षक तो है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके साथ जिम्मेदारी भी मिलती है. स्वतंत्रता मिलने के बाद स्वतंत्रता का स्वाद तो हमने चखा पर उसके साथ की जिम्मेदारी और कर्तव्य की भूमिका निभाने में ढीले पड़ कर कुछ पिछड़ते गए. देश को देने की जगह शीघ्रता और आसानी से क्या पा लें because इस चक्कर में भ्रष्टाचार, भेद-भाव तथा अवसरवादिता आदि का असर बढ़ने लगा. इसीलिए देश के आम चुनावों में कई बार भ्रष्टाचार एक मुख्य मुद्दा बनता रहा है और देश की जनता उससे मुक्ति पाने के लिए वोट देती रही है. परन्तु परिस्थितियों में जिस तरह का बदलाव आता गया है उसमें देश की राजनैतिक संस्कृति नैतिक मानकों के साथ समझौते की संस्कृति होती गई. ज्योतिष आज की स्थिति में धन–बल, बाहु-बल, परिवारवाद के साथ राजनीति के किर...
बगरौ बसंत है

बगरौ बसंत है

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र सृष्टि चक्र का आंतरिक विधान सतत परिवर्तन का है और भारत देश का सौभाग्य कि वह इस गहन क्रम का साक्षी बना है. तभी ऋत और सत्य के विचार यहां के चिंतन में गहरे पैठ गए हैं और नित्य-अनित्य का विवेक so करना दार्शनिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी रही. यहां ऋतुओं का क्रम कुछ इस भांति संचालित होता है कि पृथ्वी समय बीतने के साथ रूप, रस और गंध के भिन्न-भिन्न स्वाद से अभिसिंचित होती रहती है. because वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत नामों से ख्यात ये छह ऋतुएं प्रकृति के संगीत के अलग-अलग राग, लय और सुर के साथ जीवन के सत्य को उद्भासित करती हैं. वह पशु, पक्षी और वनस्पति समेत सभी प्राणियों को यह संदेश देती रहती है कि तैयार रहो और गतिशील बने रहो जिससे जीवन का क्रम बना रहा. पढ़ें— हिमालयी सरोकारों को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘हिमांतर’ का लोकार्पण शिशिर प्रकृति की कूट (कोड) भाषा be...
भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय की पहल स्वागत योग्य है

भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय की पहल स्वागत योग्य है

शिक्षा
प्रो. गिरीश्वर मिश्र भारतवर्ष  भाषाओं की दृष्टि से एक अत्यंत समृद्ध देश है. यहां की भाषाई  विविधता अनोखी  है  और उनमें अपार संभावनाएं  विद्यमान हैं यह उनकी आतंरिक जीवनशक्ति और लोक-जीवन में व्यवहार  में  प्रयोग ही था कि   विदेशी आक्रांताओं  द्वारा विविध प्रकार से सतत हानि पहुंचाये जाने के बावजूद  भी  वे  बची  रहीं. because पिछली कुछ सदियों इन भाषाओं को सतत संघर्ष करना पड़ा था. मुगल शासन काल में फारसी  को  महत्व मिला.  फिर  अंग्रेजों के उपनिवेश के दौर में अंग्रेजी को निर्भ्रान्त प्रश्रय दिया गया और  उसे नौकरी चाकरी से  जोड़  दिया गया. परन्तु यह भी सत्य है कि स्वतंत्रता संग्राम में लोक संवाद के साथ  देश को एक साथ ले चलने में हिन्दी  और अन्य भारतीय भाषाओं ने विशेष  भूमिका निभाई. so स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अंग्रेजों के दौर की नीतियों के अनुसरण करते रहने के फलस्वरूप अंग्रेजी का प्रभुत्व जीवन...
घड़ी परीक्षा की  है पर हिम्मत न हारें  

घड़ी परीक्षा की  है पर हिम्मत न हारें  

समसामयिक
प्रो. गिरीश्वर मिश्र आज कोरोना की महामारी ने ठण्ड because और प्रदूषण के साथ मिल कर आम आदमी की जिन्दगी की मुश्किलों को बहुत बढ़ा दिया है. बहुत कुछ अचानक हो रहा है और उसके साथ जुड़ी चिंता, परेशानी, कुंठा, व्यथा  दुःख की विभीषिका की तरह चल रही है. प्रिय जन को खोना, नौकरी छूट जाना, गंभीर रोग, दुर्घटना, त्रासदी जैसे भयानक अनुभव से गुजर कर उठना और आगे बढ़ना एक कठिन चुनौती होती है पर वह असंभव नहीं है. इस दौरान ऎसी कई कहानियां भी सुनने, पढने या देखने को मिल रही हैं जिनमें लोग कठिन परिस्थिति से उबर कर आगे बढ़ते हैं. so ऐसी स्थिति में जब खुद को पाते हैं तो क्या करें? अपनी व्यथा से कैसे पेश आएं?  ऐसे सवालों का कोई सीधे-सीधे उत्तर नहीं है. इस हाल में प्रतिरोध या जूझने की क्षमता (रेसीलिएंस) का विचार मदद करता है. जूझने का दम हो तो आदमी जीवन की कठिन परिस्थिति मे या कहें तनाव या त्रासद घड़ी से उबर कर  वापस ...