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वयस्कता की दहलीज पर आ पहुंचा दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र

वयस्कता की दहलीज पर आ पहुंचा दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र

देहरादून
चन्द्रशेखर तिवारी दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र (Doon Library And Research Centre) ने 17 वर्ष की उम्र पार कर आज वयस्कता की दहलीज पर पदार्पण किया है. यह हम सबके लिए वाकई गौरव का पल है. 8 दिसम्बर 2006 को देहरादून में एक स्वायत्तशासी संस्था के रुप में इस संस्था ने कार्य करना प्रारंभ किया था. माध्यमिक शिक्षा विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा परेड ग्राउंड स्थित परिसर में उपलब्ध कराये गये कुछ कक्षों से करीब 16 साल संचालित होने के बाद अब यह संस्थान अब लैंसडाउन चैक पर अपने नये भवन में स्थापित हो चुका है. इस बात पर कोई अतिशयोक्ति न होगी कि इस अवधि में ही दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र ने न केवल देहरादून अपितु देश-प्रदेश में भी अपनी एक विशेष कायम कर ली है. आम पाठकों,बुद्धिजावियों, लेखक,साहित्यकारों तथा सामाजिक विज्ञान के अध्येताओं के हित में स्थापित इस आदर्श ज्ञान संसाधन केन्द्र की परिकल्पना के मूल में मुख...
वह सिंधुघाटी के ‘आद्य शिव’ नहीं, कत्यूरीकालीन ‘वृषानना’ योगिनी है

वह सिंधुघाटी के ‘आद्य शिव’ नहीं, कत्यूरीकालीन ‘वृषानना’ योगिनी है

इतिहास
प्रेस विज्ञप्ति लेख डा. मोहन चंद तिवारी 5 मार्च ,2022 को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र (Doon Library And Research Centre) से जुड़ी एक प्रेसवार्ता के अनुसार उत्तरकाशी (Uttarkashi) के देवल गांव (deval village) से पत्थर की महिष (भैंसा) मुखी एक because चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोजने का समाचार सामने आया है. शोध केंद्र के निदेशक प्रोफेसर बीके जोशी ने इस मूर्ति को 'आद्य शिव' की सिंधुकालीन मूर्ति होने का दावा किया है. कहा गया है कि इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित शोध पत्रिका “ईस्ट एंड वैस्ट” के नवीनतम अंक में हुआ है. हरताली इस मूर्ति को सिंधुकालीन होने का औचित्य सिद्ध because करते हुए शोध केंद्र से जुड़े पुरातत्त्वविद प्रो.महेश्वर प्रसाद जोशी का भी कहना है कि उत्तराखंड की यमुना घाटी में पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े अवशेष मिल चुके हैं,इसलिए यह मूर्ति भी सिंधुकालीन मूर्ति ...