Tag: पिता

शुभदा

शुभदा

किस्से-कहानियां
कहानी डॉ. अमिता प्रकाश यही नाम था उसका शुभदा! शुभदा-शुभता प्रदान करने वाली. शुभ सौभाग्य प्रदायनी. हँसी आती है आज उसे अपने इस नाम पर और साथ ही दया के भाव भी उमड़ पड़ते हैं उसके अन्तस्थल में, जब वह इस नाम को रखने वाले अपने पिता को याद करती है.... कितने लाड़ और गर्व से, कितना सोच-समझकर, कितने सपने बुनकर उन्होंने उसका नाम रखा होगा- शुभदा. वह अपने माता -पिता की दूसरी सन्तान थी. पहले बड़ा भाई और फिर छोटी लाडली बहन.... “माँ-बाप फूले नहीं समा रहे होंगे कि चलो परिवार पूरा हुआ. भले ही उस जमाने में जब चार -पाँच बच्चे पैदा करना सामान्य और भाग्य की बात हुआ करती थी तब माता-पिता ने परिवार के पूरे होने के बारे में सोचा होगा ऐसा सम्भव नहीं था. यह मात्र उसकी अपनी सोच थी, शायद अपने को दिलासा देने का एक झूठा आसरा. वरना वह जमाना ही कुछ और था, कि परिवार में एक लड़का हुआ तो डाल को दोहरी करना जरूरी समझा जाता थ...
पिता तो पिता है, हमसे कब वो जुदा है

पिता तो पिता है, हमसे कब वो जुदा है

संस्मरण
पितृ दिवस पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल मानवीय रिश्तों में सबसे जटिल रिश्ता पिता के साथ माना गया है. भारतीय परिवेश में पारिवारिक रिश्तों की मिठास में 'पिता' की तुलना में 'मां' फायदे में रहती है. परिवार में 'पिता' अक्सर अकेला खड़ा नज़र आता है. तेजी से बदलती जीवनशैली में परिवारों के भीतर पिता का पारंपरिक रुतवा लुढ़कता हुआ खतरे के निशान के आस-पास अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रहा है. पर यह भी उतना ही सच है कि पिता के पैरों की नीचे की जमीन कितनी ही खुरदरी लगे परिवार में जीने का जज्बां और हौसला वहीं पनाह लेता है. पिता-पुत्र/पुत्र-पिता संबधों और उनकी आपसी कैमेस्ट्री की इवान सेर्गेयेविच तुर्गेनेव ने अपनी किताब 'पिता और पुत्र' में 150 साल पहले जो व्याख्या की थी वह आज भी प्रासंगिक है. इवान तुर्गेनेव (सन् 1818-1883) 19वीं शताब्दी के विश्व प्रसिद्व अग्रणी लेखकों में शामिल रहे हैं. टाॅलस्टा...