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सहारनपुर जाने वाली बसों की हड़ताल सुनकर…

सहारनपुर जाने वाली बसों की हड़ताल सुनकर…

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा - भाग-5 सुनीता भट्ट पैन्यूली मेरे माथा ठनकने को पतिदेव ने तनिक भी विश्राम न करने दिया कार में बैठे और आईएसबीटी से कार सहारनपुर रोड की ओर घुमा दी मेरे यह पूछने पर कि यह because आप क्या कर रहे हो? कहने लगे तुम्हें कालेज पहुंचाने जा रहा हूं और यह कहकर कार की गति और बढ़ा दी. मैंने कहा अरे आप ऐसे कैसे? नाईट सूट में ही मुझे सहारनपुर परीक्षा दिलवाने ले जायेंगे? उनके यह कहने पर कि यह समय तर्क-वितर्क का नहीं है but बस तुम चुपचाप बैठी रहो क्योंकि सीमित समय में मुझे सहारनपुर पहुंचाने का तनाव पतिदेव के माथे पर साफ़ नज़र आ रहा था. परिस्तिथि ऐसी बन पड़ी थी कि so मेरे पास तर्क करने की कोई वजह भी नहीं थी. समय कम था अत: कालेज समय से पहुंचने के दबाव में बिना एक-दूसरे से बात किये हम सहारनपुर की ओर चले जा रहे थे रास्ता आज और दिन की अपेक्षा बहुत लंबा महसूस हो रहा था. सत्...
मन में अजीब से ख़्याल उपज रहे थे…

मन में अजीब से ख़्याल उपज रहे थे…

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा भाग-2 सुनीता भट्ट पैन्यूली हमारा रिक्शा छन-छन घुंघरुओं की सी आवाज़ निकालते हुए हवा से बातें करते हुए कॉलेज की ओर जा रहा था, रिक्शा एक पतली तंग भीड़-भाड़ वाली गली में घुसा, ऐसा महसूस हो because रहा था मानो दुनिया भर के सारे मेहनत करने वाले हाथ अपनी-अपनी रोटी जुटाने के लिए उमड़े हों, यहां इस गली में सड़क पर कोई उबले अंडे, कोई शकरकंदी, कोई मुंगफली के साथ ठेली में अम्रक बेच रहा था, तो कोई भूने हुए पापड़. कोई गज्जक बेच रहा था, कोई काला चश्मा पहनकर वैल्डिंग से लोहे की सरियाओं को खिड़कियों और दरवाज़े का आकार दे रहा था. इस मेहनत वाली गली में दांयी तरफ एक छोटी-सी मस्ज़िद से होकर भी गुजरना हुआ, मुझे मालूम नहीं था कि अनजाने में ही सही पर दोबारा एक साल तक कॉलेज आने-जाने के लिए मैंने पहचान स्वरुप इस छोटी-सी मस्जिद की पक्की तस्वीर अपने ज़ेहन में बैठा ली थी. खोलकर...